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पेसा इलाकों में भी पंचायत चुनाव कराएगी झारखंड सरकार, पंचायती राज विभाग ने स्पष्ट कर दी मंशा

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द फॉलोअप टीम, रांची: 

पेसा इलाकों को पंचायत चुनाव से बाहर रखने की मांग को हेमंत सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। बीते 2 बार से जिस तरह से राज्य के पेसा क्षेत्र में पंचायत चुनाव करवाया गया था, इस बार भी वहां चुनाव करवाया जायेगा। गौरतलब है कि सामान्य इलाकों के साथ-साथ पेसा इलाकों में भी पंचायत चुनाव होगा। सरकार इस फैसले पर अडिग है। गौरतलब है कि शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन विधायक दीपक बिरुआ ने इस संबंध में सरकार से जानकारी मांगी थी जिसमें ये स्पष्ट हो गया। 

पंचायती राज विभाग ने स्पष्ट कर दी मंशा
मिली जानकारी के मुताबिक पंचायती राज विभाग ने साफ कर दिया है कि अनुसूचित क्षेत्रों के पंचायत चुनाव स्थगित रखने का कोई प्रस्ताव उनके पास विचाराधीन नहीं है। दीपक बिरुआ ने सरकार से पूछा था कि पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 24 दिसंबर 1996 में पारित हुआ था। इस बात को 24 साल बीत गया। इतने वर्ष बीतने के बाद भी अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा-1996 के अनुरूप ना तो नियम बन सका और ना ही पेसा को अक्षरश लागू किया जा सका। केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय ने 31 जनवरी 2018 को झारखंड को एक पत्र जारी कर अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पेसा-1996 के तहत नियमावली बनाने को कहा था। दीपक बिरुआ ने पूछा कि यदि पेसा नियमावली नहीं बनाई गई है तो अनुसूचित क्षेत्रों के पंचायत चुनाव पर रोक लगाने का विचार राज्य सरकार के पास है या नहीं। सरकार ने दीपक बिरुआ के इस सवाल का जवाब दिया। 

संविधान तथा पेसा कानून का पूरा ध्यान रखा
झारखंड सरकार के पंचायती राज विभाग ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि प्रभु नियारन और सैमुअल सुरीन एवं अन्य बनाम भारत संघ (2549010) वाद में झारखंड हाईकोर्ट के न्यायादेश के मुताबिक झारखंड पंचायती राज एक्ट-2001 को तैयार करने में संविधान तथा पेसा एक्ट के प्रावधानों का पूरा ध्यान रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के पेसा संबंधी मसले पर न्यायादेश की संपुष्टि की। 

पेसा क्षेत्रों में पंचायत चुनाव नहीं कराने का प्रस्ताव नहीं
पंचायती राज मंत्रालय (भारत सरकार) की ओर से पत्रांक 16016/25/2015-PESA, 31.07.2015 तथा पत्रांक 16016/25/2015-PESA, 01.09.2020 के द्वारा पेसा एक्ट के अनुरूप राज्यों में मानक पेसा नियमावली बनाने को कहा गया था। इस बीच हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर राज्य में 2010 तथा 2015 में पेसा क्षेत्रों में भी पंचायत चुनाव कराए गए हैं। फिलहाल पेसा क्षेत्रों में पंचायत चुनाव नहीं कराने का कोई प्रस्ताव नहीं है। 

साल 1996 में झारखंड में लागू हुआ था पेसा कानून
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि झारखंड में पेसा कानून साल 1996 में लागू हुआ था। पेसा कानून झारखंड के अनुसूचित इलाकों में लागू है। इसके अंतर्गत राजधानी रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, लातेहार, गढ़वा का भंडरिया ब्लॉक तथा संताल परगना के दुमका, गोड्डा के सुंदरपहाड़ी, बोआरीजोर ब्लॉक, पाकुड़, राजमहल और जामताड़ा जिले के अंतर्गत आता है। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के पेसा कानून वाले क्षेत्रों में पंचायत चुनाव कराने को पूर्व में जायज ठहराया है। इस संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया था।

अनुसूची-6 के मुताबिक प्रशासनिक व्यवस्था का प्रावधान
गौरतलब है कि प्रभू नारायण, सैम्यूल और प्रेमचंद मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि पंचायती राज एक्ट के तहत अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत चुनाव नहीं कराया जा सकता है।  उन्होंने पेसा कानून की धारा 4(0) के तहत अपील की थी कि इन क्षेत्रों में चुनाव नहीं कराए जाएं।  पंचायत एक्ट अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं हो। पंचायती राज एक्ट 2001 को अनुसूचित क्षेत्र में लागू करने के लिए संविधान की अनुसूची छह के अनुरुप प्रशासनिक व्यवस्था होनी चाहिए। अनुसूची-6 असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में लागू है।

विधानसभा संविधान की धाराओं के तहत व्यवस्था बनायेगी
गौरतलब है कि उपरोक्त राज्यों में वहां ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट एंड रीजनल एडवाइजरी काउंसिल बनाकर इसे प्रशासनिक अधिकार दिए गए हैं। अनुसूची (6) वाले राज्यों में पंचायत चुनाव नहीं होता है, जबकि झारखंड अनुसूची पांच के अंतर्गत आता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां अनुसूची छह के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता है। पेसा कानून का प्रावधान 4(0) स्पष्ट कहता है कि राज्य की विधानसभा संविधान की धाराओं को ध्यान में रखते हुए इन क्षेत्र में प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने का प्रयास करेगा। 

अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को विशेष अधिकार होता है
पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया (पेसा) एक्ट 1996 में लागू हुआ।  यह प्रशासनिक व्यवस्था को पंचायत स्तर तक लागू किए जाने का प्रभावी कानून है। इसके तहत अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को पंचायत द्वारा विशेष प्रशासनिक अधिकार प्राप्त होते हैं। जल, जंगल, जमीन पर पंचायत का कंट्रोल होता है। चुनावी प्रक्रिया में भी जनजातीय समुदाय को विशेष संरक्षण प्राप्त होता है। मुखिया, प्रमुख, जिला परिषद अध्यक्ष आदि के एकल पद रिजर्व होते है। जहां अनुसूचित जनजाति की आबादी 50 फीसदी से कम है। वहां मुखिया के एकल पद को रिजर्व नहीं करने के लिए हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।