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सरकारी पैसे से पता चलेगा झारखंड मुक्ति मोर्चा कैसे आई वजूद में

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द फॉलोअप टीम, रांची
क्या आपने सोचा है कि आखिर झारखंड मुक्ति मोर्चा वजूद में कैसे आई ? कहां से और किस परिस्थिति में इसका निर्माण हुआ? वो लोग कौन थे जो इस पार्टी के बनने की भूमिका तैयार कर रहे थे? जाने-अनजाने ही सही, अब ये बातें शोध के तौर पर सामने आ सकती है। वो भी पुख्ता प्रमाण के साथ। झारखंड सरकार यह पता लगाने जा रही है कि कैसे वजूद में आई झमुमो। इसके लिए शोधकर्ताओं से आमंत्रण मंगाया गया है। 
रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान की ओर से जारी एक डॉक्यूमेंट के मुताबिक पहली बार सरकारी स्तर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा की उत्पत्ति के जड़ पर शोध किया जाएगा। यह अध्ययन मूल रूप से ‘सोनोत संथाल’ समाज पर किया जाएगा, जिससे आज से वर्षों पूर्व झामुमो जैसी राजनीतिक पार्टी का उद्भव हुआ था। शोध को लेकर विभागीय अनुमति ले ली गई है। अब निविदा जारी कर शोध करने वाली संस्था या एजेंसियों के चयन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। 

1971 में जयराम हेम्ब्रम ने किया था सोनोत संथाल समाज का गठन -
जानकारी के मुताबिक 1971 में जयराम हेम्ब्रम द्वारा सोनोत संथाल समाज का गठन किया गया। इस बीच शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। शिबू और आंदोलन की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी। अलग राज्य के मांग को एक बार फिर बल मिलने लगा था। जनता का मूड भांप मार्क्सवादी समन्वय समिति के संस्थापक कामरेड एके राय और झारखंड अलग राज्य के प्रबल समर्थक बिनोद बिहारी महतो ने 4 फरवरी 1973 को झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया और इसकी कमान शिबू सोरेन को थमा दी। यहां से झारखंड राज्य की मांग एक नई दिशा की ओर मुड़ने लगी।

संगठन और उनसे जुड़े लोगों की भूमिका पर भी शोध - 
अध्ययन में यह देखा जाएगा कि इस संगठन और आंदोलन के शुरू होने की क्या परिस्थितियां थी। साथ ही शुरूआती समय में इस आंदोलन व संगठन से कौन-कौन लोग जुड़े रहे। उनकी क्या भूमिका रही और शुरूआती समय से लेकर आंदोलन के अंत तक और वर्तमान में संगठन की क्या भूमिका समाज में बनी हुई है। उससे जुड़े लोगों के राजनीतिक सामाजिक स्तर के बाद में क्या बदलाव आया।  

टुंडी आश्रम आंदोलन का भी होगा उल्लेख - 
इस अध्ययन में टुंडी आश्रम आंदोलन का भी उल्लेख होगा, क्योंकि सोनोत संथाल आंदोलन के साथ-साथ उक्त आंदोलन भी कोयलांचल में कोयला और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों पर साथ-साथ चल रहा था। अध्ययन कार्य को नौ महीने में पूरा किया जाना है। इसके अलावा खेरवा, बुंडू के मुंडा, जंगल महल के भूमिज, रांची के नागवंशी, हजारीबाग के संथाल सहित अन्य जगहों के जनजातीय शासन व काल पर दस्तावेजीकरण होगा। 

किसी भी देश में किसी नागरिक को क्या पहनना है, क्या खाना है, कहां रहना है, उन सब चीजों की कीमत क्या होगी आदि चीजें सरकारें तय करती हैं। लोकतांत्रिक देशों में सरकारों के आने-जाने को राजनीति तय करती है। ऐसे में अगर कोई पार्टी किसी समाज, राज्य में जीवित है, तो उसके वजूद के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। जाहिर है, सरकार का ये कदम इस ओर हो सकता है। 
लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा के आने, बनने और यहां तक पहुंचने की तथ्यपरक जानकारी सरकारी पैसे से होना चाहिए? वह भी तब जब खुद जेएमएम सत्ता में है? 

झारखंड की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्ट पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं कि झारखंड आंदोलन और झारखंड के गठन में झामुमो के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। झामुमो ने कई समाज सुधार के काम भी किए, जिसमें महाजनी प्रथा, नशा मुक्ति आदि शामिल हैं। हांलांकि इस शोध का केंद्र झामुमो होने पर आपत्ति होना लाजिमी है। लेकिन इस शोध का फायदा झामुमो को नहीं मिलेगा। दरअसल किसी भी दिशा में शोध होने का फायदा समाज को ही मिलता है। 

हजारीबाग के संत कोलंबस कॉलेज के छात्रों के आंदोलन से हो शोध की शुरुआत : भाजपा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि एक तरफ सरकार पैसों का रोना रोती है और दूसरी तरफ जनता के पैसों का इस्तेमाल निजी हित के लिए कर रही है। उन्होंने कहा कि शोध होनी चाहिए, लेकिन इस शोध की शुरूआत हजारीबाग के संत कोलंबस कॉलेज के छात्रों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ किए गए प्रदर्शन से होनी चाहिए। साथ ही झारखंड आंदोलन के सभी लोगों और पहलुओं पर शोध होना चाहिए, ना कि सत्ताधारी पार्टी के अस्तित्व में आने पर। 

द फॉलोअप की टीम ने जब इस विषय पर झामुमो के महासचिव सुप्रीयो भट्टचार्य से पूछा, तो उन्होंने कहा कि इस बारे में उनके पास कोई जानकारी नहीं है।

सभी पार्टियों के योगदान पर हो शोध : आजसू
आजसू के मुख्य प्रवक्ता देवशरन भगत ने कहा कि शोध से किसी को अपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन यह शोध समग्र रूप से हो। आंदोलन को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में आजसू पार्टी का अहम योगदान रहा है। शोध के लिए हो रहे सरकारी खर्च का इस्तेमाल सभी पार्टी, सभी नेता और संस्थाओं के योगदान पर होनी चाहिए।