डॉ राकेश पाठक, ग्वालियर:
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का सियासी संग्राम निर्णायक दिशा में बढ़ रहा है। सर्वशक्तिमान नरेंद मोदी को सीधी चुनौती देकर योगी आदित्यनाथ ने सात लोक कल्याण से लेकर केशव कुंज तक को हलकान कर दिया है।
असली लड़ाई सिर्फ़ लखनऊ तक सीमित नहीं है बल्कि मोदी के बाद हिंदुत्व के असली पोस्टर ब्वॉय के लिये योगी ने हठ योग शुरू कर दिया है।इतिहास गवाह है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ होकर ही निकलता है।
पूरा देश और उत्तर प्रदेश अभी कोरोना की दूसरी लहर से पूरी तरह राहत की सांस भी नहीं ले पाया है कि उत्तर प्रदेश में सत्ता की उठापटक ने सबको हैरान कर दिया है। गंगा के किनारे जब रेत में दफनाई गयी लाशों से रामनामी चुनरियां उठायी जा रहीं हैं तब लखनऊ में सत्ता के गलियारों में योगी आदित्यनाथ के पैरों से कालीन खींचने की तैयारी चल रही है।
इसकी शुरुआत मोदी-शाह खेमे की तरफ़ से हुई। मोदी ने सबसे पहले अपने ख़ासमख़ास नौकरशाह अरविंद शर्मा को योगी का कद छांटने के लिये विधान परिषद में पहुंचाया। फिर उन्हें डिप्टी सीएम बनाने के लिये संदेश भेजा। यहीं से बात बिगड़ गयी। योगी अपने समानान्तर किसी और सत्ता केंद्र के बनने की आशंका भांप कर अड़ गए कि शर्मा को राज्य मंत्री से अधिक कुछ नहीं दे सकते। शर्मा गुजरात काडर के रिटायर आईएएस हैं और कुछ साल से पीएमओ में जमे हैं।
योगी के बढ़ते कदमों से मोदी बेचैन
दरअसल योगी आदित्यनाथ पार्टी में मोदी के बाद सबसे कट्टर हिन्दू चेहरा हैं। उत्तर प्रदेश में अपना अलग संगठन हिन्दू युवा वहिनी बना कर उन्होंने ज़मीनी स्तर पर अपनी अलग फौज़ खड़ी कर रखी है। गाहे बगाहे उनके समर्थक खुल कर उन्हें मोदी के विकल्प के तौर पर स्थापित करने का अभियान चलाते रहते हैं।
योगी के समर्थकों की नज़र मोदी के बाद अमित शाह के बजाय उन्हें आगे देखने के लिये हर तरह के दावे करते हैं। बस यही बात नरेंद्र मोदी को नागवार लगती रही और मौक़ा देख कर अरविंद शर्मा के रूप में तुरुप चाल चली गयी।
योगी ताल ठोक कर मैदान में..
मोदी खेमे की उम्मीद से उलट योगी ने आर पार की लड़ाई छेड़ कर सबको चौंका दिया है। मोदी ने पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दोनों को अपने तरीक़े से हिंदी में समझा दिया है कि वे आग से न खेलें।
सबसे पहले योगी ने संघ के नम्बर दो हैसियत वाले पदाधिकारी सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले को दो दिन तक मिलने का समय नहीं दिया। होसबोले जब लखनऊ में थे तब योगी जिलों के दौरे पर निकल गए। इसके अलावा संगठन महमंत्री बीएल संतोष का लखनऊ दौरा भी सियासी तापमान बढ़ाने का काम कर गया। संतोष ने अलग अलग दोनों डिप्टी सीएम और विधायकों से भेंट की जिनमे योगी नहीं थे।
इससे पहले मई के आख़िरी दिनों में मोदी,शाह,नड्डा,होसबोले,संतोष और राधामोहन सिंह लगातार यूपी को लेकर दिल्ली में बैठकें करते रहे। अटकलें चलती रहीं कि योगी को हटा कर मनोज सिन्हा या केशव प्रसाद मौर्य को गद्दी सौंपी जा सकती है।
इन्हें सब अटकलों को करारा जवाब देने योगी ने बीजेपी यूपी के सोशल मीडिया प्रोफाईल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फ़ोटो हटवा दिया।
यह क़दम भी उस मौक़े पर उठाया गया जब इतवार 6 जून को प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह राज्यपाल से मिल कर कोई बन्द लिफ़ाफ़ा सौंप रहे थे। भाजपा शासित राज्यों में शायद ही कोई राज्य हो जहां पार्टी के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर मोदी का फोटो नहीं हो। एक तरह से योगी ने सीधे मोदी के इक़बाल को चुनौती दे दी है। भले ही अत्र कुशलम तत्रास्थु का राग अलापा जा रहा है लेकिन यह सब समझ रहे हैं कि दया, कुछ तो गड़बड़ है।
लेकिन आसान नहीं है योगी को हटाना
पिछले एक पखवाड़े की कवायद के बाद दिल्ली में बैठे मोदी-शाह-नड्डा की तिकड़ी को साफ़ समझ आ गया है कि योगी को हटाना टेढी खीर है। पिछले चुनाव में भले ही योगी सीएम का चेहरा नहीं थे लेकिन जिस धमक के साथ वे लखनऊ की गद्दी पर बैठे उसी धमक से उन्होंने अपनी अलग पहचान भी बनाई।
अब चुनाव से सिर्फ़ आठ महीने पहले कट्टर हिन्दू चेहरे को सरकाने पर संघ भी सहमत नहीं दिख रहा। ख़ुद को पार्टी और संगठन में अपने दम पर मज़बूत कर चुके योगी को हटाना हवन करते हाथ जलाने जैसा हो सकता है।
हिंदुत्व के दो बड़े चेहरों के बीच घमासान होते देख कर संघ,भाजपा और हिन्दू हित की दुदुम्भी बजाने वाले समर्थकों में भारी बेचैनी है। उनके लिये दोनों में से किसी एक के पाले में खड़े होना आसान नहीं है। उनकी गति सांप छछूँदर केरी है।
देखिये आगे आगे होता है क्या.. !
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सम्प्रति ग्वालियर में कर्मवीर अखबार के प्रधान संपादक)
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