या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||
स्त्री-शक्ति की उपासना के नौ-दिवसीय आयोजन की शुभकामनाएं। इस आशा के साथ कि स्त्री-शक्ति की पूजा की यह गौरवशाली परंपरा स्त्रियों के प्रति सम्मान के अपने मूल उद्देश्य से भटककर महज कर्मकांड बनकर न रह जाए।-संपादक
गिरीश पंकज, रायपुर:
माँ...एक ऐसा शब्द है, जिसमें जबरदस्त मिठास है। माँ यानी करुणा। माँ यानी वात्सल्य। माँ यानी त्याग। माँ यानी तपस्या। मैं जब माँ कहता हूँ तो इसमें सिर्फ जन्म देने वाली मां को ही शामिल नहीं करता, वरन इस पद में मैं धरती माता, गंगा और गाय को भी जोड़ता हूँ। वैसे गंगा ही नहीं, मेरे लिए हर नदी मां है। नदी हम सब की प्यास बुझाती है।ब जैसे मां हमें प्यास लगने पर दौड़कर एक गिलास जल ले आती है। और व्यापक परिप्रेक्ष्य में मैं कहूं तो समूची प्रकृति मुझे मां लगती है। प्रकृति-माँ, जिसे हमें पूजना चाहिए। जैसे हम अपनी मां को पूजते हैं, उसी तरह हमें प्रकृति को भी पूहना चाहिए क्योंकि प्रकृति भी तो हमारी मां है। जैसे गाय हमारी मां की मां है। हम अपनी मां का दूध तो बमुश्किल तीन साल तक ही पीते हैं मगर गौ माता का दूध हम जीवन भर पीते हैं। हम भी पीते हैं। हमारh मां भी पीती है। उनकी मां भी पीती थी। सदियों से हम गौ माता का दूध पीते आ रहे हैं इसलिए तो वह माताओं की मां है। हमारे वेद पुराणों में गाय को विश्व की माता कहा गया है। गावो विश्वस्य मातरः। दुनिया माने न माने, हम तो मानते हैं।
हर व्यक्ति के जीवन में उसके मां की अद्भुत भूमिका है बाल्यकाल में पिता से अधिक मां का प्यार दुलार बच्चों को अधिक मिलता है। फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की, मां सबको करुणा की भावना के साथ पालती है। पिता कठोर अनुशासन के साथ लालन पालन करता है। हालांकि उसकी कठोरता में अमानवीय भावना नहीं होती, वरन बेहतरी की चाहत होती है, इसलिए वह मां की अपेक्षा कम करुणावान होता है। पुरुषगत स्वभाव के कारण कठोरता के साथ बच्चों से पेश आता है । मगर मां हमेशा अपने बच्चों के साथ सहज सरल करुणामय बनी रहती है। मुझे अपने बचपन का याद है, जब कुछ गलतियां करने के बावजूद मां ने कभी मारा नहीं। पिता की मार जरूर खाता रहा मगर उस दौरान मां हस्तक्षेप करके पिता को शांत करती रही। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मेरी मां ही ऐसा करती रही होगी। दूसरों की माताएं भी इसी गुण से परिपूर्ण रहती हैं। यह मां का सहज स्वभाव है क्योंकि मां स्त्री है। स्त्री के भीतर करुणा की निर्मलधारा प्रवाहमान रहती है। वह पुरुष की तरह कठोर नहीं हो सकती। अगर कोई स्त्री पुरुष जैसा आचरण कर रही है तो इसका मतलब यह है उस स्त्री में स्त्रीपन की कमी है। उसमें कोई खोट है इसीलिए वह इतनी कठोर है। कभी कभार ऐसा सुनता हूं कि कोई मां अपने (सौतेले नहीं) सगे बच्चे से भी जीवन भर निर्मम व्यवहार करती रहती है। वह ऐसा क्यों करती है , यह तो करने वाली जाने मगर ज्यादातर माताएं अपने बच्चों पर जान लुटाती हैं, तभी तो वे मां कहलाती हैं।
लेखक की 41-42 साल पुरानी तस्वीर अपनी मां के साथ, पीछे से उनके पिता झांक रहे हैं।
मुझे अकसर साहिर की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं, "ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी। उसको नहीं देखा हमने कभी पर उसकी जरूरत क्या होगी"। पूरा गीत मां की महिमा का सुंदर बखान है। हालांकि लगभग सभी कवियों ने मां पर कविताएं लिखी हैं। लिखी जानी चाहिए क्योंकि मां कविता का भी अनिवार्य विषय है । यही कारण है कि कुछ उदात्त रचनाकारों ने मां के दूसरे रूपों का भी गुणगान किया है। दुर्गा ,लक्ष्मी, सरस्वती, काली : यह सब भी हमारी देवी माताएं हैं। इनका भक्ति के साथ गुणगान किया गया है लेकिन गंगा मैया, धरती मैया पर भी असंख्य कविताएं लिखी गई हैं। दरअसल जो जीवनदायिनी है, वह मां है। माता हमें नौ महीने का गर्भ धारण कर जन्म देती है। यानी एक जीव को इस धरा पर उतारती है इसीलिए उसे हम जननी भी कहते हैं। जन्मभूमि को भी हम जननी कहते है, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। मां की महिमा अनंत है। मातृ पूजन हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। हर दिन मां की पूजा का दिन हो। पूजा का अर्थ है या नहीं कि हम मां की आरती उतारें वरन उसका सम्मान करें। खासकर जब मां बूढ़ी हो जाए तब तो और अधिक। उसे वृद्ध आश्रम भेजने का पाप तो बिल्कुल ना हो। आजकल ऐसी घटनाएं अधिक सुनने में आ रही है।
यह भी पढ़ें:
शक्ति वामा-1: दुर्गापूजा, दशहरा और बाबूजी का नवाह पाठ
शक्ति वामा-2: देवी को ईश्वर के रूप में पूजने वाला दुनिया का संभवतः एकमात्र शाक्त धर्म
शक्ति वामा-3: स्त्री के आदिम और गृहस्थ रूपों के बीच की दुर्गा करूणामयी है, तो कभी संहारक भी
शक्ति वामा-4: सुलभा, मैत्रेयी और गार्गी को भी जानना ज़रूरी
शक्ति वामा-5: हर स्त्री मेंं विद्यमान रहते हैं दुर्गा के नौ रूप
शक्ति वामा-6: तब अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को कहा था मां दुर्गा
शक्ति वामा-7: सभी स्त्रियों के भीतर उपस्थित मां दुर्गा को हमारा प्रणाम !
(लेखक छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं। कई सालों तक मुख्यधारा में पत्रकारिता भी की। अलग-अलग विधा में कई दर्जन किताबें प्रकाशित। अनगिनत सम्मान-पुरस्कार। संप्रति स्वतंत्र लेखन और पत्रिका सद्भावना दर्पण का संपादन-प्रकाशन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।