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झारखंड की चामी मुर्मू और पूर्णिमा महतो को पद्मश्री सम्मान, इनके बारे में जानिए

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द फॉलोअप डेस्कः
भारत सरकार ने गुरुवार देर शाम पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया। इस बार 110 लोगों को पद्मश्री, 5 लोगों को पद्म विभूषण और 17 लोगों को पद्म भूषण के लिए नामित किया गया है। पद्मश्री सम्मान पानेवालों में झारखंड की चामी मुर्मू और जमशेदपुर की तीरंदाजी कोच पूर्णिमा महतो भी शामिल है। यह पुरस्कार पूर्णिमा को खेल के क्षेत्र में तथा चामी को पर्यावरण संरक्षण व महिला सशक्तीकरण की दिशा में कार्य करने के लिए देने की घोषणा हुई है। 


पर्यावरण संरक्षण के लिए मिला पुरुष्कार
चामी, पेड़ों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुकी हैं। जमशेदपुर, सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड स्थित बुरसा गांव आदिवासी पर्यावरणविद चामी मुर्मू को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा। पुरस्कार की घोषणा होते ही उनके पैतृक गांव बुरसा में उल्लास है। चामी मुर्मू का जन्म छह नवंबर 1971 को बुरसा गांव में हुआ था। पर्यावरण एवं महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में चामी मुर्मू का योगदान अतुलनीय है। उन्हें वर्ष 2019 में नारी शक्ति और वर्ष 2000 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र के अलावा एक दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों सम्मानित किया जा चुका है. चामी मुर्मू अब तक 27,25 960 पौधे लगा चुकी है। 


अधिक जिम्मेवारी महसूस कर रही हूं
पूर्णिमा महतो ने कहा कि मैं काफी खुश हूं। केंद्र सरकार और टाटा स्टील के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि पद्मश्री मिलने की घोषणा मात्र से और अधिक जिम्मेवारी महसूस कर रही हूं। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत अन्य शख्सियतों ने पूर्णिमा व चामी को बधाई दी है। टाटा तीरंदाजी अकादमी की कोच पूर्णिमा को 29 अगस्त, 2013 को उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें द्रोणाचार्य के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बिरसानगर के गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली पूर्णिमा ने अपनी जीवटता व जुनून से तीरंदाजी की दुनिया में अलग पहचान बनाई और पद्मश्री दीपिका कुमारी, जयंत तालुकदार और डोला बनर्जी जैसे अनगिनत तीरंदाज देश के नाम समर्पित किए।


1998 से दे रहीं टाटा तीरंदाजी अकादमी में प्रशिक्षण

2008 ओलंपिक तीरंदाजी टीम की कोच रही पूर्णिमा ने लंदन ओलंपिक में भी भारतीय टीम के साथ रहीं। 1992 में राज्य तीरंदाजी टीम में पहली बार उनका चयन हुआ। वह कई वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियन रहीं। 1993 में अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी की टीम स्पर्धा में पदक जीतने वाली पूर्णिमा ने 1994 में पुणे में आयोजित नेशनल गेम्स में छह स्वर्ण जीतकर तहलका मचा दिया। 1994 में आयोजित एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पूर्णिमा ने 1997 में सीनियर नेशनल में रिकार्ड के साथ दो स्वर्ण अपने नाम किए। 1998 कामनवेल्थ गेम्स में रजत हासिल करने वाली बिरसानगर की इस बाला ने 1994 में टाटा तीरंदाजी अकादमी में प्रशिक्षण देना शुरू किया। 2005 में स्पेन में आयोजित भारतीय टीम ने रजत पदक जीता। 2007 में सीनियर एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में पुरुष टीम ने स्वर्ण व महिला टीम ने कांस्य पर कब्जा जमाया।