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कुड़माली स्वतंत्र भाषा, इसका अपना लोक साहित्य और लोक संस्कृति है, सम्मेलन में बोले श्रीनिवास राव 

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रांची 
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ओर से आयोजित कुड़माली भाषा सम्मेलन में अकादमी के सचिव श्रीनिवास राव ने कहा कि कुड़माली एक स्वतंत्र भाषा है। इसका अपना लोक साहित्य और लोक संस्कृति है। बता दें कि स्थित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में आज से दो दिवसीय कुड़माली भाषा सम्मेलन की शुरुआत हुई है। मौके पर साहित्य अकादमी के पदाधिकारी और विश्वविद्यालय के कुलपति एवं अन्य गण्यमान्य लोग मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत कुड़माली विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा कुड़माली संस्कृति के अनुरूप परछन कर किया गया। सम्मेलन का उद्घाटन परंपरागत संस्कृति के अनुसार ‘कुड़माली चमक’पर दीप प्रज्वलित कर किया गया।


कुड़माली को अंतरराष्ट्रीय भाषा बताया
पहले दिन अकादमी की ओर से आये सचिव के श्रीनिवास राव ने कहा कि कुड़माली एक स्वतंत्र भाषा है। इसके अपने विशिष्ट गीत हैं, अपनी आधुनिक रचित साहित्य, व्याकरण, सुर, ताल, लय हैं। विषय प्रवेश कुड़माली के प्राख्यात लेखक डॉ एचएन सिंह ने कराया। बीज भाषण के रूप में छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय, मंबई के कुलपति डॉ केशरी लाल वर्मा ने कहा कि यह पहला मौका है जब कुड़माली को लेकर राष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है। उन्होंने कुड़माली को एक समृद्ध भाषा कहा। कहा कि इसके लोकगीतों में उधवा, डाइड़धरा, डमकच, बिहा, कुंवारी झुपान, करम, टुसु आदि काफी लोकप्रिय हैं। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ तपन कुमार शाण्डिल्य ने कुड़माली को अंतरराष्ट्रीय भाषा बताया। मंच संचालन कुड़माली विभाग के डॉ परमेश्वरी प्रसाद महतो ने एवं धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादमी के उपसचिव एन सुरेश बाबु ने दिया। 

आज तीन सत्र हुए 
सम्मेलन के दौरान आज कुल तीन सत्र हुए। पहले सत्र में पश्चिम बंगाल के आये कुड़माली विद्वान डॉ पुलकेश्वर महतो ने कुड़माली साहित्य के सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक सरोकारों पर प्रकाश डाला। वहीं, डॉ मंजय प्रमाणिक ने कुड़माली साहित्य के विविध पक्षों का ऐतिहासिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। संगीता कुमारी ने कुड़माली कथा साहित्य पर चर्चा करते हुए इसके समृद्ध शिष्ट साहित्य होने की बात कही। इस सत्र का मंच संचालन डॉ परमेश्वरी प्रसाद महतो ने किया। द्वितीय सत्र में डॉ एचएन सिंह ने कुड़माली भाषा को एक स्वतंत्र भाषा होने पर बल दिया। बंगाल से आये डॉ सनत कुमार महतो ने कुड़माली भाषा के वैशिष्टता पर चर्चा की। डॉ राकेश किरण ने कुड़माली भाषा के आधुनिक विकास के विविध आयाम को बताया। ज्ञानेश्वर सिंह ने कुड़माली भाषा की लिपि समस्या एवं इसके समाधान पर प्रस्तुत किये। तीसरे सत्र में कुड़माली साहित्यकार रतन कुमार महतो ने कहा कि अपने बच्चों को कुड़माली संस्कृति के प्रति जागरूक करें। सत्र में आलेख पाठ जयंती कुमारी तारकेश्वर सिंह मुंडा ने किया। 

प्रवेश के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन पंजीयन की सुविधा  

आयोजकर्ताओं ने बताया कि दूसरे दिन यानी 7 दिसबंर को कुल चार सत्र होंगे। इसमें झारखंड, बंगाल, ओडिशा से कई प्रतिभागी, छात्र-छात्राएं, समाजकर्मी उपस्थित रहेंगे। आज प्रमुख रूप से झारखंड अद्यविध परिषद के अध्यक्ष डॉ अनिल कुमार महतो, डॉ वृंदावन महतो, प्रो सुभाष चंद्र महतो, डॉ पंचानन महतो आदि उपस्थित थे। कुड़माली भाषा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजाराम महतो ने अतिथियों को स्वलिखित पुस्तक एवं साल देकर सम्मानित किये। बता दें कि कार्यक्रम में भाग लेने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन पंजीयन की सुविधा है।