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इत्र पार्क: शिलान्यास के 4 सालों बाद तक विकास की एक ईंट भी मयस्‍सर नहीं

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द फॉलोअप टीम, गोड्डा:

गोड्डा जिला के महगामा प्रखंड के धमड़ी ग्राम के मुखिया ब्रह्मदेव पंडित की आँखों में आज भी इत्र पार्क के इंतज़ार में हैं।10 एकड़ में बनने वाले इस इत्र पार्क का भूमिपूजन 7 नवंबर 2017 को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे और तत्कालीन महगामा विधायक अशोक भगत की मौजूदगी में किया गया था। पर शिलान्यास के इतने सालों बाद भी अब तक उस जमीन पर विकास की एक ईंट भी नहीं पड़ी। जबकि शिलान्यास के समय केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा था कि इत्र पार्क बनने से क्षेत्र का विकास के साथ-साथ युवाओं को रोजगार का भी अवसर मिलेगा। मुखिया समेत इलाके के तमाम लोगों के ज़ेहन में फ़िराक गोरखपुरी का यह शेर जरूर गूंज रहा है, न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद, मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था।

 

अधर में लटकी केंद्र की परियोजना

ग्रामीण कहते हैं कि उन्‍हें तो सब कुछ हीं मिला वादा, यकीन और उम्मीद पर जो न मिला वो है इत्र पार्क। प्राप्त जानकारी के मुताबिक इत्र पार्क के निर्माण के लिए धमड़ी के कृषि फॉर्म में 7 एकड़ जमीन को चिन्हित भी किया जा चुका था, जिसकी मंजूरी भी झारखण्ड कृषि विभाग से मिल गई थी, शेष 3 एकड़ जमीन धमड़ी के कृषि फॉर्म के ठीक आगे रघुनन्दन तिवारी कॉलेज से लिए जाने की बात कही गई थी। बहरहाल, अब सवाल ये है कि आखिर इतनी जटिल प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद भी केंद्र की ये परियोजना अधर में क्यों लटकी है। खबर है कि सूक्ष्म व लघु उद्योग मंत्रालय से कार्य की एफएफडीसी {फ्रेग्रेन्स एंड फ्लेवर डेवलपमेंट, कन्नौज} को राशि मिलने वाली थी। लकिन उक्त राशि का आवंटन नहीं होने से ये परियोजना फाइलों में बंद होकर सरकारी दफ्तरों की चक्कर काट रही है।

 

 

अब भी टकटकी लगाए  खड़ी आस

भूमि पूजन के वक़्त ग्रामीणों को ये भी बताया गया था कि एफएफडीसी {फ्रेग्रेन्स एंड फ्लेवर डेवलपमेंट} कन्नौज की एक यूनिट लगेगी। जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल की खेती होनी थी। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के घास लगाने के साथ-साथ इत्र बनाने का प्लांट लगाए जाना था। इत्र पार्क के शिलान्यास के करीब चार साल बाद भी यहाँ के ग्रामीण इस उम्मीद में हैं कि एक दिन धमड़ी कृषि फॉर्म का सूरत बदल जायेगा,लोगों को इससे रोजगार मिल जाएगाा।नेतागण अपना वादा पूरा कर देंगे पर ग्रामीणों की आँखों में स्याह इंतज़ार को देखकर मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर भुलाये नहीं भुला जा सकता:
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद 
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है....