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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा समय में बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने 1932 के खतियान पर चुप्पी तोड़ी है। बाबूलाल मरांडी ने कैबिनेट द्वारा 1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार मानने के प्रस्ताव को मंजूरी दिए पर कहा कि ये जल्दीबाजी में लिया गया फैसला है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि स्थानीयता को लेकर पूर्व के न्यायिक निर्णयों को समीक्षा किए बिना केवल राजनीतिक लाभ के लिए राज्य सरकार ने इसे मंजूरी दी है। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि हेमंत सरकार ने पुराने अनुभवों से कोई सीख नहीं ली। उन्होंने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से कई सवाल उठाए हैं।
बाबूलाल मरांडी ने याद किया अपना कार्यकाल
बाबूलाल मरांडी ने अपने ऑफिशियल फेसबुक पेज पर सिलसिलेवार पोस्ट में लिखा है कि झारखंड अलग राज्य बनने के बाद जब मैं मुख्यमंत्री बना, तो मेरी प्राथमिकता यहां के लोगों की नियोजन की थी। मैंने एक सर्वदलीय बैठक बुलाई और सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बिहार सरकार के द्वारा 1982 में जो स्थानीय और नियोजन नीति बनी थी उसे ही अंगीकार किया जाए। कैबिनेट की बैठक में इसे अंगीकार कर लिया गया। उसमें लिखा हुआ था कि पिछले Survey Rights of Record में जिनके पूर्वजों का नाम होगा, उन्हें स्थानीय माना जाएगा एवं जिले स्तर के तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी।
हाईकोर्ट में क्यों निरस्त हुआ था फैसला!
बाबूलाल मरांडी ने आगे लिखा है कि उस सर्वदलीय बैठक में तय हुआ कि अगर किसी एक पद के लिये समान योग्यता हो तो स्थानीय को प्राथमिकता दी जाएगी। इस निर्णय के बाद कुछ लोग हाई कोर्ट चले गए। कोर्ट ने इस मामले को निरस्त कर दिया। उसके बाद से ही स्थानीय एवं नियोजन नीति बनाने की मांग हो रही थी।
बाबूलाल मरांडी ने फैसले पर उठाए सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने लिखा कि इसी 14 सितंबर को हेमंत सोरेन जी ने 1932 आधारित एक प्रस्ताव पारित कर दिया, जबकि खुद पिछले मार्च महीने में उन्होंने सदन में स्वीकार किया था कि अगर वो 1932 का प्रस्ताव लाते हैं तो कोर्ट इसे निरस्त करेगा और वह किसी भी हालत में नहीं टिकेगा। सरकार ने बिना किसी पूर्व न्यायिक निर्णयों की समीक्षा किए हड़बड़ी में यह प्रस्ताव पारित कर दिया, न ही पुराने अनुभव से कुछ सबक ली न ही लोगों के हित की रक्षा कैसे हो इसपर कोई चिंता की। बाबूलाल ने लिखा कि लगता है सिर्फ़ राजनैतिक लाभ की लालसा में सरकार ने हड़बड़ी में यह निर्णय लिया है।
सरकार को प्रस्ताव का अध्ययन करना चाहिए था
बाबूलाल मरांडी आगे लिखते हैं कि सरकार को इतनी हड़बड़ी दिखाने के बजाय इस प्रस्ताव का पूरा अध्ययन करना चाहिए था। एक ऐसा प्रस्ताव लाना था,जिससे सभी के हितों की रक्षा होती। लेकिन सिर्फ़ राजनैतिक लाभ के लिये लाया गया प्रस्ताव देखकर यही लगता है कि राज्य सरकार ने पूर्व के निर्णयों की कोई समीक्षा नहीं की। इससे कोई लाभ नहीं होगा।
बीते बुधवार को हेमंत कैबिनेट ने दी थी मंजूरी
गौरतलब है कि बीते बुधवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में बुलाई गई कैबिनेट की बैठक में 1932 के खतियान को झारखंड में स्थानीयता का आधार मानने और 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। सत्तापक्ष के ही कई विधायकों की ओर से विरोध के स्वर उठे हैं। कांग्रेस की एक सांसद ने भी इस पर आपत्ति जताई है। बीजेपी ने कहा है कि बिना नियोजन के आधार पर स्थानीयता की बात करना कहां तक सही है। अब बाबूलाल मरांडी ने सवाल उठाए हैं।