गौतम चौधरी
सच पूछिए तो तेजस्वी यादव को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुख्यमंत्री बनने से रोक दिया। इस विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम पांच सीटों पर जीत दर्ज कराई है लेकिन कई ऐसी सीटें हैं जिसपर तेजस्वी के नेतृत्व वाला महागठबंधन केवल मुस्लिम वोटों में विभाजन के कारण हारा। औवैसी की यह जीत तेजस्वी यादव और महागठबंधन के लिए घातक साबित हुई है। यही नहीं इस बार के विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि बिहार में धर्मनिर्पेक्षता का ढ़ोंग करने वाला मुस्लिम समाज बड़े पैमाने पर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत हुआ है। यही कारण है कि मुस्लिम समाज का वोट न तो सीमांचल में और न ही मिथलांचल में महागठबंधन मिली।
आरजेडी खुद के बदौलत बनी प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी
बिहार चुनाव में राजद सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी है लेकिन तेजस्वी यादव सीएम पद से दूर रह गए हैं। उनकी राह का रोड़ा एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी बन गए। जान लें कि बिहार के सीमांचल में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने महागठबंधन का खेल खराब कर दिया और तेजस्वी बिहार का सीएम बनने से रह गए। चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर करते हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की है। औवैसी की यह जीत तेजस्वी यादव और महागठबंधन के लिए घातक साबित हुई।
सीमांचल के 24 सीटों में से आधी सीटें एनडीए के खाते में
सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं। इसमें से एनडीए को करीब आधी सीटों पर सफलता मिली है, जबकि महागठबंधन उम्मीद से कम सीटों पर कामयाब हो पाया है। इसके अलावे ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को भी अच्छी सफलता मिली है। इन सबके बीच कई सीटों पर ओवैसी भले ही जीतते नजर नहीं आये, लेकिन उनके प्रदर्शन से महागठबंधन का खेल बिगाड़ गया। बता दें कि एआईएमआईएम ने बिहार की कुल 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 14 उम्मीदवार सीमांचल के इलाके की सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रहे थे।
राजद को 75, कांग्रेस को 19 और लेफ्ट को 16 सीटें मिली
बता दें कि महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे राजद को 75, कांग्रेस को 19 और सहयोगी लेफ्ट को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई है। एनडीए की ओर से भाजपा को 74 सीटें जदयू को 43 और अन्य सहयोगी दल वीआईपी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को 4-4 सीटें मिली हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन के तहत 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस को 19 सीटों पर ही कामयाबी मिली है। यानी उसका स्ट्राइक रेट उम्मीदों से काफी नीचे है। अगर बिहार की राजनीति में हाल के दशकों में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखा जाये तो ये बहुत हैरान करने वाली बात नहीं है। 2015 के चुनावों में कांग्रेस ने राजद और जदयू के साथ महागठबंधन के तहत 41 सीटों पर चुनाव लड़ा और 27 सीटें जीतीं थीं।
कथित धर्मनिर्पेक्ष दलों से मुस्लिमों का मोह भंग
पिछले दो-तीन चुनावों को देखें तो मुस्लिम मतदाताओं का बड़ी तेजी से धर्मनिर्पेक्ष दलों से मोहभंग हो रहा है। लोकसभा चुनाव में बेगूसराय लोकसभा लोकसभा क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कद्दावर युवा नेता कन्हैया कुमार चुनाव मैदान में थे। हिन्दुवादी संगठन और भाजपा कन्हैया पर मुस्लिम तूष्टिकरण का अरोप लगाते रहे हैं, बावजूद इसके मुसलमानों ने ध्रुवीकृत होकर कन्हैया कुमार को वोट नहीं दिया। यही नहीं हरलाखी विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन समर्थित सीपीआई उम्मीदवार रामनरेष पांडेय को मुसलमानों ने नकार दिया और निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद शब्बीर को वोट दे दिया। ऐसा कई सीटों पर देखने को मिला है। सबसे आष्चर्य की बात तो यह है कि भाजपा के साथ रहते हुए जिस सेक्युलर मूल्यों को नीतीष कुमार ने बिहार में स्थापित करने की कोशिश की है और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे उन्हें भी इस बार मुसलमानों ने नकार दिया। बता दें कि सहयोगी भाजपा के विपरीत जाकर नीतीष कुमार ने नागरिक संशोधन कानून पर बिहार विधानसभा में प्रस्ताव पारित करवा दिया। इनत माम बातों के बाद भी मुसलमानों ने इस बार केवल धर्म और पंथ को देखा। इसलिए ऐसा कहना अब सही नहीं होगा कि केवल भाजपा और हिन्दुवादियों के कारण ही इस देष में धार्मिकता बढ़ रही है। इसके लिए मुस्लिम समाज को उक्साने वाले नेता भी उतने ही जिम्मेबार हैं जितने हिन्दुवादी नेता।