रांचीः
नीतीश कुमार ने 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्यपाल फागु चौहान ने नीतीश कुमार को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। नीतीश कुमार ने इससे पहले मंगलवार को ही एनडीए मुख्यमंत्री के रूप में राजभवन जाकर राज्यपाल को इस्तीफा सौंपा था। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से अपनी राहें अलग करने का आधिकारिक ऐलान किया था। नीतीश कुमार ने कहा था कि उनकी पार्टी के सभी नेताओं का यही मत था।
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए साथ आये विपक्ष!
बुधवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मीडिया से मुखातिब नीतीश कुमार ने कहा कि जो 2014 में सत्ता में आये थे, क्या वे 2024 में भी जीतेंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मैं चाहता हूं कि पूरा विपक्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट हो जायें। प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में नीतीश कुमार ने कहा कि मैं ऐसे किसी भी पद का दावेदार नहीं हूं। ये सारे विपक्षी दल मिलकर तय करेंगे।
2015 के बाद फिर साथ आये नीतीश और लालू
दरअसल, बीते कुछ दिनों से जारी सियासी हलचल के बाद मंगलवार को नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ दिया और एकबार फिर आरजेडी के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया। 2015 के बाद अब फिर से नीतीश कुमार ने कमल का दामन छोड़कर लालटेन थाम लिया है। मंगलवार को ही नीतीश कुमार ने राज्यपाल फागु चौहान को 164 विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा जिसमें आरजेडी के 79, जेडीयू के 43, कांग्रेस के 19, लेफ्ट के 19, हम के 04 और 1 निर्दलीय विधायक शामिल है। 2015 में भी नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू यादव की आरजेडी ने मिलकर सरकार बनाई थी।
एनडीए में असहज महसूस करते थे नीतीश!
सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार बीते कुछ महीनों ने एनडीए में असहज महसूस कर रहे थे। जेडीयू के नेताओं को लगता था कि बीजेपी गठबंधन में रहते हुए भी धीरे-धीरे उनकी जड़ें काट रही है। दरअसल, 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 71 सीटों पर जीत मिली थी वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज 43 सीटों पर सिमट गई। बिहार में नीतीश की पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी। ये बात नीतीश कुमार को खल रही थी। सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार ने अस्तित्व के सवाल पर ये फैसला किया।