द फॉलोअप टीम, रांची:
आज विश्व जनसंख्या दिवस है। इस दिन ये जानना बेहद जरूरी है कि कैसे दुनिया की बढ़ती आबादी धरती के लिए खतरनाक साबित होती जा रही है। कैसे बढ़ती आबादी ने धरती में मौजूद उपलब्ध संसाधनों पर बुरा असर डाला है। कैसे दुनिया की बढ़ती जनसंख्या ना केवल मानव जाति बल्कि पूरे जैवमंडल के लिए घातक साबित होती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या ने जैसी जलवायु परिवर्तन के घातक परिणामों को जन्म दिया है। इस खबर में बढ़ती जनसंख्या के संसाधनों पर पड़ने वाले दवाब को लकेर रांची के संदर्भ में बात करना उचित होगा। चलिये जानते हैं।
तेजी से बढ़ती आबादी बन रही है बड़ी समस्या
गौरतलब है कि बीते 100 साल में शहर की आबादी 498 फीसदी बढ़ गई है। 1921 की जनगणना के मुताबिक रांची की कुल आबादी 7 लाख 11 हजार 109 थी जो 2021 में 35 लाख 42 हजार 566 तक पहुंची गई है। हैरानी की बात ये है कि महिलाओं की आबादी रांची में घटी है। 1921 की जनगणना के मुताबिक 1921 से 1941 की जनगणना में महिलाओं की आबादी 51 फीसदी थी जो 1951 से लगातार घटती जा रही है। वर्तमान में रांची में महिलाओं की आबादी कुल जनसंख्या का 3 फीसदी यानी 48 फीसदी हो गई है।
आबादी के हिसाब से मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं
जिस अनुपात में रांची शहर की आबादी बढ़ी है उस अनुपात में शहर में मूलभुत सुविधाओं का विकास नहीं हुआ। पहले से उपलब्ध संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा है। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली-पानी, आवास और सड़क परिवहन के क्षेत्र में आधारभूत ढांचा का विकास नहीं किया जा सका है। इस वक्त शहर की कुल आबादी के लिए 2 लाख 25 हजार घर हैं जबकि 2 लाख 75 हजार घरों की जरूरत है। स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी अस्पतालों की संख्या तो बढ़ गई है लेकिन आबादी के हिसाब से पांच हजार बेड अभी भी कम है। रांची में 2011 की जनगणना के मुताबिक 1 लाख 75 हजार घर थे जो अब 2 लाख 25 हजार 700 हो गए हैं लेकिन जितनी शहर की आबादी है उस हिसाब से अभी भी 50 हजार मकान कम हैं। ये काफी मुश्किल वाली बात है।
स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ रहा है अतिरिक्त बोझ
रांची में आज से 56 साल पहले एकमात्र मेडिकल कॉलेज बना था रिम्स। वर्तमान में शहर में रिम्स सहित 35 निजी अस्पताल और 31 नर्सिंग होम हैं। 22 सरकारी स्वास्थ्य केंद्र हैं। शहर में जितनी आबादी है उसके हिसाब से अभी भी और 10 हजार 788 बेड की जरूरत है। आबादी के हिसाब से अभी भी 4 हजार 655 बेड कम हैं। कोरोना काल में जब काफी संख्या में लोग बीमार पड़े तो शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई थी। लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिला। चिकित्सकों की कमी दिखी। लोगों को ऑक्सीजन और दवाईयां जैसी मूलभूत स्वास्थ्य जरूरतों के लिए तरसना पड़ा।
स्कूलों की कमी और पेयजल भी उपलब्ध नहीं
शिक्षा के क्षेत्र में भी रांची की बढ़ती आबादी संकट बन रही है। जितनी शहर की आबादी है उस हिसाब से स्कूलों में 25 फीसी की कमी है। शहर में साक्षरता दर 88.49 फीसदी है। रांची में शहरी इलाकों में पुरुष साक्षरता दर 92.87 फीसदी है तो वहीं महिला साक्षरता दर 83.75 फीसदी। महिलाओं के मुकाबले पुरुष साक्षरता दर 9.12 फीसदी ज्यादा है। प्रति शिक्षक 38 बच्चे होने चाहिए लेकिन वर्तमान में 62 बच्चों को पढ़ाने का दवाब 1 शिक्षक पर है। शहर में 67 फीसदी आबादी को पानी का शुद्ध पेयजल नहीं मिल पाता। केवल 65 फीसदी आबादी तक ही सप्लाई पाइपलाइन पहुंचा है। 35 फीसदी आबादी कुआं और चापानल पर निर्भर करती है। रांची में रोजाना केवल 220 मेगावाट बिजली मिलती है। बिजरी बोर्ड का दावा है कि रोजाना 22 घंटे बिजली की आपूर्ति की जाती है लेकिन शहर में 4 से 5 घंटे की बिजली की कटौती आम बात है। सार्वजनिक परिवहन पर भी अतिरिक्त दवाब बढ़ा है।