द फॉलोअप डेस्कः
झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की ईडी की याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के बाद प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ तस्वीरें शेयर की है जो दिल को छू लेने वाली है। उन्होंने अपने पोस्ट में बताया है कि 5 महीने तक जब वह जेल में रहे तो इस दौरान अपने बच्चों को उन्होंने कितना याद किया। उन्होंने पोस्ट कर लिखा है कि "माननीय हाई कोर्ट के बाद अब माननीय सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला। मैं हमेशा मानता हूँ कि सत्य को थोड़े समय के लिए परेशान तो किया जा सकता है परन्तु पराजित कभी नहीं। 5 महीनों के जेल के दौरान जो सबसे ज़्यादा दुःखद था वो था अपने बच्चों से दूर रहना। सत्यमेव जयते।"
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद हेमंत सोरेन ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि ''मैं जेल के अंदर था और मेरा कीमती वक्त जाया किया गया अगर यह नहीं होता तो मैं कई मुद्दों का हल कर देता. सुप्रीम कोर्ट सबसे महत्वपूर्ण है और मैं मानता हूं कि यह लोकतंत्र का एक स्तंभ है जहां अंधेरा नहीं है।''
हेमंत सोरेन ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा, ''ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं ऱाज्य की संपत्ति को लेकर घूम रहा हूं या फरार हो गया हूं इसके लिए मुझे जेल के सलाखों के पीछे भी डाल दिया गया। और बहुत तरीके से सोरेन परिवार के ऊपर लांछन लगे। और मेरा कीमती वक्त का भी इन लोगों ने जाया किया। आज राज्य के कोने-कोने से लोग अपनी आवश्यकताओं को लेकर मुझसे मिलने आ रहे हैं। अपनी समस्याओं के बारे में मिले हैं। शायद हमारा कीमती वक्त ये लोग बर्बाद नहीं करते तो मैं आज अनिगिनत समस्याओं का समाधान हो चुका होता।''
VIDEO | “I was put behind bars and the Soren family was accused of a lot of things. If my precious time was not wasted then maybe I would have solved many issues by now. The Supreme Court is most important and I believe it is one pillar of democracy where darkness is not there,”… pic.twitter.com/7qgxhhKLNN
— Press Trust of India (@PTI_News) July 29, 2024
बीजेपी पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला करते हुए हेमंत सोरेन ने कहा, ''आज न्यायालय सर्वोपरि है। जिस लोकतंत्र का वह स्तंभ है जहां मैं समझता हूं कि अंधकार नहीं है। लेकिन कुछ समूह ऐसे भी हैं जो न्यायालय के वक्तों को बर्बाद करते हैं और बेवजह समाज में काम करने वाले लोग हैं चाहे वो राजनीति या सामाजिक रूप से हों, और जो समाज के गरीब, आदिवासी, दलित और पिछड़ों की आवाज बनने का काम कर रहे हैं उनकी आवाजों को बंद करने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। और आज फिर से सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से ये बातें साबित हो गईं.''