द फॉलोअप टीम, रांची:
हम सबसे कभी ना कभी रामायण और महाभारत की कथा जरूर सुनी है। इन कथाओं में हमने जाना है कि रिश्तों को किस तरह से निभाया जाता है। पौराणिक कथाओं में मित्रता की मिसालें भी खूब मिला करती है। आज अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस हम पर जानेंगे वैसी पौराणिक चरित्रों के बारे में जिनकी मित्रता की मिसाल आज भी दी जाती है। चलिए शुरू करते हैं...!
कृष्ण-सुदामा की मित्रता
जब भी दोस्ती की बात होती है तो सबसे पहले कृष्ण-सुदामा का का नाम लिया जाता है। सुदामा कृष्ण बचपन के दोस्त थे। दोनों की दोस्ती सामाजिक और आर्थिक भेदभाव से अलग थी। दोनों ने आचार्य संदीपन के आश्रम में शिक्षा ली थी। सुदामा और कृष्ण में गहरी दोस्ती थी। जब कृष्ण द्वारिकाधीश बने तो सुदामा गरीब थे। आर्थिक तंगी से तंग आकर वे कृष्ण से मिलने गए थे। दोनों मित्रों की मुलाकात में सुदामा कृष्ण से अपनी आर्थिक स्थिति ना कह सके थे। वह चिंतित थे कि घर लौटकर पत्नी से क्या कहेंगे। लेकिन कृष्ण ने उनकी दिल की बात पहले ही सुन ली थी और उनके घर पहुंचने से पहले ही मदद पहुंच चुकी थी। सुदामा का घर एक सम्पन्न महल बन गया था। पत्नी ने कृष्ण कृपा का बखान किया तो सुदामा अपने मित्र की कृपा से फूले ना समाये।
राम और सुग्रीव
राम और सुग्रीव की दोस्ती भी एक बहुत बड़ी मिसाल मानी जाती है। जब राम ऋषिमुख पर्वत पर सीता की खोज कर रहे थे। तब उनकी सुग्रीव की मुलाकात हुई। इसके बाद दोनों ने जीवन भर निस्वार्थ भाव से दोस्ती निभायी। सुग्रीव दोस्त होने के बावजूद भी राम को ईश्वर की तरह सम्मान देते रहे। वही राम ने भी हमेशा ही सुग्रीव को भक्त के साथ-साथ मित्र का भी दर्जा दिया।
कृष्ण और अर्जुन
कृष्ण और अर्जुन के बीच गहरी मित्रता थी। अर्जुन कृष्ण को भगवन के रूप में ही देखते थे। कृष्ण ने उन्हें हमेशा सखा रूप में अर्जुन से स्नेह भाव बनाए रखा। कृष्ण ने हमेशा ही अर्जुन का साथ दिया। वे अर्जुन से विशेष प्रेम रखते थे। वह पूरे महाभारत में अर्जुन के सारथि बने रहे। उन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान तो दिया। वह अर्जुन का हमेशा मार्गदर्शन करते थे।
द्रोपदी और कृष्ण
कहा जाता है एक स्त्री और पुरुष कभी दोस्त नहीं हो सकते हैं इस कारण से इस रिश्ते को संदेह की नजर से देखा जाता है। दरअसल कृष्ण और द्रोपदी हमारी पौराणिक दुनिया में मित्रता का अनुपम उदाहरण है, जो स्त्री और पुरुष के बीच है। इसी के साथ कृष्ण ने जीवन भर द्रोपदी से मित्रता निभाई फिर चाहे मामला चीरहरण का हो या महाभारत युद्ध का कृष्ण ने हमेशा ही उनसे अपनी मित्रता निभाई है।
कर्ण-दुर्योधन
महाभारत में दुर्योधन और कर्ण की मित्रता का भी मिसाल हमेशा दिया जाता है। दुर्योधन ने कर्ण को समाज में वह सम्मान दिलाया जिसके लिए कर्ण तरसते रहे थे। कर्ण ने भी हर परिस्थिति में दुर्योधन का साथ दिया। भले ही वे कई बार उससे वैचारिक रूप से सहमत नहीं भी रहते थे। दोनों क मित्रता एक बड़ी मिसाल के तौर पर आज भी याद की जाती है।
सीता और त्रिजटा
आपको याद होगा कि रावण की अशोक वाटिका में सीता त्रिजटा से मिली। अपहरण के बाद जब सीता को रावण ने अशोक वाटिका में रखा था, तब सीता की सेवा के बहाने उनपर नजर रखने के लिए त्रिजटा को उनके साथ रखा था. धीरे-धीरे त्रिजटा और सीता के बीच मित्रता विकसित हुई। दोस्ती के कारण ही राक्षसी होकर भी त्रिजटा ने सीता का भरपूर सहयोग किया।
राम और विभीषण
राम और विभीषण की दोस्ती भी एक बड़ी मिसाल मानी जाती है। जब विभीषण को उनके भाई रावण ने त्याग दिया था और विभीषण एक भक्त के रूप में राम से मिलने पहुंचे तो राम ने उन्होंने मित्र का दर्जा दिया। उनसे हमेशा ही सखा के तौर पर ही व्यवहार किया। इसके बाद विभीषण हमेशा राम के साथ बने रहे। विभीषण को भले ही लोग घर का भेदी कहते थे। लेकिन तमाम लोगों की आलोचना को सहते हुए भी उन्होंने राम का साथ दिया।