द फॉलोअप टीम, रांची:
आजादी की जंग में अपनी जान कुर्बान कर देने वाले शहीद शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह के 163 वें शहादत दिवस की पूर्व संध्याल पर झारखण्ड छात्र संघ और आमया ने कडरू में सम्मेलन कर उन्हेंक याद किया। जिसकी अध्यधक्षता करते हुए एस अली ने दोनों वीरों के शौर्यकर्म से रूबरू कराया। मौके पर हफीजुल हसन अध्यक्ष अंसारी महापंचायत, लतीफ आलम केंद्रीय संगठन प्रभारी झारखंड छात्र संघ, अरशद जिया उपाध्यक्ष झारखंड छात्र संघ, अबरार अहमद महानगर अध्यक्ष आमया, मोहम्माद इमरान, एनामुल हक़, फ़ैज़ हसन, अलफहद, असजद, हुजैफा, अतीकुर्रहमान, मोहम्म द हनान और मोहम्मशद शहज़ादा आदि मौजूद थे।
1857 की क्रांति में पहाड़-पठार भी धधकने से बच नहीं सका
अली ने बताया कि सन् 1857 की क्रांति ने आजादी की चिनगारी को सुलगा दिया था। जिससे छोटानागपुर का पहाड़-पठार भी धधकने से बच नहीं सका। इसमें शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह ने भी अहम भूमिका निभाई। शेख भिखारी का जन्म सन् 1819 में झारखंड के ओरमांझी थाना के खुदिया लोटवा गांव में हुआ। वहीं टिकैत उमराव सिंह उनके पड़ोस गांव खटंगा गाँव में जन्म लिये थे।

1856 में अंग्रेजों ने चढ़ाई करने का मंसूबा बनाया
शेख भिखारी 20 वर्ष की उम्र में छोटानागपुर के महाराज राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के यहां दीवान हो गए। वहीं उमराव सिंह बारह गांव के जमींदार थे। सन् 1856 में जब अंग्रेजों ने राजा-महाराजाओं पर चढ़ाई करने का मंसूबा बनाया तो इसकी खबर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को मिली। उन्होंने अपने वजीर पांडेय गणपतराय, दीवान शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह से सलाह-मशविरा किया।
अंग्रेजी फौज को चुट्टूपालू घाटी में ही रोक दिया
छोटानागपुर के शूरवीरों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लेने की ठान ली। जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह से पत्राचार किया। शेख भिखारी ने बड़कागढ़ की फौज में राँची एवं चाईबासा के नौजवानों को भरती करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने जनरल मैकडोना के नेतृत्व में सन् 1857 में चढ़ाई कर दी। जब अंग्रेजों की फौज चुट्टूपालू के पहाड़ी रास्ते से राँची के पलटुवार पर चढ़ने की कोशिश करने लगी तो शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह अपनी फौज लेकर चुट्टूपालू पहाड़ी पर पहुँच गए और उनका रास्ता रोक दिया।
खुफिया रास्ते से चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ी विदेशी सेना
शेख भिखारी की फौज ने गोलियों की बौछार कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। यह लड़ाई कई दिनों तक चली। शेख भिखारी के पास गोलियाँ खत्म होने लगीं तो उन्होंने अपनी फौज को पत्थर लुढ़काने का हुक्म दिया। इससे अंग्रेज फौजी कुचलकर मरने लगे। यह देखकर जनरल मैकडोन ने मुकामी लोगों को मिलाकर चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ने के लिए दूसरे रास्ते की जानकारी ली। फिर उस खुफिया रास्ते से चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ गए। इसकी खबर शेख भिखारी को नहीं हो सकी।
पेड़ पर लटकार दे दी फांसी
अंग्रेजों ने शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को 6 जनवरी, 1858 को घेरकर पकड़ कर लिया। 7 जनवरी, 1858 को उसी जगह फौजी अदालत लगाकर मैकडोना ने शेख भिखारी और उनके साथी टिकैत उमराव को फाँसी का फैसला सुनाया। 8 जनवरी को शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को चुट्टू पहाड़ी के बरगद के पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी गई।