द फॉलोअप डेस्क
बिहार के गया में आज से पितृपक्ष मेला शुरू हो गया है। अपने पितरों के निमित्त मोक्ष की कामना पितृपक्ष के समय विशेष रूप से पिंडदानी करते है। ऐसा माना जाता है कि पिंडदान करने से पितर खुश होते है। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं पितर खुश होकर अपनी पीढ़ी को खुशहाली का आशीर्वाद देते है। महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं। महिलाओं के द्वारा पिंडदान की परंपरा का जिक्र कई पुराणों में किया गया है। गरुड़ पुराण और ब्रह्म पुराण में भी स्त्रियों के पिंडदान करने के बारे में कई बातें बताई गई हैं।
माता सीता ने किया था पिंडदान
गया में आने वाले तीर्थ यात्री अपनी सुविधा के अनुसार पिंडदान करते हैं, लेकिन अब के समय में स्त्रियां भी पिंडदान कर रही हैं। हालांकि स्त्रियों के पिंडदान की परिस्थिति को देखते हुए धार्मिक अनुमति दी जाती है। स्त्रियां भी पिंडदान कर सकती हैं, इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण माता सीता है। माता सीता ने गयाजी धाम में अपने ससुर राजा दशरथ का बालू के पिंड से पिंडदान किया था।
कब कर सकती हैं महिलाएं पिंडदान
बता दें कि पिंडदान का पहला हक पुरुषों को ही है। पिंडदान के कर्मकांड के दौरान महिलाएं पुरुषों का सिर्फ सहयोग करती हैं, लेकिन पिंडदान का कर्मकांड नहीं करतीं। हालांकि पुराणों के अनुसार महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं, पर उसके लिए परिस्थितियों के बारे में जानना जरूरी है। पति नहीं हो और पत्नी जीवित है, तो पत्नी को अधिकार है कि वो अपने दिवंगत पति के लिए पिंडदान श्राद्ध का कर्मकांड कर सकती है। यह जरूरी है कि उस वंश में पुत्र नहीं हो।