logo

लोकसभा विशेष : कभी गन्ना और गुड़ उत्पादन के लिए मशहूर था झारखंड का ये गांव, अब पलायन को मजबूर हैं किसान; जानें क्यों

a258.jpeg

रिपोर्ट- मनोज पांडेय

बैल रहट को खींचते हैं और कोल्हू में पिसकर गन्ने का मीठा रस निकलता है। कड़ी धूप में नंगे पांव किसान, अपने सबसे करीबी साथी बैल के साथ कदमताल करता है ताकि मेहनत का फल मीठा हो लेकिन, मानसून की बेरुखी, सूखा और सरकारी उदासीनता उनकी जिंदगी में कड़वाहट घोल रही है। 

गन्ना उत्पादन में अब वैसा लाभ नहीं रहा
किसान पिछले कई महीनों से खेतों में पसीना बहा रहे हैं। बड़ी उम्मीदों से गन्ने की खेती की। गन्ना, जो गर्मियों में राहत के लिए मीठा रस देता है और खाने के लिए स्वादिष्ट गुड़ भी। किसानों को उम्मीद तो थी कि फसल तैयार होगी तो जिंदगी पटरी पर लौटेगी लेकिन कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि समाज में अन्नदाता कहे जाने वाले इस वर्ग की जिंदगी में पिछले कई दशकों ने केवल हादसे लिखे हैं। विडंबना ही कहेंगे कि रोटी सबकी प्राथमिक जरूरत है। दुनिया में सबकुछ रोटी के लिए है लेकिन, जिनसे रोटी है वही खाली पेट रह जाता है। 

चतरा के उकसू गांव में किसानों का पलायन
ये नजारा चतरा जिले के डूब पंचायतके उकसू गांव का है। कभी, गन्ना उत्पादन के लिए विख्यात रहे इस गांव में उस गौरव का अवशेष भर ही बचा है। उकसू गांव में गन्ने की बंपर पैदावार होती है, ये वाक्य अब इतिहास हो गया है। वर्तमान में गन्ना तो छोड़िए, नई पीढ़ी खेती तक नहीं करना चाहती। कहती है कि खेती में क्या रखा है? बेहतर है कि मैं शहर जाकर 4 पैसे कमाऊं।

कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का नारा खोखला
सरकारें और नेता बड़े गर्व और जोश से कहते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। हमारे लिए किसान सर्वोपरि हैं। अन्नदाता हैं। हजारों करोड़ की योजनायें लॉन्च की जाती है लेकिन तब भी न तो गांवों से पलायन रूका और न ही किसानों की आत्महत्या। झारखंड में पिछले 2 साल बारिश नहीं हुई। सूखा पड़ गया। प्रदेश में आज तक सिंचाई का वैकल्पिक और स्थायी सिस्टम नहीं बन सका और किसान मानसून पर ही निर्भर हैं। बादलों ने रहम दिखाई तो ठीक वरना मौत, मजदूरी और पलायन ही सच्चाई है।

लोकसभा चुनाव में क्या मुद्दा बनेगा उकसू गांव
उकसू गांव में सूखे पड़े खेत और बदहवास सी पड़ी गुड़ बनाने वाली भट्टी, किसानों की दशा और दिशा बता रही है। दशा कि, उनके लिए खेती-किसानी अब पूर्वजों की यादों को ढोना मात्र रहा गया है और दिशा कि, नई पीढ़ी कृषि को फ्यूचर नहीं मानती। ऋण माफी, नगद राशि, सिंचाई और नई तकनीकें सब चुनावी मेनिफेस्टो में सजाने भर के लिए है। हकीकत तो आपको सामने है। आप क्या देखिएगा। ये आपके विवेक पर निर्भर है। हां, खाना खाते समय सोचिएगा जरूर, इस अन्न का दाता किस हाल में होगा। 

Tags - JharkhandChatraSugarcaneLoksabha Election 2024