रांची:
दिल्ली की टीवी दुनिया को छोड़कर रांची पहुंचे युवा राजीव सिन्हा बरसों से शहर और आसपास की प्रतिभा को रचनात्मकक और कलात्मक शेप देने में जुटे हुए हैं। कडरू के न्यू एजी कॉलोनी में उनकी झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी रंगमंच और फिल्म की चाहत रखने वालों का आशियाना है। हर दिन कुछ न कुछ इनकी टोली बेहतर करती है। आज जेएफटीए के मिनी सभागार में नाटक राम-रहीम का मंचन हुआ, जो अटूट एकता का पैग़ाम दे गया।
नाटक का लेखन और निर्देशन राजीव सिन्हा ने ही किया है। उनके सकारात्मक विचार को पात्रों के माध्यम से युवा कलाकारों ने जीवंत किया। इनमें अभिषेक साहू, आयुष शर्मा, सर्वेश करण, नीरज कुमार, अभिषेक राय, चिरंजीवी सिद्धार्थ, मन्नु कुमार और शानू सिन्हा शामिल थे।
नाटक धर्म की आड़ में दंगे कराने वाले लोगों पर गहरा प्रहार है। दरअसल राम और रहीम दो गहरे मित्र हैं। जिन्हें महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने की बचपन से सीख मिली है। जबकि दोनों के ही पिता जयदयाल और याकूब एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं। एक दिन रहीम को अपने घर में देख कर जयदयाल बदले की भाव से उसपर रिवॉल्वर तान देता है, और गोली चल जाती है। बीच बचाव में उसके अपने ही बेटे राम को गोली लग जाती है। नाटक का यह संवाद याद रह जाता है, "धर्मों का अंतर तो हम बड़े करते हैं बच्चों में तो ये खयाल ही नहीं होता कि क्या राम क्या रहीम सब एक समान।"