द फॉलोअप डेस्कः
सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। उन्होंने एक पत्र के माध्यम से अपना दर्द बयां किया है कि कैसे वह पार्टी में रहकर खुद को उपेक्षित महसूस कर रही थीं। अब उनके आरोपों पर उनकी देवरानी कल्पना मुर्मू सोरेन ने पलटवार किया है। कल्पना ने दिवंगत दुर्गा सोरेन और उनके बलिदानों को याद किया है। उन्होंने कहा कि हेमंत जी कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे लेकिन वह दुर्गा दादा ही थी जिनके संघर्षों को आगे बढ़ाते हुए हेमंत जी ने राजनीति में कदम रखा था। हेमन्त जी के लिए दुर्गा दा, सिर्फ बड़े भाई नहीं बल्कि पिता के समान थे। 2006 में मैं जब ब्याह के बाद इस बलिदानी परिवार का हिस्सा बनी तो मैंने हेमंत जी का अपने बड़े भाई के प्रति आदर और समर्पण देखा। मैंने दुर्गा दा का हेमंत जी के प्रति प्यार देखा। दुर्गा दादा की असामयिक मृत्यु और आदरणीय बाबा के स्वास्थ्य को देखते हुए हेमंत जी को राजनीति में आना पड़ा। हेमन्त जी ने राजनीति को नहीं चुना था बल्कि राजनीति ने हेमन्त जी को चुन लिया था। वह तो आर्किटेक्ट बनना चाहते थे लेकिन उनके ऊपर झामुमो, आदरणीय बाबा और स्व दुर्गा दा की विरासत और संघर्ष को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी थी।
कल्पना यहीं नहीं रुकी उन्होंने आगे यह भी कहा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का जन्म समाजवाद और वामपंथी विचारधारा के समन्वय से हुआ था। झामुमो आज झारखंड में आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों समेत सभी गरीबों, वंचितों और शोषितों की विश्वसनीय आवाज बन कर आगे बढ़ रहा है। आदरणीय बाबा एवं स्व दुर्गा दा के संघर्षों और जो लड़ाई उन्होंने पूंजीपतियों-सामंतवादियों के खिलाफ लड़ी थी उन्हीं ताकतों से लड़ते हुए आज हेमन्त जी जेल चले गये। वे झुके नहीं। उन्होंने एक झारखण्डी की तरह लड़ने का रास्ता चुना। वैसे भी हमारे आदिवासी समाज ने कभी पीठ दिखाकर, समझौता कर, आगे बढ़ना सीखा ही नहीं है। झारखण्डी के DNA में ही नहीं है झुक जाना।
आपको मालूम हो कि सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन ने 19 मार्च को परिवार और जेएमएम पर उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं इस्तीफे के बाद सीता सोरेन ने बीजेपी का दामन थाम लिया। सीता सोरेन ने मंगलवार को पत्र में साफ साफ लिखा है कि वह उपेक्षा का शिकार हो रही थीं। उन्होंने बताया है कि मेरे स्वर्गीय पति दुर्गा सोरेन, जो कि झारखंड आंदोलन के अग्रणी योद्धा और महान क्रांतिकारी थे। उनके निधन के बाद से ही मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार रहा है। पार्टी और परिवार के सदस्यों द्वारा हमें अलग थलग किया गया है। जो मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक है। मैंने उम्मीद की थी कि समय के साथ स्थितियां सुधरेंगी लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। झारखंड मुक्ति मोर्चा जिसे मेरे पति ने अपने त्याग, समर्पण और नेतृत्व क्षमता के बल पर एक महान पार्टी बनाया था, आज वह पार्टी नहीं रही। मुझे यह देखकर गहरा दुख होता है कि पार्टी उन लोगों के हाथों में चली गयी है जिनके दृष्टिकोण और उद्देश्य हमारे मूल्यों और आदर्शों से मेल नहीं खाते।
सीता सोरेन ने लिखा है कि गुरुजी के अथक प्रयासों के बावजूद जिन्होंने हम सभी को एकजुट रखने के लिए कठिन परिश्रम किया, अफसोस कि उनके प्रयास भी विफल रहे. मुझे हाल ही में ज्ञात हुआ है कि मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ भी एक गहरी साजिश रची जा रही है। मैं अत्यंत दुखी हूं। मैंने यह दृढ़ निश्चय किया है कि मुझे झारखंड मुक्ति मोर्चा और इस परिवार को छोड़ना होगा।