द फॉलोअप टीम, दुमका:
भीगते मौसम में दुमका के लोग अध्यात्म से भी सरोबाेर हुए। आदिवासियों ने की जान्थर और माहमोड़े की परंपरागत पूजा की, तो बासुकीनाथ मंदिर में सनातन श्रद्धालु उमड़े। दुमका प्रखंड के भुरकुंडा पंचायत के दुन्दिया गांव में दिसोम मरांग बुरु युग जाहेर अखड़ा और दुन्दिया गांव के ग्रामीण जान्थर और माहमोड़े पूजा में शामिल हुए। दो दिवसीय कराम पूजा की शुरुआत हो गई। जाहेर थान में ग्रामीणों ने मुर्गा, बकरी,सुअर और भेड़ की बलि दी। मौके पर सुरेश टुडू, सोलेमान मुर्मू, माने टुडू, बाबूलाल मुर्मू, रमेश हांसदा, विनय हांसदा, बबुधन टुडू, सुनिराम टुडू, विधुला हांसदा, सोनातन किस्कू, रंजीत किस्कू, एडबिन हांसदा, दिनेश टुडू, सुमित हांसदा, प्रेम किस्कू, कमलेश मुर्मू, बेन्जामिन टुडू और लोकराम मुर्मू आदि उपस्थित थे। दूसरे दिन सिर्फ मिठाई और दूध से पूजा की जाएगी।
क्या है जान्थर और माहमोड़े पूजा
फसल जब खेत में पक जाती है, तो उसे घर लाने से पहले संताल आदिवासी अपने इष्ट देवताओं की पूजा करते हैं। उसके बाद फसल गांव में लाते हैं। पूज्य जाहेर थान में इष्ट देवताओ को पके हुए धान का पौधा भोग में चढ़ाया जाता है। इसके साथ-साथ बलि भी दी जाती है। माहमोड़े पूजा भी जाहेर थान में की जाती है। इसमें भी बलि देने की परंपरा है। माहमोड़े पूजा हर पांच वर्षोँ में की जाती है। मान्यता है कि यह पूजा गांव को बीमारियों से सुरक्षित रखती है।
इधर, भक्ति भाव से नागेश्वर जोतिर्लिंग का जलाभिषेक किया
इधर, दुमका के लोक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बाबा बासुकीनाथ मंदिर में आज अक्षय नवमी पर शिवभक्तों की भीड़ उमड़ी। शिवभक्तों ने प्रेम और भक्ति भाव से नागेश्वर जोतिर्लिंग का दर्शन कर जलाभिषेक किया। मौके पर पुरोहित बबलू ठाकुर ने कहा कि आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जानते हैं। हिंदू धर्म में आंवला नवमी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन दान करने से पुण्य का फल इस जन्म के साथ अगले जन्म में भी मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।