जावेद शाह खजराना, इंदौर:
बाहुबली फ़िल्म में दिखाई गई महिष्मती नगरी औऱ बाहुबली भले ही काल्पनिक लगते हों लेकिन हकीकत में महिष्मती नामक नगरी औऱ बाहुबली जैसी ताकत वाला राजा जरूर इस धरती पर हमारे आसपास ही था। हम इंदौर वालों को इसके लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। इंदौर से सिर्फ़ 100 किलोमीटर दूर नर्मदा किनारे बसा महेश्वर ही पहले के जमाने में महिष्मती कहलाता था। यही नहीं महिष्मती नगरी हमारे इंदौर राज्य की राजधानी भी रही है। शिवजी की परम भक्त शिवगामिनी जैसी देवी अहिल्या बाई यहाँ की महारानी थीं, उनका भी न्याय मशहूर था। उन्होंने शिवगामिनी की तरह अपने बेटे की जगह ससुर के द्वारा गोद लिए तुकोजीराव को सेनापति बनाया जो देवी अहिल्याबाई के बाद राजा बने।
सब फिल्मी बातें नहीं बल्कि सच्चाई है
है ना दोस्तो! बाहुबली फ़िल्म की कहानी की तरह महेश्वर की दास्तां लेकिन ये सब फिल्मी बातें नहीं बल्कि सच्चाई है। बाहुबली जैसे प्रतापी राजा जिनकी हकीकत में हजार बाहें थीं। वो इसी नगरी में राज करते थे। ये भी सच है कि इनका विनाश अकेले योद्धा जिन्हें हम परशुराम जी कहते हैं, ने किया। मेसर कहो या फिर महेश्वर लेकिन हजारों बरस पहले पुराणों में इसका नाम महिष्मती ही था।
उस जमाने में यानी सतयुग में मालवा की 2 राजधानी हुआ करती थी।
यह उसका महल हुआ करता था
उत्तर मालवा में उज्जयनी और दक्षिण मालवा में महिष्मती। दोनों प्रांतों में अलग-अलग राजा। एक नगर नर्मदा किनारे तो दूजा क्षिप्रा के मुहाने पर आबाद था। सतयुग में नर्मदा किनारे महिष्मती राज्य में 1000 हाथों वाला बाहुबली राज करता था। वो इतना ताकतवर था कि उसने रावण जैसे बलशाली को अपने महल में कैद कर लिया था। फोटो में दिखाएं स्थान पर उसका महल हुआ करता था।
यहाँ रावण के सिर पर 10 दीपक रखकर उसे दण्डित किया गया था।
जहाँ रावण ओर सहस्राजून के बीच जंग हुई
किले से 6 किलोमीटर दूर महेश्वर में उस जगह को सहस्त्र (हजार) धारा कहते हैं, जहाँ रावण ओर सहस्राजून के बीच जंग हुई थी। नर्मदा के तेज बहाव को उन्होंने अपनी हजार भुजाओं से रोक दिया था। आज भी सहस्त्र धारा नामक स्थान से नर्मदा बेशुमार धाराओं में बंटकर बहती है , इसलिए इस स्थान को सहस्त्र धारा यानि हजार धारा कहते हैं। कहते है ना 'सेर (वजन) को सवा सेर' मिल ही जाता है।
ऐसा ही कुछ इन 1000 हाथों वाले सहस्राजुन महाराज के साथ हुआ। उन्हें परशुराम जी के भेष में सवा सेर मिला।
भगवान परशुराम के पिता ऋषि जगदमनी की कुटिया
इंदौर से 50 किलोमीटर दूर एक गाँव है मानपुर। मानपुर से पहले जानापाँव नामक पहाड़ी है। यही पर भगवान परशुराम के पिताजी ऋषि जगदमनी की कुटिया थी। उनके पास चमत्कारी कामधेनु गाय थी, जिसे छीनकर सहस्त्रार्जुन महिष्मती ले गया। इस छीना-छपटी में जगदमनी ऋषि मारे गए। बाप की हत्या का बदला लेने के लिए परसुराम जी ने महिष्मती जाकर सहस्राजुन की हजारों भुजाएं काट डाली और उसके बेटों को भी मार गिराया। वो सिर्फ इतने पर नहीं रुके 21 बार धरती से परशुराम जी ने क्षत्रियों का सफाया किया था।
रानी अहिल्या बाई ने भी महेश्वर को राजधानी चुना
ये सभी जगहें मेरे ददिहाल मानपुर के आसपास है। इसलिए बचपन में इसी पहाड़ से निकलने वाली चंबल, गम्भीर जैसी साढ़े सात नदियों में गोते लगाने से लेकर चप्पे-चप्पे की खोज करना मेरा पसन्दीदा काम था। इन्हीं सहस्राजुन की 1000 हाथों वाली मूर्ति खजराना चौराहे पर लगी है। ये कलाल (जायसवाल) समाज के अवतार हैं। इन्हीं के समाजजन वालों की कलाल कुई (जुनीइन्दौर) इंदौर में आबाद है।
हिन्दू धर्म के हिसाब से परसुराम आज भी अमर है। बहरहाल इंदौर की रानी अहिल्या बाई ने भी महेश्वर को राजधानी चुना था। मरते दम तक वो यही रही। इसी घाट किनारे उनका अंतिम संस्कार हुआ।
'देखो कल मेरी कैसी वैभवशाली झांकी थी'
बाद में होल्करों की राजधानी भानपुरा बनी।1818 ईस्वी में ब्रिटिशों ने भानपुरा की जगह इंदौर को राजधानी बनाया। 1956 तक मध्यभारत की फिर 2 राजधानीयां ग्वालियर और इंदौर रही। मध्यप्रदेश बनने के बाद भोपाल को राजधानी का दर्जा मिला। जो किसी जमाने में राजा भोज की भोजपाल नगरी थी। महेश्वर अब गुजरे कल की गाथा सुनाते हुए कह रहा है कि 'देखो कल मेरी कैसी वैभवशाली झांकी थी, आज मैं अपनी पहचान को भी मोहताज़ हो गया हूं।'
(जावेद शाह इंदौर के पास रहते हैं। एक कंपनीमें सेवारत। इतिहास में रुचि। स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।