द फॉलोअप डेस्क
झारखंड मुक्ति मोर्चा के युवा नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने पलामू प्रमंडल के युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में हिंदी भाषा को स्थानीय भाषा के विकल्प के रूप में शामिल किए जाने की मांग को लेकर पूर्व मंत्री मिथिलेश ठाकुर को एक ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे सन्नी शुक्ला और आशुतोष विनायक ने कहा कि पलामू प्रमंडल की कोई एक विशिष्ट स्थानीय भाषा नहीं है। इस क्षेत्र में मगही, भोजपुरी जैसी भाषाओं का प्रभाव तो देखा जाता है, लेकिन प्रशासनिक, शैक्षणिक और सार्वजनिक जीवन में हिंदी ही प्रमुख संवाद भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है।
सरकारी और निजी विद्यालयों में भी माध्यम भाषा हिंदी ही है, जबकि झारखंड सरकार द्वारा स्थानीय भाषा परीक्षा को अनिवार्य कर देने से इस क्षेत्र के युवाओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। युवाओं ने स्पष्ट किया कि चूंकि अधिकांश अभ्यर्थी हिंदी माध्यम से पढ़े हैं और अन्य योग्यताओं में पूर्णतः सक्षम हैं, फिर भी भाषा परीक्षा में असफल हो जाने के कारण वे नौकरियों से वंचित रह जाते हैं। पूर्व मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाते हुए कहा कि वे इस न्यायसंगत मांग के समर्थन में मुख्यमंत्री से मुलाकात कर समाधान का प्रयास करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि इस मुद्दे पर उन्होंने पहले ही मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियों में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता दिए जाने की मांग की थी।
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि सरकार से आग्रह किया जाएगा कि नियुक्ति प्रक्रिया में हिंदी, मगही और भोजपुरी भाषाओं को भी विकल्प के रूप में शामिल किया जाए, जिससे पलामू प्रमंडल के युवाओं को उनका अधिकार और अवसर मिल सके। युवाओं ने विश्वास जताया कि मिथिलेश ठाकुर जैसे जनप्रतिनिधि पलामू के युवाओं की सशक्त आवाज़ बनकर उभरेंगे और इस संघर्ष को सकारात्मक दिशा देंगे। इस प्रतिनिधंडल में अविनाश दुबे उर्फ टुनटुन, प्रियम सिंह, प्रवीण तिवारी, मयंक द्विवेदी, निशांत चतुर्वेदी, चंदन पासवान, बमबम सिंह उपस्थित थे।