logo

समाजवादी-ललक: गांधी के बाद लोहिया के सांस्कृतिक मानस से सबसे अधिक प्रभावित प्रबुद्ध

13735news.jpg

रामबचन राय, पटना:

आज डॉ. राम मनोहर लोहिया  (जन्म -23 मार्च1910-12अक्‍टूबर1967 ) की पुण्यतिथि है। सिर्फ 57 साल की उम्र में दिल्ली के तत्कालीन विलिंग्डन-क्रिसेंट अस्पताल में प्रोस्टेट के ऑपेरशन के बाद डॉक्टरों की लापरवाही से 12 अक्टूबर 1967 को उनकी मौत हो गयी थी। डॉ. लोहिया विलक्षण प्रतिभा के जितने बड़े राजनेता थे ; उतना ही बड़ा उनका सांस्कृतिक मानस भी था। भारतीय राजनीति में गाँधी के बाद वे दूसरी शख्सियत थे, जिनके प्रति लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, बौद्धिकों और युवजनों का सबसे ज्यादा झुकाव था। वे सामाजिक-आर्थिक गैरबराबरी और विषमता मिटाने तथा महिलाओं को हक और सम्मान दिलाने की खातिर जीवन भर लड़ाई लड़ते रहे। इसे अपने राजनीतिक एजेंडा में उन्होंने शामिल किया था।

Dr. Ram Manohar Lohia na Twitteru: ""मर्यादा केवल न करने की नहीं होती है,  करने की भी होती है। बुरे की लकीर मत लांघो, लेकिन अच्छे की लकीर तक चहल पहल  होनी

 

लेकिन लोहिया अपनी सांस्कृतिक सोच और बौद्धिक विमर्श के मामले में अपने समकालीनों से भिन्न थे। वे अपने को गंगा और सरयू का पुत्र कहते थे। उन्होंने कार्यक्रम दिया - 'नदियाँ साफ करो' , 'हिमालय बचाओ' , 'वनों की रक्षा करो' , ' खर्च की सीमा बांधो', 'वस्तुओं का दाम बांधो' आदि। पर्यावरण-संतुलन के लिए पांचवें दशक से ही उन्होंने आवाज उठाई थी। डॉ. लोहिया की एक पुस्तक है - Interval during politics. इसमें शिक्षा साहित्य संस्कृति, प्रकृति एवं मानव जीवन से जुड़े अनेक विषयों पर उन्होंने अपने विचार प्रकट किए हैं। उन्होंने राम, कृष्ण और शिव पर लिखा है। राम को वे उत्तर और दक्षिण की एकता का देवता और कृष्ण को पूरब और पश्चिम की एकता का देवता कहते थे। भारतवर्ष का पूरा भूगोल इसमें समा जाता है। शिव उनकी नजरों में असीमित व्यक्तित्व वाले हैं - नन-डायमेंशनल।

डॉ. लोहिया ने निराला के कविता-संग्रह 'अणिमा' की समीक्षा अंग्रेजी में लिखी थी, जो उनके द्वारा संपादित पत्रिका Mankind में पहले छपी, फिर Interval during politics में सम्मिलित हुई। मैं नहीं जानता कि आजादी के आस-पास और बाद के भी किसी बड़े राजनेता ने किसी हिंदी कवि की काव्य-पुस्तक की समीक्षा लिखी हो। सन् 50 के आस-पास शुरू होने वाले हिंदी नव-लेखन पर सबसे अधिक प्रभाव लोहिया का है। अज्ञेय, रघुवीर सहाय, डॉ. धर्मवीर भारती, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, प्रो. विजय देव नारायण साही , लक्ष्मीकांत वर्मा, डॉ. रघुवंश, डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी, कृष्णनाथ, श्रीकांत वर्मा, डॉ. जगदीश गुप्त, प्रयाग शुक्ल, नन्द चतुर्वेदी, अशोक सेकसरिया, डॉ. युगेश्वर आदि अनेक रचनाकार लोहिया की सांस्कृतिक विचार-यात्रा के सहचर रहे। उन्होंने चित्रकूट में जब 'रामायण मेला' लगाने की कल्पना की थी तो इनके अलावा उस प्रसंग में आचार्य नलिन विलोचन शर्मा और प्रो. केसरी कुमार से भी विमर्श किया था।

 

राम मनोहर लोहिया के प्रखर विचार| Thought of Rammanohar Lohiya hindi

 

लोहिया ने ही चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसेन को खड़ा किया था। देश और दुनिया के कला-जगत को यह लोहिया की बड़ी देन है। एक बार अपने मित्र बदरी विशाल पित्ती के साथ वे बम्बई से हैदराबाद लौट रहे थे। रास्ते में कार में कुछ खराबी आ गयी। एक गैरेज के सामने गाड़ी रुकी । लोहिया की नजर एक नौजवान पर पड़ी जो किसी पुरानी कार को पेंट कर रहा था। उसके हाथ का ब्रश कुछ ऐसे कलात्मक अंदाज में चल रहा था कि लोहिया देर तक देखते रहे। फिर कुछ पूछताछ की और अपने साथ हैदराबाद लेते गये। फिर क्या था - अपने मित्र बदरी विशाल पित्ती जो राजा साहब के नाम से विख्यात थे, उनसे कह कर मकबूल फिदा हुसेन को कला की शिक्षा के लिए पेरिस भेजवा दिया। हुसेन जितने साल वहाँ रहे खर्च पित्ती साहब उठाते रहे। सड़क किनारे के एक मामूली गैरेज में काम करने वाला लड़का पेरिस से मकबूल फिदा हुसेन बन कर लौटा और दुनिया के कला-जगत में छा गया। आज लोहिया के साथ हुसेन भी याद आ रहे हैं। दोनों को नमन ! 

(लेखक  पटना विवि में हिंदी विभाग के अध्‍यक्ष रहे। संप्रति बिहार विधानसभा परिषद के सदस्‍य।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।