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रूस की सैर इन वन क्‍लिक-2: सुनहरे और लाल रंग में बदलती पेड़ों की पत्तियां खूबसूरत

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सुभाष चन्द्र कुशवाहा, लखनऊ:

निकोलाई रेरिख़ के संग्रहालय में हमें रूसी खाना खाने को मिला जो चुकन्दर, मिंट और कुछ अन्य सब्जियों के साथ तरल पदार्थ के रूप में था। इसमें व्हाइट सॉस जैसी कोई चीज, ब्रेड में लगाकर, डुबो कर खाई जाती है। स्थानीय सहयोगी गौतम कश्यप को ज्यादा पता था। वही हमारे बीच दुभाषिए का काम कर रहे थे।रेरिख़ के हिमालय से लगाव के रंग बताते हैं स्थानीय खाने।

 

सेंट पीटर्सबर्ग के गांवों में घूमते समय ध्यान रखें कि आपके साथ गाइड या कोई स्थानीय मित्र हो। गांवों में कोई इंग्लिश नहीं समझता। आप वहां फंस सकते हैं। खासकर आप दूर निकल जाएं तो। जैसे कि हम काफी दूर निकल गए थे। लौटने के लिए ट्रेन पकड़नी थी जो 4.07pm पर चलती थी। रेरिख़ के गाँव से स्टेशन पहुंचे के लिए दो टैक्सियां स्थानीय रूसी ट्रांसलेटर गौतम कश्यप ने मंगवाईं।

सेंट पीटर्सबर्ग के गाँव, देहात के कस्बे भी शानदार हैं। एक कस्बा।

हम चार एक टैक्सी में और मेरे एक और मित्र तथा गौतम पीछे की टैक्सी में । दोनों को चलने में पांच मिनट का अंतर रहा। हमारा टैक्सीवाला, रेलवे स्टेशन की दूसरी ओर उतार कर चला गया। हम इंतजार करने लगे कि कश्यप पहुंच रहे होंगे मगर विलम्ब होने के कारण वे सीधे ट्रेन में जा पहुंचे। ट्रेन छूटने का समय हो रहा था और हम वहां कैसे जाएं, कोई बताने वाला नहीं। खैर, मेरे मित्र की बेटी ने किसी रेलवे महिला कर्मचारी की मदद ली तो प्लेटफार्म की जानकारी मिली। भागते हुए हम चार पहुंचे तो देखा कश्यप ट्रेन ड्राइवर से अनुरोध कर रोके हुए थे। हाँफते हुए सभी पहुंचे। मुझे गुस्सा भी आया कि या तो साथ आना चाहिए था या जब तक सभी आ न जाएं , ट्रेन में बैठना नहीं चाहिए। ट्रेन चल देती तो आशा जी भाग कर चढ़ चुकी थी और मैं पीछे था,  का पासपोर्ट मेरे पास रह जाता। उसी तरह मेरे मित्र का पासपोर्ट उनके पास था जबकि परिवार मेरे साथ। खैर, हम सकुशल लौट आये।

कैथरीन सेकण्ड, पीटर द ग्रेट की प्रभावशाली पत्नी का महल। जैसे रूस में पीटर द ग्रेट का महत्व है वैसे ही कैथरीन का। चित्र में लेखक अपनी जीवन संगिनी के साथ।

ऑर्थोडॉक्स चर्च 
Church of the Resurrection of Jesus Christ is known to Petersburgers as the Church of the Savior on the Spilled Blood - or even just the Church on the Blood - as it marks the spot where Alexander II was fatally wounded in an assassination attempt on March 1, 1881. Designed by Alfred Parland in the style of 16th and 17th-century Russian churches, the Church of the Resurrection provides a stark (some would say jarring) contrast to its surroundings of Baroque, Classical and Modernist architecture.

सेंट पीटर्सबर्ग में चर्च और मस्जिद भी


मेट्रो स्टेशनों पर बहुत कम इंग्लिश में संकेत हैं, सबकुछ रूसी में है, जो कुछ परेशानी पैदा कर सकता है मगर शहर के कुछ  लोग अंग्रेजी समझते हैं। वे मदद करेंगे। बाकी मेट्रो की सवारी दिल्ली की ही तरह है मगर स्टेशन की घोषणाएं रूसी भाषा में हैं, इसलिए स्टेशन नोट कर रखना उचित होगा। दिल्ली मेट्रो की तरह आने वाले स्टेशन ब्लिंक नहीं करते। वह खिड़की, जहां से कामरेड लेनिन जनता को सम्बोधित किया करते थे। 

आम रूसी, ध्वस्त कम्युनिस्ट सत्ता से प्यार करता है मगर चर्चों में भूलकर भी कम्युनिस्ट शासन की वकालत न करें। स्टालिन को मजबूत विचारों वाला माना जाता और इसलिए वर्तमान में उनकी मूर्तियों को हटा दिया गया है। रूबल और रुपये की कीमत लगभग समान है। यहां लगभग 1000 के आसपास हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी और अफगानी हैं जो आपस में घुलेमिले हैं। यहां जाड़े में तापमान -31 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। भारतीय खाना खाने के लिए यहां चार -पांच रेस्टोरेंट हैं। सबसे बड़ा चेन पीयूष मिश्र का है जो बिजनौर के रहनेवाले थे। 91 में डॉक्टरी की पढ़ाई करने आये थे, अब यहीं के हो गए हैं। उनके रेस्टोरेंट हैं-नमस्ते इंडिया, लिटिल इंडिया , तंदूरी किचन और तंदूर। फल यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। सिमकार्ड स्थानीय प्रयोग के लिए सस्ता है पर इंटरनेशनल कॉल के लिए महंगा है। घूमते समय साथ में छाता होना जरूरी है। पल-पल मौसम बदलता है।  रूसी खाना खा पाना सबके बस में नहीं इसलिए फल खरीदकर साथ रखें। यहां दाएं चलने का रिवाज है, न कि बाएं। यहां के पेड़ों की पत्तियां सुनहरे और लाल रंग में बदलती हैं तो खूबसूरत दिखती हैं। बिल्लियों को बहुत प्यार मिलता है यहां।

 

सेंट पीटर्सबर्ग की यात्रा पूरी हुई। बुलेट ट्रेन से हम मास्को की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। 709 km की यात्रा 4 घंटे में पूरी होगी। स्पीड 250 km प्रति घंटा। बीच में कुछ स्टेशनों पर रुकेगी भी। स्टेशन की छत पर पेंटिंग में लेनिन।

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(यूपी सरकार की उच्च सेवा से रिटायर्ड अफसर सुभाष चंद्र कुशवाहा लेखक ,इतिहासकार और संस्कृतिकर्मी हैं। आशा, कैद में है जिन्दगी, गांव हुए बेगाने अब (काव्य संग्रह), हाकिम सराय का आखिरी आदमी, बूचड़खाना, होशियारी खटक रही है, लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) और चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन (इतिहास) समेत कई पुस्तकें प्रकाशित। कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन। संप्रति लखनऊ में रहकर स्वतंत्र लेखन। अभी वह रूस की यात्रा पर हैं।)

 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।