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साबरमती का संत-3 : महात्‍मा गांधी के किसी भी आंदोलन में विरोधियों के प्रति कटुता का भाव नहीं रहा

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(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्‍ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज  करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व  का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू होंगे। आज पेश है, तीसरी किस्त -संपादक। )

भरत जैन, दिल्ली:

भूख हड़ताल का हमारे देश में विभिन्न नेताओं ने एक हथियार के रूप में बहुत इस्तेमाल किया है। लेकिन गांधी जी की जो सोच थी भूख हड़ताल के बारे में वह शायद किसी ने समझी नहीं है । गांधी जी ने भारत आने के बाद पहली भूख हड़ताल अहमदाबाद कपड़ा मिल कर मजदूरों के आंदोलन के दौरान की थी। भूख हड़ताल किन हालातों में की और उसके पीछे गांधी जी की क्या सोच थी, यह समझना बहुत ज़रूरी है। अपनी आत्मकथा के पांचवे खंड के बाइसवें  अध्याय में जिसका शीर्षक है ' उपवास ' उसमें गांधीजी लिखते हैं कि आंदोलन के शुरू में 2 सप्ताह मिल मज़दूर बहुत शांत और अनुशासित रहे। परंतु उसके बाद उनमें थोड़ी बेचैनी नज़र आनी  शुरू हुई। उन्होंने उन लोगों के खिलाफ जो उनका साथ नहीं दे रहे थे, थोड़ा उग्र रूप अपनाना शुरू कर लिया और इस बात का डर था कि कहीं हिंसा न शुरू हो जाए। उनकी  दैनिक सभाओं में मजदूरों की उपस्थिति कम होने लगी और मज़दूरों के चेहरों  पर निराशा और हताशा की भावना साफ दिखने लगी। गांधी जी के कहने पर ही सब ने इस बात का प्रण लिया था कि उनकी हड़ताल अंत तक चलेगी जब तक की उनकी मांग मान नहीं ली  जाएंगी।

 

गांधीजी और भूख हड़ताल

मज़दूरों के इस व्यवहार को देखकर गांधीजी बहुत व्यथित थे।  उन्हें लगा कि मज़दूरों के नेता के रूप में उनकी अपनी कमजोरी ही कहीं ना कहीं सामने आ रही है और इसका प्रायश्चित उन्हें स्वयं ही करना होगा। इसलिए एक  दिन सवेरे मज़दूरों की सभा में उन्होंने घोषणा की कि जब तक हमारी मांगें नहीं मान ली जाएंगी तब तक हम काम पर नहीं जाएंगे यह हमारा फैसला था और क्योंकि अब इसमें कमजोरी नज़र आती है तो मैं तब तक भोजन का त्याग कर रहा हूँ जब तक समझौता नहीं हो जाता। सभी मज़दूर दंग रह गए उन्होंने उन्होंने कहा कि हम क्षमा चाहते हैं और हम भी आपके साथ भूख हड़ताल करेंगे। बहुत मुश्किल से गांधी जी ने उनको समझा बुझा कर के रोका। गांधीजी आगे लिखते हैं कि उन्हें इस बात का डर था कि मिल मालिक जो अब तक अपनी बातों पर अड़े हुए थे। कहीं  वे उनकी भूख हड़ताल के कारण दबाव में ना आ जाएं  और समझौता करने को अपने आप को मजबूर ना समझें ।

 

गांधी का मजाक उड़ाने से बचें

इसलिए उन्होंने खुद मिल मालिकों से कहा कि आप जैसा करना चाहते हैं वैसा करें , दबाव में ना आएं। गांधी जी को इस बात का पश्चाताप था की फिर भी वे  दबाव में आएंगे जरूर। अंत में यही हुआ। 21 दिन पूरा होते-होते मिल मालिकों ने मजदूरों से समझौता कर लिया और हड़ताल समाप्त हो गई। आज भी ज्यादातर लोग यह कहते हैं कि गांधीजी ने भूख हड़ताल मिल मालिकों पर दबाव बनाने के लिए की थी और आज भी भूख हड़ताल दबाव बनाने के लिए ही की जाती है। गांधीजी का मिल मालिकों से विशेषकर मिल मालिकों के संगठन के  अध्यक्ष  अंबालाल साराभाई से बहुत मधुर संबंध थे। अंबालाल जी की पत्नी सरला जी को वे अपनी बहन मानते थे। अंबालाल जी की बहन अनुसूया बेन उनके साथ आंदोलन में मजबूती से काम कर रही थीं। गांधीजी के किसी आंदोलन में अपने विरोधियों के प्रति मन में कटुता व दुश्मनी का भाव नहीं था। इसलिए जब गांधीवादी किसी भी राजनीतिक पार्टी का विरोध गांधी जी का नाम लेकर करते हैं और विरोधी के प्रति कटुता का प्रदर्शन करते हैं तो वे लोग गांधी का मजाक उड़ा रहे हैं ना कि गांधीवाद का प्रचार कर रहे हैं।

जारी

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(लेखक गुरुग्राम में रहते हैं।  संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।