(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू होंगे। आज पेश है, पहली किस्त-संपादक। )
भरत जैन, दिल्ली:
एक सफल नेता की पहचान यह नहीं होती कि उसने खुद क्या किया। उससे भी ज्यादा ज़रूरी होता है एक नेता के लिए कि अपने बाद वह किस तरह के लोग छोड़कर जाता है। इस मामले में आजादी से पहले गांधी का कोई मुकाबला ही नहीं है। गांधी अपने पीछे नेताओं की एक बहुत बड़ी श्रृंखला छोड़कर गए, जिसका लाभ देश को उनकी हत्या के कई सालों बाद तक भी मिलता रहा। ऐसा तभी संभव होता है जबकि नेता निश्चल हो और आत्मविश्वास से पूर्ण हो। गांधी का नैसर्गिक ज्ञान अद्भुत था। व्यक्ति की पहचान करना और उसको धीरे-धीरे मौका देकर संभालना यह कला गांधी में भरपूर थी। गांधी के पीछे नेताओं की बड़ी कतार थी। यही कारण था कि अंतिम वर्षों में कांग्रेस में गांधी के औपचारिक रूप से ना रहते हुए भी कांग्रेस पार्टी उनके बिना एक कदम भी चल नहीं सकती थी। ऐसा कब होता है? केवल तभी जब नेता को किसी भी चीज की लालसा ना हो। उसका उद्देश्य केवल लक्ष्य को पाना ही हो। गांधी के बाद बहुत से शक्तिशाली नेता देश में उतरे परंतु कोई अपने पीछे नेताओं की श्रृंखला छोड़कर नहीं गया। यहां तक कि उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी जवाहरलाल नेहरू भी इस मामले में असफल ही रहे। नेहरू के जाने के बाद देश में विशेषकर कांग्रेस में नेताओं का अकाल ही रहा।
आजादी के बाद नेहरू, इंदिरा और मोदी
आजादी के बाद नेहरू के अलावा सबसे अधिक सशक्त प्रधानमंत्री हुए इंदिरा गांधी और आजकल नरेंद्र मोदी। इंदिरा गांधी तो कांग्रेस के अंदर सभी नेताओं के कद को छोटा करके ही गईं। कांग्रेस आज तक उसके परिणाम भुगत रही है। यही हाल भाजपा का मोदी के बाद होगा क्योंकि वे सभी मजबूत नेताओं को धीरे-धीरे कमजोर करते जा रहे हैं। जब भी अपना स्थान छोड़ेंगे भाजपा में कोई कद्दावर नेता नहीं बचेगा और पार्टी जहाँ पहुंची है वहां से बहुत नीचे पहुंच जाएगी यह निश्चित है। विपक्ष में दो नाम अवश्य उभर कर आते हैं इस मामले में। पहला नाम राम मनोहर लोहिया, जिन्होंने समाजवादी विचारधारा के अनेक नेताओं को आगे लाने का प्रयास किया या उनसे प्रभावित होकर आगे आए। आज भी उनके नाम से ही लालू प्रसाद और मुलायम सिंह जैसे नेता अपनी राजनीति कर रहे हैं। भले ही वे उनके मार्ग पर नहीं चल रहे हैं। दूसरा नाम है लाल कृष्ण आडवाणी का। भाजपा में आज भी जितने नेता हैं वो सब उन्हीं के प्रश्रय में बड़े हुए हैं। परंतु आज वह अपनी पार्टी के हाशिए पर चले गए हैं और हास्य का विषय बन गए हैं। उसका कारण उनकी अपनी महत्वाकांक्षा जो गांधी में नहीं थी। गांधी इस देश के अंदर अद्भुत नेता रहे। उनके जैसा कोई नहीं हुआ।
गांधी के बारे में ज्ञान बहुत ही सीमित
नाथूराम गोडसे की एक पुस्तक है ' मैंने गांधी को क्यों मारा ?' एक पुस्तक युवा लेखक अशोक कुमार पांडेय ने लिखी है' उसने गांधी को क्यों मारा? ' जो अपने को गांधी का भक्त कहते हैं वे भी गांधी को लगभग रोज ही मार रहे हैं। क्योंकि वे गांधी को केवल एक ही दृष्टिकोण से देखते हैं और वह है राजनीतिक दृष्टिकोण। 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर में बीजेपी की उम्मीदवार बनीं, जीतीं भी। प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को देशभक्त कहा। जब इसी वक्तव्य पर विवाद हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैंने दिल से कभी प्रज्ञा ठाकुर को माफ नहीं किया है। इसी बात को लेकर बीजेपी विरोधी अपने आपको तब गांधीवादी कहने लगे। हालांकि गांधी के बारे में उनका ज्ञान बहुत ही सीमित है। शायद ही उन्होंने गांधीजी की आत्मकथा ' सत्य के साथ मेरे परीक्षण' पढी़ हो या ' ग्राम स्वराज्य ' पुस्तक पढ़ी हो या गांधी के विचारों का कभी ढंग से विश्लेषण किया हो। बस उन्हें गांधी को इस्तेमाल करना है बीजेपी का विरोध करने के लिए।
गांधी के लिए एक साधन मात्र थी राजनीति
गांधी के लिए राजनीति एक साधन मात्र थी साध्य नहीं। उन्हें चुनावी राजनीति से कोई सरोकार नहीं था। 1935 के इंडिया एक्ट के बाद देश के विभिन्न प्रांतों में जो चुनाव हुए, उसमें गांधी ने कांग्रेस पार्टी का प्रचार नहीं किया था और ना ही सरकार बनाने में कोई हस्तक्षेप किया था। हम केवल गांधी को एक राजनीतिक व्यक्ति के रूप में क्यों देखते हैं? क्या इसलिए उससे हमारा राजनीतिक मकसद पूरा हो जाता है? यदि हम गांधी को समग्रता से देखें तो शायद हम गांधी के समर्थक ना रहें। गांधी यह मानते थे कि हमारे देश में उत्पादन पद्धति ऐसी होनी चाहिए कि बड़ी कंपनियों के मालिक अपने आपको कंपनी का ट्रस्टी समझें ना की मालिक। कितने लोग इस बात को मानने को तैयार हैं ? गांधी यह मानते थे की हर व्यक्ति को श्रम करना चाहिए। प्रतिदिन चरखा चलाना अभी उसी बात का प्रतीक था। हममें से कितने लोग इस बात को मानते हैं?
पूंजीवाद के विरुद्ध रहे गांधी के विचार
गांधी रस्किन की पुस्तक ' अन्टू हिज़ लास्ट से' बहुत प्रभावित थे, जोकि पूंजीवाद के वर्तमान ग्रुप के बहुत विरुद्ध है। इतनी विरुद्ध कि जब 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन के एक अखबार के लिए यह लेख लिखे गए तो वहां बहुत हंगामा हो गया था। क्योंकि यह यह उस समय प्रचलित ब्रिटेन के पूंजीवाद के खिलाफ थे। केवल 4 लेख के बाद अखबार को यह लेख रोकने पड़े। रस्किन मानते थे और गांधी ने इस बात को स्वीकार किया कि हर श्रमिक को बराबर का वेतन मिलना चाहिए। क्या हम इस बात को मानते हैं। क्या हम यह नहीं मानते कि हर व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार वेतन मिलना चाहिए और कौन सी योग्यता ज्यादा महत्वपूर्ण है और कौन सी कम। इसका फैसला हम खुद करेंगे। गांधी स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ कहते रहे, लिखते रहे। प्राकृतिक चिकित्सा का उन्होंने बहुत प्रचार किया। क्या हम इसको मानते हैं? गांधी ने अहिंसा को पूरी तरह स्वीकार किया, पर क्या हम इस बात को मानते हैं। कितने ही लोग हैं जो आज भाजपा का विरोध करते हैं। लेकिन इंदिरा गांधी का विशेष तौर पर इसीलिए समर्थन करते हैं हालांकि उन्होंने सैन्य बल से पाकिस्तान के दो टुकड़े करवाए। हमारे लिए वो बड़ी हीरोइन हैं। जबकि उन्होंने स्वयं अपने शासनकाल में देश के ऊपर लगभग डेढ़ साल के लिए- ठीक 46 साल पहले तानाशाही थोपी थी। हम उसको भूलने को तैयार हैं।
गांधी का इस्तेमाल महज़ छड़ी के समान
हम केवल गांधी का नाम इस लिये लेते हैं ताकि वर्तमान सरकार को मारने के लिए हमें एक छड़ी मिल जाए। गांधी रस्किन की बात को मानते हुए प्रकृति की संपदा के बारे में बहुत चिंतित रहते थे और किसी भी संसाधन को बिना सोचे समझे और व्यर्थ में इस्तेमाल करने के विरोध में थे। गांधी की पुस्तक ' ग्राम स्वराज्य' एक बार पढ़ कर देखें तो शायद हम गांधी को एक बहुत पुरातनवादी विचारों का व्यक्ति मानकर पूरी तरह रिजेक्ट कर देंगे। हम केवल एक ही बात जानते हैं कि वर्तमान सरकार के विरुद्ध गांधी हमारे लिए एक हथियार का काम कर सकते हैं, गांधी को चाहे हम समझे या न समझे गांधी के जीवन दर्शन को हम माने या ना माने। बस हमें गांधी को एक राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करना है। इस तरह गांधी के समर्थन के नाम पर हम प्रतिदिन गांधी की हत्या कर रहे हैं।
(लेखक गुरुग्राम में रहते हैं। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।