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सुरक्षित बचपन दिवस : नोबल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के जन्म दिन पर बच्चों की हिफ़ाज़त के लिए गए संकल्प

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द फॉलोअप टीम, रांची:

बाल मजदूर से इंजीनियर बने शुभम राठौड़ ने कहा, “हमारे देश और समाज को सुरक्षित और समृद्ध बनाने के लिए बच्चों और युवाओं में पर्याप्त ऊर्जा और शक्ति है। मैं देश के युवाओं से एक बाल-सुलभ राष्ट्र और बाल मित्र दुनिया बनाने का आह्वान करता हूं।’’ जिक्र ऑनलाइन एक परिचर्चा का है। जिसका आयोजन  सुरक्षित बचपन दिवस पर किया गया था। दरअसल नोबल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के जन्म दिन को देशभर में सुरक्षित बचपन दिवस के रूप में बीते दिन से आज तक मनाया गया। पूरी दुनिया में बच्चों की आज़ादी और उनके बचपन को सुरक्षित करने का संकल्प बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने ऑनलाइन लिया। सुरक्षित बचपन दिवस मनाने का उद्देश्य ही लोगों, खासकर युवाओं को बच्चों के शोषण के खिलाफ जागरूक करना और उन्हें दुनिया को बच्चों के अनुकूल बनाने के लिए प्रेरित करना है। 


 

सुरक्षित बचपन दिवस पर आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम ‘मैं आजाद हूं’ परिचर्चा में उन बच्चों से मुलाकात कराई गई, जिन्हें बचपन बचाओ आंदोलन ने बाल दासता से मुक्त् कराया और पढ़ने-लिखने की सुविधा उपलब्धं कराई। इस अवसर पर मोहम्मद छोटू ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया- ‘‘बंधुआ बाल मजदूरी से आजाद होने के बाद मैंने शिक्षा प्राप्त कर अपना जीवन संवारा है। अगर मेरी तरह देश के सभी लोग शिक्षित हो जाएं तो बहुत हद तक सामाजिक बुराइयां और अन्ये समस्यागएं अपने आप हल हो जाएंगी।’’  कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने बाल शोषण विषय पर आधारित राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता’ और ‘ऑनलाइन संगीत प्रतियोगिता’ का भी आयोजन किया। 


 
कैलाश सत्यालर्थी चिल्ड्रे न्सम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक राकेश सेंगर ने कहा- ‘‘कोरोना काल के दौरान बच्चों की ट्रैफिकिंग और बाल श्रम में भारी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में सुरक्षित बचपन दिवस मनाकर हम लोगों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे बच्चों  के प्रति संवेदनशील और जागरूक बनें। समाज एकजुट होकर बच्चों को उनके अधिकार दिलाने की कोशिश करें। बाल श्रम और शोषण को रोकने के लिए आगे बढ़ें। इस अवसर पर पूरे देश में ऑनलाइन कार्यक्रमों के माध्योम से हमने बच्चों  को शोषण मुक्त बनाने के लिए समाज को जागरूक करने का प्रयास किया है।’’ 

 


 

संघर्ष जारी रहेगा’ नामक परिचर्चा का भी आयो‍जन किया गया। जिसमें उन पूर्व बाल मजदूर और अभी के नौजवान बाल नेताओं से बातचीत की गई, जिन्हें विभिन्न प्रकार के शोषण और गुलामी से आजाद कराया गया था। आजाद होने के बाद इन बच्चों ने समाज में किस तरह की चुनौतियों का सामना किया और आज अन्य बच्चों को दासता से मुक्तं कराने की मुहिम का कैसे नेतृत्व कर रहे हैं, बदलाव का वे कैसे वाहक बन रहे हैं, उस पर उन्होंने विस्ता‍र से प्रकाश डाला।