रांची:
झारखंड विधानसभा की कार्यसंचालन नियमावली से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को विलोपित करने की तैयारी शुरू हो गयी है। स्पीकर की अध्यक्षता में सम्पन्न विधानसभा की नियम समिति की बैठक में यह तय हुआ कि कार्यसंचालन नियमावली की धारा 52 को विलोपित किया जाय। साथ ही धारा 304(2) के तहत प्रतिदिन शून्यकाल की सूचना 15 को बढ़ाकर 25 किया जाय।
अल्पसूचित प्रश्न को जमा करने का प्रावधान
इसके अलावा धारा 34(3) के अंतर्गत सत्र के दौरान अल्पसूचित प्रश्न को 14 दिन पहले सभा सचिवालय में जमा करने को भी विलोपित किया जाय। नियम समिति के सदस्य और झामुमो विधायक दीपक बिरुआ ने समिति की अनुशंसा को मंगलवार को सदन पटल पर रखा। इस पर आसान से स्पीकर ने यह नियमन दिया कि समिति की अनुशंसा पर सभी विधायक 14 मार्च तक संसोधन दे सकते हैं।
मुख्यमंत्री सत्रावधि के दौरान उपस्थित होते हैं
विधायक दीपक बिरुआ ने बताया कि स्पीकर की अध्यक्षता में सम्पन्न नियम समिति की बैठक मे सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ है। कहा कि समिति में इस बात पर चर्चा हुई कि जब मुख्यमंत्री सत्रावधि के दौरान सदन में उपस्थित रहते हैं तो अलग से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल का कोई औचित्य नहीं है।
यह भी देखा गया है कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल में नीतिगत प्रश्न का अभाव रहता है। सोमवार को आधे घंटे के इस समय का उपयोग दूसरे काम मे किया जा सकता है। उन्होनें यह भी कहा कि समिति ने इस बात पर भी गौर किया कि अधकांश विधानसभा में मुख्यमंत्री प्रश्काल नहीं होता है।
नामधारी कार्यकाल में शुरू हुआ था प्रश्नकाल
झारखंड विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के समय झारखंड विधानसभा कार्यसंचालन नियमावली तैयार हुई थी। उस समय मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रधान सचिव डॉ आनंद पयासी का नियमावली बनाने में सहयोग लिया गया था। झारखंड विधानसभा से उदयभान सिंह और मधुकर भारद्वाज ने नियमावली तैयार करने में डॉ. पयासी का सहयोग किया था। नियमावली तैयार होने में लगभग 1 महीने का समय लिया गया था जिसमें लोकसभा सहित कई राज्यों की विधानसभा नियमावली का अध्ययन किया गया था। कई अच्छी चीजों को समाहित कर झारखंड विधानसभा की नियमावली बनी थी। जिसमें मुख्यमंत्री प्रश्नकाल भी एक था।
मध्यप्रदेश विधानसभा से लिया था प्रावधान
मुख्यमंत्री प्रश्नकाल मध्यप्रदेश विधानसभा से ली गयी थी। इसके बाद से लगातार हर सत्र में प्रत्येक सोमवार को 12 बजे से साढ़े 12 बजे तक मुख्यमंत्री प्रश्नकाल होता आया है। सिर्फ वर्तमान विधानसभा के कई सत्रों में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं आ सका। इसपर संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने जवाब दिया था कि कोरोना के कारण मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं लिया जा रहा है।
कांग्रेस, भाजपा और माले ने किया विरोध
झारखंड विधानसभा की कार्यसंचालन नियमावली से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को हटाने के प्रस्ताव का सत्तारूढ़ दल कांग्रेस, प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा और माले ने विरोध किया है। कांग्रेस विधायक पुर्णिमा नीरज सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं हटना चाहिए। यह विधायकों के अधिकार का हनन है। कहा कि नीतिगत मामले पर मुख्यमंत्री से सीधे प्रश्न करने का यह मंच है।
कांग्रेस विधायक ममता देवी, अनूप सिंह और बंधु तिर्की ने नही इसका विरोध किया है और कहा है कि विधायकों के लोकतांत्रिक अधिकार को छीनने का प्रयास है। भाजपा विधायक मनीष जयसवाल, राज सिन्हा, नीलकंठ सिंह मुंडा, नवीन जयसवाल, भानु प्रताप शाही, अपर्णा सेन गुप्ता, नीरा यादव सहित अन्य ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
विधायकों का अधिकार छीनने का प्रयास है!
भाजपा विधायकों ने कहा कि यह प्रयास विधायकों के अधिकार को छिनने वाला है। मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के माध्यम से सदस्यों को सीधे मुख्यमंत्री से नीतिगत सवाल करने के अधिकार देता है। अब इस अधिकार से भी वंचित करने की कोशिश हो रही है। कहा कि हमारी नियमावली में जो अच्छी चीजें हैं अगर वह दूसरी विधानसभा में नहीं है तो इसे हटा दिया जाय, उचित नहीं होगा।
हमलोग इसका विरोध करेंगे। जहां तक यह सवाल उठ रहा है कि विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री प्रश्नकाल में नीतिगत सवाल नहीं किये जाते तो यह देखने का काम विधानसभा सचिवालय का है। विधानसभा सचिवालय स्कूटनी करे कि कौन सवाल मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के लायक है, उसे ही सदन में रखा जाय।माले विधायक बिनोद सिंह ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है और कहा कि वह अपना संसोधन बुधवार को स्पीकर को देंगे।