द फॉलोअप टीम, रांची:
"एक पेयारा सा गाँव, जहाँ पीपर कर छाँव, छाँव में बसल हाम, एक तो परदेसी हाम, परदेसी मनक बस्ती, ना कोई मेला ना कोई मस्ती...यह नागपुरी गीत आज रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग (टीआरएल) में गूंजा। स्वधर डॉ त्रिवेणी नाथ साहू का था। ऐसे कई गीत सभागार में गुंजायमान रहे। बात जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के कवि सम्मेलन की है। अंतिम दिन संताली भाषा के आदित्य कुमार मार्डी, जोबा मुर्मू, चन्द्र मोहन किस्कु, मोहन चन्द्र बास्के, भुजंग टुडू. खोरठा भाषा के सुरेश कुमार विश्वकर्मा सुकुमार, महेन्द्र नाथ गोस्वामी, शांति भारत, शिव नन्दन पाण्डे गरीब, प्यारे हुसैन अंसारी. खड़िया भाषा के चन्द्र किशोर केरकेट्टा, डॉ किरण कुल्लू, डॉ मीराकल टेटे, नीली सरोज किड़ो, नीता कुसुम बिलुंग. तो पंचपरगनिया भाषा के डॉ करम चन्द अहीर, रमाकांत महतो, डॉ दीनबंधु महतो, नरेन्द्र कुमार दास और एंथोनी मुण्डा ने कविता पाठ किया।
दो दिनी जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं कवि सम्मेलन का समापन
टीआरएल और सांस्कृतिक कार्य निदेशालय ने मिलकर इस दो दिवसीय कार्यक्रम को आयोजित किया था। अतिथियों का स्वागत प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने किया, मंच संचालन डॉ निरंजन कुमार ने और धन्यवाद ज्ञापन नरेन्द्र कुमार दास ने किया। अध्यक्षता करते हुए टीआरएल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में एक साथ काव्य पाठ का आयोजन हमें आपस में और सशक्त बनाता है। इस सम्मेलन के माध्यम से झारखंडी भाषाओं के नये-नये साहित्यकारों को एक नया मंच मिला है।
नौ रत्नों की तरह जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा का महत्व
बतौर मुख्य अतिथि, डॉ राम दयाल मुण्डा शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ प्रकाश चन्द्र उराँव ने कहा कि जिस तरह सौरमंडल में नौ ग्रहों का महत्व है, रत्नों में नौ रत्नों का महत्व है ठीक उसी प्रकार नौ भाषाओं का विभाग जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग का महत्व झारखंड में है। विशिष्ट अतिथि, डॉ राम दयाल मुण्डा शोध संस्थान के पूर्व उप-निदेशक सोमा सिंह मुण्डा ने कहा कि कविता कवि की अंतरात्मा की पुकार है. अपने सहज भाव से जो अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं वही सच्चे कवि हैं।
समाज की प्रगति व समृद्धि मातृ भाषा पर ही निर्भर
रांची विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ त्रिवेणी नाथ साहु ने कहा कि कविता कर्म करने वाले व्यक्ति की दशा किसी से छुपा हुआ नहीं है. उन्हें कई उतार चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ता है। विशिष्ट अतिथि, डॉ राम दयाल मुण्डा शोध संस्थान के उप-निदेशक चिन्टू दोराई बुरू ने कहा कि किसी भी समाज की प्रगति व समृद्धि उसकी अपनी मातृ भाषा पर ही निर्भर है. नौ भाषाओं में एकसाथ, एक जगह पर काव्य पाठ का होना एक स्वर्णिम क्षण है. यह हमें बहुत उँचाई तक लेकर जायेगा।
रचनाओं के बल पर समाज में अमर रहता है कवि
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने कहा कि राजा मर जाता है परन्तु कवि कभी मरता नहीं है. वह अपनी रचनाओं के बल पर समाज में अजर अमर रहता है। कला संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक विजय पासवान ने झारखंड की नवों भाषाओं की सराहना करते हुए कहा कि यह विभाग अपने आप में एक अदभुत विभाग है. कार्यक्रम कराना ज्यादा प्रासंगिक होगा. इस बात को ध्यान में रखते हुए अब प्रत्येक वर्ष इस विभाग में इस तरह के साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन कला संस्कृति विभाग की ओर से किया जायेगा।
इनकी रही मौजूदगी
कवि सम्मेलन में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के डॉ वृंदावन महतो, डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ दमयन्ती सिंकू, डॉ सरस्वती गागराई, किशोर सुरिन, साहित्यकार महादेव टोप्पो, शकुन्तला मिश्रा, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ किरण कुल्लू, शकुन्तला बेसरा, प्रकाश उराँव, डॉ उपेन्द्र कुमार, रमाकांत महतो, करम सिंह मुंडा, अनुराधा मुंडू, अबनेजर टेटे, प्रवीण सिंह, संदीप कुमार महतो, मानिक कुमार, अनाम ओहदार, पप्पू बांडों, प्रभा मुंडा, बसंती देवी के अलावा विभाग के शोधार्थी, छात्र छात्राएं और विभिन्न भाषाओं के साहित्यकार व साहित्य प्रेमी मौजूद थे।