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हे भगवान! बिहार में खोल दिया नकली थाना, नौकरी के बाद ट्रेनिंग दी और ड्यूटी पर भी लगा दिया

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 पूर्णिया
बिहार के पूर्णिया ज़िले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहाँ एक युवक ने कथित तौर पर फ़र्ज़ी थाना खोलकर बेरोज़गार युवाओं को न सिर्फ़ नौकरी का झांसा दिया, बल्कि बाकायदा ट्रेनिंग भी करवाई और कुछ को "ड्यूटी" पर भी लगा दिया। ये पूरा मामला कसबा थाना क्षेत्र के मोहनी पंचायत का है। यहाँ एक सरकारी स्कूल की खाली पड़ी इमारत को कथित तौर पर थाना बनाकर बिहार ग्राम रक्षा दल (बीजीआरडी) और होम गार्ड की फर्ज़ी ट्रेनिंग चलाई गई। आरोप है कि यह सब दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच हुआ।
बीबीसी हिंदी में सीटू तिवारी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस पूरे ऑपरेशन का मास्टरमाइंड राहुल कुमार साह नाम का युवक है, जो पहले एनसीसी से जुड़ा रहा है और उसी नेटवर्क के ज़रिए कई युवाओं को विश्वास में लिया।


सरकारी जैसा सिस्टम, लेकिन सब कुछ झूठ:
राहुल ने बाकायदा एक बैनर लगवाकर युवाओं से डेढ़ से ढाई हज़ार रुपये लिए, उन्हें ट्रेनिंग दी और कुछ को पहचान पत्र वर्दी तक थमा दी। वर्दी पर बीजीआरडी लिखा था और उन्हें बताया गया कि मान्यता मिलने के बाद उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाएगी।
कई पीड़ितों ने बताया कि वे एक महीने तक ट्रेनिंग में शामिल हुए, मेले में ड्यूटी की, वाहन जांच की और चालान भी काटे। एक महिला ने कहा, "उसने मेरी माँ को भी वर्दी पहना दी और कहा कि अब आपकी नौकरी लग गई है।"
फर्जीवाड़े का दायरा बड़ा:
बताया जा रहा है कि राहुल ने सिर्फ़ पूर्णिया ही नहीं, बल्कि भागलपुर, कटिहार और सुपौल जैसे ज़िलों के युवाओं को भी इसी तरह ठगा। एक अनुमान के मुताबिक, उसने 300 से ज़्यादा लोगों से 10 से 15 लाख रुपये तक वसूले।
स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि जिस इमारत में ट्रेनिंग दी गई, वह एक उप-स्वास्थ्य केंद्र की खाली बिल्डिंग थी। वहीं, मोहनी पंचायत के मुखिया श्यामसुंदर उरांव को भी इस कथित ट्रेनिंग के समापन समारोह में बतौर अतिथि बुलाया गया था।


पुलिस का क्या कहना है?
पूर्णिया के एसपी कार्तिकेय के. शर्मा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "ऐसा कोई फ़र्ज़ी थाना नहीं था। अभियुक्त राहुल कुमार साह बिहार ग्राम रक्षा दल से जुड़ा रहा है और उसने नौकरी दिलवाने के नाम पर लोगों से पैसे लिए हैं।"
एसपी के अनुसार, अब तक 25 से अधिक शिकायतें मिल चुकी हैं और मुखिया की भूमिका की भी जांच की जा रही है। वहीं, ड्यूटी, वाहन जांच और चालान जैसी बातों को पुलिस ने खारिज किया है। 
बिहार में यह पहला मामला नहीं है। 2022 में बांका ज़िले और 2024 में जमुई के सिकंदरा थाना क्षेत्र से भी इसी तरह के फर्ज़ी पुलिसकर्मियों और नकली अफ़सरों के मामले सामने आ चुके हैं। यह घटना न सिर्फ़ बेरोज़गारी की गंभीर स्थिति को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सिस्टम पर लोगों का भरोसा कैसे उनके ही खिलाफ़ इस्तेमाल किया जा रहा है।

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