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Ranchi : जनजातीय महोत्सव के समापन समारोह में आज शिरकत करेंगे छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल 

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रांचीः 

झारखंड जनजातीय महोत्सव (Tribal Festival in ranchi) का आज समापन समारोह है। आज छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शिरकत करने वाले हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मौजूदगी इस कार्यक्रम को आयोजित किया जाएगा। मंगलवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (cm hemant soren) और दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने विधिवत कार्यक्रम की शुरुआत की थी। दो दिवसीय इस महोत्सव में देश विदेश के कलाकार और विद्वान शिरकत कर रहे हैं जो ट्रायबल हिस्ट्री पर विचार रखेंगे।


मेरी आदिवासी पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई भी
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि आज जब मैं आपसे इस मंच के माध्यम से मुखातिब हो रहा हूं तो बता दूं कि मेरे लिए मेरी आदिवासी पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई है। आज हम एक ढंग से अपने समाज के पंचायत में खड़े होकर बोल रहे हैं। आज हम अपनी बात करने के लिए खड़े हुए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सच है कि संविधान के माध्यम से अनेकों प्रावधान किये गए हैं जिससे कि आदिवासी समाज के जीवन स्तर में बदलाव आ सके। परन्तु, बाद के नीति निर्माताओं की बेरुखी का नतीजा है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी वर्ग है।


हर साल आयोजन किया जाएगा 
हेमंत सोरेन ने सभा को संबोधित करते हुए  कहा कि झारखंड में हर साल जनजातीय सम्मेलन (Tribal Festival in ranchi) का आयोजन किया जाएगा। आदिवासियों की पहचान के लिए बड़ा संकट खड़ा हुआ है। जिस विविधता के कारण हमें आदिवासी समाज (tribal society) का माना गया है। उसे आज के नीति निर्माता मानने से गुरेज कर रहे है। हमारे संवैधानिक मान्यता सिर्फ चर्चा का विषय है। जमीन, संस्कृति और भाषा हम आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. आज की मूल भावना के लिए आदिवासी समाज (tribal society) ही सबसे घृणित है और वह हमें ही कहा जाता है जो विविधता से भरे समूह हैं। उनके लिए हम यही माने जाते हैं जहां वन बचाओ जंगल बचाओ की बात होती है लेकिन आदिवासी बचाव की बात कोई नहीं करता। 


ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार का आयोजन
मंगलवार को कार्यक्रम में जनजातीय परंपराओं के जानकार विभिन्न मंचों से अलग-अलग विषयों पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। जनजातीय समुदाय का कैसे पहाड़ों, नदियों और जंगलों से अटूट रिश्ता रहा है, इसे लेकर साहित्य के अलग-अलग पहलुओं के साथ मंच से अपनी बातों को रखा। इस अवसर पर प्रयागराज से प्रो. जनारदन गोण्ड, कविता करमाकर (असम) , संतोष कुमार सोनकर, बिनोद कुमार (कल्याण, मुम्बई) , दिनकर कुमार (गुवाहाटी) , अरूण कुमार उरॉव (जेएऩयू, नई दिल्ली) , हेमंत दलपती (ओडिशा) , सानता नायक (कर्नाटक) , रूद्र चरण मांझी (बिहार) , डॉ. देवमेत मिंझ (छत्तीसगढ़) , कुसुम माधुरी टोप्पो, महादेव टोप्पो और प्रो.  पार्वती तिर्की (राँची) आदि साहित्य के विद्वानों ने जनजातीय साहित्य के बारे में अपने विचार को साझा किया।  


ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी पर सेमिनार
ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी पर आयोजित सेमिनार में मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व को बताया गया।  वक्ताओं ने कहा कि हम अपने लिए जनजाति समाज का अध्ययन करते हैं, जबकि यह उन जनजातियों के विकास के लिए होना चाहिए। यह शब्द जनजाति भी उन्हें औरों का दिया है। क्या वे खुद को जनजाति कहलाना पसंद करते हैं भी या नहीं। पहले पूरे गांव की जमीन हुआ करती थी। आज जमीन का प्राइवेटाइजेशन हो गया है। वक्ताओं ने बताया कि जनजाति आंदोलनों को फिर से पढ़ने की आवश्यकता है। लोग उसके बारे में जान नहीं पा रहे। उन्होंने जनजाति समूह द्वारा निर्मित चीजों को जीआई टैग से जोड़ने की बात कही, ताकि उनकी सामग्री का उन्हें उचित मूल्य मिल सके।