द फॉलअप टीम, रांची:
संविदा पर नियुक्त सहायक प्रोफेसर के मामले पर सुनावई करते हुए झारखंड हाइकोर्ट ने सोमवार को साफ तौर पर आदेश दिया कि संविदा पर नियुक्त पहले से लोग यदि काम कर रहे हैं, तो उन्हें उसी पद पर संविदा की नियुक्ति कर हटाया नहीं जा सकता। साथ ही अदालत ने कोल्हान, विनोबा भावे और बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय में संविदा पर पहले से कार्य कर रहे सहायक प्रोफेसरों को नहीं हटाने का आदेश दिया।
इन लोगों ने याचिका दाखिल की थी
जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला दिया। पूर्व में मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस संबंध में डॉ प्रियव्रत पांडेय, प्रभाष गोरई सहित सात अन्य लोगों ने हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
किस बात को लेकर उठा था विवाद
राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में कोल्हान विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय और विनोद बिहारी कोयलांचल विश्वविद्यालय में संविदा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की थी। हर साल प्रदर्शन के आधार पर इनकी अवधि बढ़ायी जाती थी, लेकिन जनवरी में राज्य सरकार ने नया विज्ञापन निकालते हुए कहा कि वर्ष 2017-18 में संविदा पर नियुक्त हुए असिस्टेंट प्रोफेसर की अवधि 31 मार्च 2021 को समाप्त हो रही है, इसलिए नई नियुक्ति की जायेगी। इसमें पहले से काम करने वाले लोग भी आवेदन कर सकते हैं।
फैसले को हाईकोर्ट में दी गई थी चुनौती
इस मामले को हाइकोर्ट में चुनौती दी गई। सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता विकास कुमार ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद झारखंड हाइकोर्ट ने कई ऐसे आदेश दिये हैं जिसमें कहा गया है कि अगर विशेष परिस्थितियों में संविदा पर नियुक्ति की जाती है तो दोबारा उसी पद पर संविदा से होनेवाली नियुक्ति से रिप्लेस नहीं किया जा सकता। इस पर सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को फैसला सुनाते हुए पूर्व में कार्यरत सहायक प्रोफेसरों को काम से नहीं हटाने का निर्देश दिया।