द फॉलोअप डेस्कः
आज नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी बांग्लदेशी घुसपैठियों के मुद्दे को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। इस दौरान उन्होंने राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला और कहा कि बंग्लादेशी घुसपैठ को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसकी लगातार सुनवाई हो रही है। भाजपा हमेशा इस मुद्दे को उठाता है कि झारखंड की डेमोग्राफी चेंज हुई है। इस कारण देश के संप्रभुता पर भी खतरा मंडरा रहा है। वहीं झारखंड के आदिवासियों मूलवासियों के अस्मिता भी खतरे में है। विशेषकर संथाल परगना में। चाहे वह पाकुड़ है, चाहे साहिबगंज है। उन जिलों के माध्यम से भयंकर घूसपैठ हो रहा है। ऐसे में हमारे माटी, बेटी, रोटी के अस्मिता की प्रश्न खड़े हुए है। भाजपा के इस प्रबल दावे को जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी लगातार खारिज करती रही है। लेकिन जब हाईकोर्ट ने इस गंभीर विषय को संज्ञान में लिया पीआईएल के माध्यम से और कहा कि संथाल परगना की डेमोग्राफी चेंज हो रही है। और वहां के छह जिलों के डीसी और एसपी सीधे उनको रिपोर्ट करें कि उसके लिए वह क्या कर रहे हैं।
तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति कर रही सरकार
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार घुसपैठियों की संरक्षक है। तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए सबसे बड़ी रहनुमा है। इस अति गंभीर समस्या को मानने की जगह वो इस पर लिपापोती कर रही है। जिसका नतीजा होता है कि कोई भी रिपोर्ट वह सही नहीं देती है। आपने देखा होगा कि पिछले सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार को भी ताकिद किया कि यह जो समस्या है इसमें राज्य और केंद्र सरकार दोनों की जवाबदेही बनती है। इसलिए केंद्र सरकार भी एफिडेफिट के माध्यम से इस समस्या पर अपने विचार रखे। राज्य सरकार ने डीसी और एसपी के माध्यम में एफिडेफिट दायर किया था वो पूरी तरह से हाईकोर्ट ने खारिज किया था। उनके इस कठोर निर्देशन के बाद आज हाईकोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक एफिडेफिट दायर किया है। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि इनफ्लाटेशन, घुसपैठ झारखंड और संथाल परगना के लिए एक बड़ा खतरा के रूप में उभरकर आया है। उन्होंने ये भी माना है कि इसके कारण डेमोग्राफी चेंज हुई है। उन्होंने कुछ आंकड़े भी दिए हैं। जिससे साफ दिखता है कि एसपीटी एक्ट का भयंकर उल्लंघन हुआ है। उसमें कहीं ना कहीं राज्य सरकार का सरंक्षण प्राप्त है। किस तरह से पाकुड़ के रास्ते साहिबगंज के रास्ते मदरसों के माध्यम से आधार कार्ड जैसे डॉक्यूमेंट बनाकर झारखंड के अंदर बस रहे हैं और यहां के संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां के सोशिय़ो, इको सिस्टम को डैमेज कर रहे हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
अमरी बाउरी ने कहा कि आधार किसी को नागरिकता का प्रमाण नहीं देता है। किसी के पास आधार है तो इसका मतलब यह नहीं कि वो भारत का नागरिक है। यह गृह मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा है। केंद्र ने जो एफिडेफिट दायर किया है उसके माध्यम से कहा है कि 1951 में 23 लाख 22 हजार 92 यह कुल आबादी थी संथाल परगना में। जिसमें हिंदू थे 20 लाख 98 हजार 492 यानि कुल आबादी का 90 प्रतिशत। वहीं 1951 में मुस्लिम आबादी थी 2 लाख 19 हजार 444 कुल आबादी का 9.43 प्रतिशत। वहीं आदिवासियों की आबादी थी 10 लाख 37 167 कुल आबादी का 44.67 प्रतिशत। 2011 की जनगणना के हिसाब से 69 लाख 69 हजार 97 थी जहां हिंदूओ की आबादी 47 लाख 35 हजार 723 यानि कुल आबादी का 67.95 प्रतिशत थी। वहीं मुस्लिस की आबादी 15 लाख 84 हजार 285 कुल आबादी का 22.73 प्रतिशत हो गया। जो 1951 के मुकाबले बढ़ गई। वहीं आदिवासियों की आबादी 19 लाख 59 हजार 133 यानि कुल आबादी का 28.11 प्रतिशत। 1951 के मुकाबले 44.67 आदिवासी घटकर हो जाते हैं 28.11। पूरे देश में 1951 की जनसंख्या हिंदूओं की जनसंख्या की जो गिरावट है वो अनुपातिक रूप में 2011 में दर्ज किया गया है 4.28 प्रतिशत। वहीं संथाल परगना में हिंदूओं की आबादी घटी है वो है 22.42 प्रतिशत। आप अब समझिए कि ये प्राकृतिक रूप से नहीं है। इसका मुख्य कारण है अवैध घुसपैठ।
केंद्र सरकार के पास भी है पूरी ताकत
भारत सरकार ने राज्य सरकार से कहा है कि झारखंड सरकार के पास संवैधानिक पावर है कि ऐसे लोगों को चिन्हित करे और वापस भेजे। भारत सरकार ने ये भी कहा है कि भारत सरकार इस गंभीर मसले को समाधान के लिए पूरा ताकत रखती है। भारत की सरकार के पास पूरी ताकत है कि हम ऐसे लोगों को चिन्हित भी करे और उनको भेजे। अगर राज्य सरकार ऐसा नहीं कर पाती है तो केंद्र के पास पूरा ताकत है कि घुसपैठियों को चिन्हितीकरण कर वापस भेज सकते हैं। उन्होंने कहा कि एनआरसी होना चाहिए। केंद्र सरकार ने कहा है कि आधार कार्ड सिर्फ यूनिक आईडेंटिफिकेशन के लिए है। एनआरसी ही किसी को रजिस्टर्ड नागरिकता से जोड़ सकता है। राज्य सरकार इस मसले पर जवाब देने के लिए अभी भी समय चाहती है। हाईकोर्ट ने कहा है कि आप कमिटी बनाइए और कमिटी फॉर्म में इसको आगे बढ़ाइए। केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर इस कमिटी को हैंडल करे। जो नाम आएगा वो कोर्ट देखेगी। नहीं तो अपने तरीके से इन नामों का प्रस्ताव करेगी। संप्रभुता ही हमारे होने का सबसे बड़ा सबूत है। इसपर किसी भी तरह का कुठारा घात होता है तो इसको गंभीरता से लेने की जरूरत है।
पदाधिकारियों को आगे करके राननीति ना करे सरकारः अमर बाउरी
यहां दिक्कत ये है कि राज्य सरकार का गृह मंत्रालय या गृह सचिव इस बात में व्यस्त है कि अपने इस तुष्टिकरण की सरकार को कैसे बचाए इसको कैसे आगे लेकर जाए। अब एक राजनीतिक कार्यकर्ता पदाधिकारी के रूप में एक्ट करने लगे तो इस तरह की घटना होगी ही होगी। मेरी यह मांग है राज्य सरकार से कि राजनीति में अपने पदाधिकारियों को ना झोंकते हुए उनको उनका काम करने दीजिए। आप अगर राजनीति में नहीं सक रहे हैं। आपके दल में कोई राजनेता नहीं बचा है जो भाजपा का मुकाबला कर सके। तो फिर आपको जनता हराएगा। पदाधिकारियों को आगे बढ़ाकर राजनीतिक खेलने के लिए भेजेंगे तो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा।