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सियासत : क्या कल्पना सोरेन होंगी राज्य की अगली सीएम, जानिए क्यों गहरा सकता है संवैधानिक संकट! 

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रांची: 

20 मई को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को केंद्रीय निर्वाचन आयोग की नोटिस का जवाब देना है। यदि 20 मई के बाद चुनाव आयोग का फैसला खनन पट्टा लीज मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ आता है। यदि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में हेमंत सोरेन को दोषी करार देकर उनकी सदस्यता रद्द की जाती है तो झारखंड में राजनैतिक संकट खड़ा होगा। ऐसी स्थिति में सत्तापक्ष और विपक्ष के पास क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा सत्ता में बने रहने के लिए क्या विकल्प तलाशेगी। ऐसे में कांग्रेस पार्टी का रुख क्या होगा। बीजेपी चिर-परिचित अंदाज में सरकार बनाने का दावा पेश करेगी या राष्ट्रपति शासन की मांग करेगी। ये कई सवाल हैं जिससे इन दिनों झारखंड की सियासी गलियां गुंजायमान है। 

20 शेल कंपनियों को लेकर हाईकोर्ट का फैसला
दरअसल, पूजा सिंघल प्रकरण में ईडी की पूछताछ में 20 शेल कंपनियों का पता चला है जिसके जरिए ब्लैक मनी का व्हाइट में तब्दील किया जाता था। जांच की आंच में कई लोग झुलस रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक कई रसूखदार, ईडी की निगाहों में है। हाल ही में झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल से ईडी ने पूछताछ की। पाकुड़, लातेहार और साहिबगंज के जिला खनन पदाधिकारी को सोमवार को ईडी ने पूछताछ के लिए तलब किया है। शेल कंपनियों में सत्ता और नौकरशाही से जुड़े कई करीबियों के शामिल होने की बात कही जा रही है। गौरतलब है कि 17 मई को हाईकोर्ट से शेल कंपनियों में निवेश से संबंधित फैसला आ सकता है। हो सकता है कि इसमें कई अहम नाम जद में आयें। 

खनन पट्टा लीज मामले में चौतरफा घिरे हैं मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर पद का दुरुपयोग करते हुए खनन पट्टा का लीज लेने का आरोप है। 20 मई तक उनको चुनाव आयोग की नोटिस का जवाब देना है। चुनाव आयोग ने पूछा है कि इस मामले में आपके खिलाफ जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9 (ए) के तहत कार्रवाई क्यों ना की जाये। जाहिर है कि मुख्यमंत्री के जवाब दाखिल करने के बाद चुनाव आयोग इस संबंध में फैसला सुनाएगा। 


यदि, मुख्यमंत्री को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का दोषी पाया गया तो उनको अयोग्य करार दिया जायेगा। उनको अपनी सदस्यता गंवानी पड़ेगी और ऐसी स्थिति में राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा हो जायेगा क्योंकि सदस्यता रद्द होते ही हेमंत सोरेन सीएम होने की पात्रता भी खो देंगे। कहा जा रहा है कि इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर मुख्यमंत्री ने चुनाव आयोग से वक्त मांगा था। 


उनको दरअसल, 10 मई तक ही जवाब दाखिल करना था लेकिन विकल्पों पर चर्चा तथा कानूनी सलाह के लिए मां रूपी सोरेन की तबीयत का हवाला देकर मुख्यमंत्री ने कुछ वक्त की मोहलत मांगी थी। सीएम ने 30 दिन मांगा था लेकिन आयोग ने 10 दिन दिया। इसकी मियाद पूरी हो रही है। 

कल्पना सोरेन सहित इन विकल्पों पर जारी है विचार
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्त मोर्चा चुनाव आयोग के प्रतिकूल फैसले की आशंका को देखते हुए कई विकल्पों पर विचार कर रही है जिसमें से एक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का इस्तीफा भी है। जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री इस्तीफा देकर सोरेन परिवार के ही किसी व्यक्ति अथवा पार्टी के किसी भरोसेमंद शख्स को सीएम की कुर्सी पर बिठा सकते हैं। जिन विकल्पों पर चर्चा की जा रही है उनमें सबसे पहला नाम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की धर्मपत्नी कल्पना सोरेन का बताया जा रहा है।

शिबू सोरेन पर विचार नहीं किया जा रहा क्योंकि वो काफी बुजुर्ग हो चुके हैं। उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती। सरकार चलाने जितनी क्षमता अभी उनमें नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की तरफ से मौजूदा परिवहन मंत्री चंपाई सोरेन का नाम भी चर्चा में है। चंपाई सोरेन वरिष्ठ नेता हैं। सरायकेला से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैंष। सोरेन परिवार के भरोसेमंद भी हैं। युवाकाल में शिबू सोरेन के दाहिने हाथ रहे हैं।


हालांकि, सोरेन परिवार से इतर किसी व्यक्ति के हाथ में सत्ता सौंपने से पार्टी में टूट का खतरा है क्योंकि कई दावेदार सामने आएंगे। वहीं सोरेन परिवार भी नहीं चाहेगी कि सत्ता की चाबी परिवार से इतर किसी व्यक्ति के पास जाये। 

क्या सोरेन परिवार से इतर किसी को मिलेगी जिम्मेदारी
यदि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफे की नौबत आती है तो कांग्रेस क्या करेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री के नाम पर बहुत ज्यादा विरोध या असंतोष जाहिर नहीं करेगी क्योंकि वो नहीं चाहेगी कि सामने बीजेपी जैसे विपक्षी के होते हुए उसके साथ से सत्ता चली जाये। आशंका जाहिर की जा रही है कि कुछ शर्तों के साथ कांग्रेस पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के रुख पर हामी भर देगी। कांग्रेस पार्टी झारखंड की सत्ता में बने रहना चाहेगी। सवाल ये भी है कि ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का क्या होगा। 


बीजेपी क्या चाहेगी। सत्ता या राष्ट्रपति शासन। वैसे भी, झामुमो और कांग्रेस लंबे समय से आरोप लगाती रही है कि बीजेपी प्रदेश में गठबंधन सरकार को अस्थिर करने का साजिश रच रही है। हो सकता है कि बीजेपी चिर-परिचित अंदाज में यहां सरकार बनाने की ओर देखे या फिर राष्ट्रपति शासन की मांग करे। 

20 मई को मुख्यमंत्री आयोग में दाखिल करेंगे जवाब
गौरतलब है कि हाईकोर्ट में 17 मई को शेल कंपनियों में सोरेन परिवार के निवेश से संबंधित फैसला आयेगा। 20 मई के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर चुनाव आयोग का फैसला आएगा। कल्पना सोरेन को विकल्प के रूप में देखा तो जा रहा है लेकिन उनपर भी गलत तरीके से इंडस्ट्रियल जमीन हासिल करने का आरोप है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन और साली सरला मुर्मू के खिलाफ सीएनटी एक्ट का उल्लंघन करके आदिवासी जमीन हासिल करने का आरोप लगाया है।

मुख्यमंत्री के छोटे भाई बसंत सोरेन पर भी विधायक रहते माइनिंग कंपनी में पार्टनरशिप लेने का आरोप लगा है। चुनाव आयोग ने उन्हें भी नोटिस जारी किया था जिसका जवाब वो दाखिल कर चुके हैं।

संवैधानिक संकट खड़ा हुआ तो क्या करेगी झामुमो
सवाल अब भी वही है कि यदि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी तो राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। क्या कल्पना सोरेन को ये जिम्मेदारी दी जायेगी। क्या बसंत सोरेन को सत्ता सौंपी जा सकती है। या झारखंड मुक्ति मोर्चा का शीर्ष नेतृत्व सोरेन परिवार से इतर किसी भरोसेमंद शख्स पर ये जिम्मेदारी डालेगा। गौरतलब है कि पूजा सिंघल प्रकरण में सरकार पहले ही फजीहत झेल रही है।

बीजेपी इसे लेकर लगातार हमलावर है। मुख्यमंत्री नहीं बल्कि उनके विधायक प्रतिनिधि और प्रेस सलाहकार भी सवालों के घेरे में हैं। ईडी की जांच में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। इस बीच राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा होने के भी आसार दिखाई पड़ रहे हैं। फिलहाल, स्थिति वेट एंड वॉच वाली है।