द फॉलोअप डेस्क
झारखंड राज्य के कई अनुसूचित जनजाति भुईहर मुंडा, लोहरा-लोहार, करमाली, खुंटकटी मुंछर, कम्पाट मुंडा, चीकबड़ाईक जैसे जनजातीय समुदाय को खतियान में हुई लिपिकीय त्रुटि एवं अधिकारियो की असंवेदनशीलता के कारण जनजातीय समुदाय को जाति प्रमाण पत्र बनाने में कठिनाई का सामना करना पड रहा है। उन्हें उनका संवैधानिक अधिकार नहीं मिल पा रहा। ये बातें कांग्रेस भवन में मीडिया को संबोधित करते हुए प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कही। इस दौरान प्रदेश महासचिव अमुल्य नीरज खलखो एवं राकेश सिन्हा, बेलस तिर्की उपस्थिति थे। बंधु ने बताया कि मुंडा जनजाति की पहली उपजाति भुईहर मुंडा से जुड़ा है। केंद्र सरकार की जनजातियों मामले से संबंधित मंत्रालय के अधिकारियों के असंमजस, संवादहीनता या फिर त्रुटिपूर्ण प्रतिवेदन के कारण मुंडा जनजाति की उपजाति भुंईहर मुंडा एवं भुंईहर को अगड़ी जाति में शामिल कर लिया गया। उसे बिहार की भूमिहार ब्राह्मण जाति से जोड़ कर देखा जाने लगा। जो कि असंगत एवं गलत होने के साथ ही व्यवहारिक एवं तथ्यात्मक दृष्टिकोण से भी उपेक्षापूर्ण स्थिति में है।
तीन लाख से ज्यादा लोग झारखंड में हैं
बंधु तिर्की ने बताया कि इस जनजाति के तीन लाख से ज्यादा लोग सिमडेगा, गुमला, लातेहार, गढ़वा और पलामू जिले में रहते हैं। मगर झारखण्ड में अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल नहीं होने के कारण भुईहर मुंडा एवं भुईंहर समाज के लोगों की पहचान धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। अब ये लोग सांस्कृतिक, आर्थिक और समाजिक दृष्टिकोण से भी बहुत ही उपेक्षापूर्ण स्थिति में हैं। दिलचस्प बात यह है कि सिमडेगा में भुईहर मुंडा और भुईहर जनजाति के लोग ही पाहन हैं। उनकी जमीन भुईहरी जमीन के रूप में जानी जाती है। मगर ये अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं हैं। इस जनजाति के लोग देश के अनेक प्रदेश में आदिकाल से निवास कर रहें हैं। छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश जैसे प्रदेशों में इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। मगर झारखंड में मुंडा जनजाति की उपजाति भुईहर मुंडा एवं भुईहर की एक बड़ी आबादी होने के बावजूद इनकी पहचान, गरिमा, सम्मान एवं इनका अस्तित्व शब्दों के मकड़जाल में फंस कर रह गया है।
आदिवासियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रही भाजपा
बंधु तिर्की ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरन को भी पत्र लिखकर भुईहर मुंडा एवं भुईहर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करवाने के लिए न्यायमूर्ति लुकुर कमेटी के प्रतिवेदन व दिशानिर्देशों के अनुरूप विस्तृत आर्थिक एवं सामजिक सर्वेक्षण करवाने एवं उसका प्रतिवेदन भारत सरकार के रजिस्ट्रार जेनरल को भेजने के लिए अनुरोध किया है। कयोंकि अनुसूचित जनजाति में शामिल करवाने के लिए यह अनिवार्य शर्त है। बंधु ने भाजपा प निशाना साधते हुए कहा कि आदिवासी के नाम पर राजनीतिक करने वाली भाजपा अभी तक खमोश हैं, जबकि केंद्र में उसकी सरकार है। इससे साफ है कि भाजपा सिर्फ हम आदिवासियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रहीं हैं। झारखंड में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों की सूची की यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विसंगति है। जिसे अविलंब सुधारने की जरूरत है।
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