द फॉलोअप टीम, रांचीः
आज 14 जनवरी है। कई सालों से इसी दिन को मकर सक्रांति मनाया जाता रहा है। अब हर साल 2 तारीखों पर बहस छिड़ जाती है कि मकर सक्रांति 14 जनवरी को है या 15 को। हालांकि अब आपको इस बहस में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि वर्ष 2008 से 2080 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी। विगत 72 वर्षों यानि 1935 से 2007 तक प्रति वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती रही है लेकिन अब इस तिथि में बदलाव हुआ है।
क्यों मकर संक्रांति की तारीख बदली
2081 से आगे 72 वर्षों तक यानि 2153 तक यह 16 जनवरी को मनाया जाएगा। बता दें कि सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश के दिन को मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है। इस दिवस से, मिथुन राशि तक में सूर्य के बने रहने पर सूर्य उत्तरायण का तथा कर्क से धनु राशि तक में सूर्य के बने रहने पर इसे दक्षिणायन का माना जाता है।
किस गणना के आधार पर हुआ बदलाव
सूर्य का धनु से मकर राशि में संक्रमण प्रति वर्ष लगभग 20 मिनट विलंब से होता है। स्थूल गणना के आधार पर तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का तथा 72 वर्षों में पूरे 24 घंटे का हो जाता है। यही कारण है, कि अंग्रेजी तारीखों के मान से, मकर संक्रांति का पर्व, 72 वर्षों के अंतराल के बाद एक तारीख आगे बढ़ता रहता है। यह धारणा पूर्णतः भ्रामक है कि मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। इसको लेकर वैज्ञानिक गणना सामने है।
सर्दियों में तिल का महत्व क्यों है
मकर संक्रांति के अवसर पर एक चीज है जो पूरे देश में फेमस है तिल लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मकर संक्रांति पर तिल के लड्डू बनाने और खाने की परंपरा क्यों है। सर्दियों में शरीर का तापमान गिर जाता है। ऐसे में हमें बाहरी तापमान से अंदरुनी तापमान को बैलेंस करना होता है। तिल और गुड़ गर्म होते हैं। ये खाने से से शरीर गर्म रहता है। सर्दी के मौसम में तिल और गुड़ से बने लड्डू खाने से जुकाम और खांसी में काफी आराम मिलता है। तिल में कौन से पोषक तत्व हैं
तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन,मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में मिलता है। एक चौथाई कप या ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके साथ ही जिनकी गठिया की शिकायत बढ़ जाती है, उन्हें इसके सेवन से लाभ होता है। तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं।
यह रक्त के 'लिपिड प्रोफाइल' को भी बढ़ाता है. तिल शरीर में उपस्थित जीवाणुओं और कीटाणुओं का दमन करता है. तिल एक तरह से इनसेक्टिसाइड का काम करता है. आयुर्वेद के अनुसार, तिल शरद ऋतु के अनुकूल होता है. आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है. ये सभी रस मनुष्य के शरीर के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं।