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आदिवासियों को उग्र रवैया अपनाने पर मज़बूर न करें ज़मीन लुटेरे : बंधु तिर्की

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द फॉलोअप टीम :
झारखण्ड सरकार की समन्वय समिति के सदस्य एवं झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि झारखण्ड में अपने पाँव पसार चुके ज़मीन लुटेरे, आदिवासियों को अपना तीखा तेवर और उग्र रवैया अपनाने पर मज़बूर न करें. उन्होंने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस उत्सव-उत्साह की बजाय संघर्ष के अपने इतिहास को याद कर आगे बढ़ने का दिन है. उन्होंने कहा कि 22 साल में यह साबित हो गया है कि आदिवासियों के हित उनकी रक्षा-सुरक्षा की जोर-शोर से बात करनेवाले अनेक लोग वास्तव में बहुरुपिया हैं और उन्हें आदिवासी सभ्यता संस्कृति, जल, जंगल, ज़मीन की बजाय आदिवासियों की ज़मीन लूटने और आदिवासियों विशेषकर लड़कियों-महिलाओं को पलायन के लिये मजबूर करने से ही मतलब है.

केवल आदिवासियों के लिये नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए है आदिवासी दिवस
बंधू तिर्की ने कहा कि आदिवासी दिवस, केवल आदिवासियों के लिये नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक बहुत ही खास दिन है और यह दिन हमें अपने जीवन को बेहतर रूप देने के साथ ही अपने भविष्य को ढालने और जल, जंगल, जमीन को बचाने का संदेश देता है. लेकिन श्री तिर्की ने कहा कि यदि इस दिवस को झारखण्ड के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो यहाँ जमीन लूट, बहुत ही विकट संकट के रूप में खड़ा हो गया है और इसके पीछे दलाल प्रवृति के कुछेक आदिवासियों के साथ ही वैसे तत्वों का हाथ है जिनका झारखण्ड में रहने का एकमात्र उद्देश्य शोषण उत्पीड़न, ज़मीन-खान-खदान की लूट और सस्ते मज़दूर के लिये यहाँ के लोगों को पलायन पर विवश करना है. उन्होंने कहा कि किसी को भी इस बात पर संशय नहीं होना चाहिये कि जबतक झारखण्ड में जमीन का सम्मान होगा और उसे लूट से बचाया जायेगा, तभी तक आदिवासी संस्कृति, सभ्यता एवं जीवन का अस्तित्व है.

बंधू तिर्की ने कहा कि पलायन वैसी समस्या है जिससे झारखण्ड का लगभग प्रत्येक आदिवासी परिवार किसी-न-किसी रूप में प्रभावित और प्रताड़ित हो रहा है. श्री तिर्की ने कहा कि यदि रोजी-रोजगार के अभाव में झारखण्ड से पलायन, विशेष रूप से आदिवासी बालिकाओं एवं महिलाओं के पलायन पर रोक नहीं लगायी गयी और जमीन लूट को सख्ती से न रोका गया तो इसका खामियाजा पूरे झारखण्ड और यहाँ के लोगों को लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा लेकिन सभी को यह याद रखना चाहिये कि आदिवासी समाज एकजुटता के साथ वैसे तत्वों का मुक़ाबला करेगा क्योंकि यहाँ कोई केवल ख़ामोशी के साथ अपनी बर्बादी का तमाशा देखने को नहीं बैठा है. उन्होंने कहा कि यदि आज अपनी ज़मीन को लुटने से न रोका गया तो फिर जल, जंगल, जमीन से हम आदिवासियों के जुड़ाव का भी कोई महत्व नहीं रह जायेगा.

आदिवासियों के लिए बना था झारखण्ड 

बंधू तिर्की ने कहा कि झारखण्ड का पूरा समाज और अपने प्रदेश में अनेक वैसी बीमारियाँ और विसंगतियाँ हैं जिसे दूर करना न केवल आदिवासियों के लिये बल्कि झारखण्ड में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये बहुत जरूरी है.
श्री तिर्की ने कहा कि अपनी संस्कृति की रक्षा के साथ ही परस्पर सामंजस्य, सद्भाव एवं अपने खनिज संसाधनों के साथ ही अपनी मानवीय क्षमता का पूरा उपयोग भी झारखण्ड गठन के समय हमारा लक्ष्य था. इसके अलावा झारखण्ड के बुद्धिजीवियों एवं नीति निर्माताओं के दिल में कहीं-न-कहीं यह बात भी छुपी थी कि अपने खनिज संसाधन को दूसरे प्रदेश में उसी रूप में भेजने की बजाय उसका वैल्यू एडिशन कर ही उसे झारखण्ड से बाहर भेजा जाये ताकि झारखण्ड में रहनेवाले लोगों को उसका अधिकाधिक फायदा मिल सके. लेकिन यह लक्ष्य भी दूर की कौड़ी साबित हुई श्री तिर्की ने कहा कि झारखण्ड आदिवासियों के लिए बना था और यह हमारे लिए नफरत या अपने गर्व-सम्मान को गिरवी रखने की नहीं बल्कि स्वाभिमान की वैसी ज़मीन है जो साक्षात जीवन का प्रतीक है.