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UP के मुसलमानों का ओवैसी से सवाल मेरे अंगने में तुम्‍हारा क्‍या काम है

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सलीम अख्‍तर सिद्दीक़ी, लखनऊ:

अक्सर मुसलमानों की तरफ से अपना झंडा, अपनी क़यादत का शोर मचाया जाता है। ये नया नहीं है। लेकिन जन्नत की हकीकत क्या है, ये सब नहीं जानते। डॉ. मसूद याद हैं, जो बसपा की पहली सरकार में मंत्री थे और जिन्हें रातोरात मायावती ने बर्खास्त करके उनका सामान सड़क पर फिंकवा दिया था? याद तो होंगे ही। उन्होंने नेलोपा यानी नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी बनाई। सालो मेहनत की। नतीजा क्या निकला? कुछ नहीं। उसमें चंद जज्बाती लड़के लंबी-लंबी तकरीरें दिया करते थे। जिनमें 800 साल हुकूमत करने का दंभ होता था। वे मुसलमानों से अलग कोई बात ही नहीं करना चाहते थे। उनका एक ही विजन था, मुसलमानों की पार्टी। संदर्भ उत्‍तर प्रदेश में  कुछ ही महीनों के अंदर होने जा रहा विधानसभा चुनाव है।

मसूद और याकूब कुरैशी की पार्टी कहां गई
2007 में मेरठ के याकूब कुरैशी बंधुओं ने यूडीएफ यानी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाया। नेलोपा की पूरी फौज यूडीएफ में शिफ़ट हो गई। याकूब कुरैशी ने यूडीएफ से ही मेरठ शहर विधानसभा से चुनाव लड़ा। मात्र लगभग एक हजार वोटों से जीते। बसपा पहली बार पूर्ण बहुमत में आई। याकूब कुरैशी ने जीत के फौरन बाद यूडीएफ को बसपा पर न्यौछावर कर दिया। आज न नेलोपा है, न यूडीएफ। डॉ. मसूद कहां हैं, कोई नहीं जानता। कहीं होंगे तो हाशिए पर ही होंगे। पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक और मुसलमानों की पार्टी आई थी, पीस पार्टी। कहां है आजकल? आपस में लड़ भिड़ कर पार्टी खत्म कर दी। उनके अध्यक्ष कहां हैं, कोई नहीं जानता।

पीस के बाद अब मजलिस का शोर क्‍यों 
अब हर दिल अजीज मुसलमानों के नामनिहाद नेता ओवैसी मैदान में हैं। उनके पीछे भी वही नेलोपा और यूडीएफ वाली जज्बाती लड़कों की जमात है। जो ओवैसी अपने प्रदेश तेलांगाना में आठ सीटों से ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ते, वे उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर लड़ने का ऐलान करते हैं। क्यों भाई, ओवैसी साहब तेलांगाना में आठ से ज्यादा सीटों पर चुनाव क्यों नहीं लड़ते? लड़ते नहीं या लड़ने नहीं दिया जाता?

(मूलत: उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहने वाले लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। संप्रति दैनिक जनवाणी के संपादक।)
 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।