logo

महज़  37 साल की उम्र में कत्‍ल कर दी गईं फूलन देवी की याद के अलग-अलग रंग

11187news.jpg

द फॉलोअप टीम, रांची:

कभी चंबल की बीहड़ों में दहशत रहीं फूलन देवी ने अस्‍सी के दशक में आत्‍मसमर्पण किया। जेल की सजा भी भुगती। बाद में सामाजिक सेवाओं में समय दिया। समाजवादी पार्टी की सांसद भी बनीं। छत्‍तीसगढ़ के पत्रकार विक्रम सिंह चौहान लिखते हैं कि देश की करोड़ों महिलाएं अगर इन्हें पूजती हैंं। अगर कोई देवी है, जीवंत है तो वो सिर्फ फूलन देवी हैs। जातिवाद का दंश सही, अन्यान्य का प्रतिकार किया और सिर्फ 37 साल की उम्र में शहीद हो गईं। वहीं चर्चित लेखक अशोक कुमार पांडेय का कहना है कि फूलन देवी ने जातिवादी पितृसत्तात्मक समाज में विद्रोह किया। बंदूक़ न उठातीं तो ज़िंदगी भर शोषण सहती रहतीं। परिवार के भीतर के शोषण से उन्‍होंने घर छोड़ा और वह राह चुनी जो उपलब्ध थी। और जानिये देश का प्रबुद्ध तबक़ा उन्‍हें कैसे याद करता है।

फूलन देवी: युद्ध से बुद्ध और समाजवाद तक: दिलीप मंडल

वरिष्‍ठ पत्रकार व इंडिया टुडे के पूर्व संपादक दिलीप मंडल लिखते हैं, फूलन देवी ने भेदभाव मूलक हिंदू धर्म को त्यागकर,  15 फ़रवरी, 1995 को नागपुर दीक्षाभूमि में हज़ारों लोगों की उपस्थिति में बौद्ध धम्म ग्रहण किया था। जापान का राजपरिवार इस ख़ास मौक़े पर वहाँ मौजूद था। उनका cremation बौद्ध रीति से किया गया । अटल बिहारी वाजपेयी शव के दर्शन के लिए आए। राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने व्यक्तिगत तौर पर शोक जताया और मुलायम सिंह यादव ने खुद शव को कंधा दिया। 

फ़िल्म एक्ट्रेस कंगना को Y+ कटेगरी की सुरक्षा देने वाली BJP ने तब सांसद फूलन देवी को Y कटेगरी सुरक्षा देने से भी मना कर दिया था। जबकि उनकी जान को उस समय सबसे ज़्यादा ख़तरा था। वाजपेयी पीएम थे और आडवाणी गृह मंत्री। संसद में हंगामा हुआ। लेकिन फिर इस बात की कभी जाँच नहीं हुई कि फूलन देवी को Y कटेगरी सुरक्षा भी क्यों नहीं दी गई।
फूलन देवी से ज़्यादा ख़तरे में उस समय कौन था? लेकिन उन्हें Z तो छोड़िए, Y कटेगरी की सुरक्षा देने से भी वाजपेयी सरकार ने मना कर दिया था। संसद में इसे लेकर हंगामा भी हुआ। वीरांगना फूलन देवी खुद बंदूक़ छोड़ चुकी थीं। एक कायर ने निहत्थी महिला सांसद पर गोली चला दी। उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फूलन देवी को श्रद्धांजलि देने तो पहुँच गए लेकिन जब संसद में उनसे पूछा गया कि सांसद फूलन देवी की जान को इतना गंभीर ख़तरा होने के बावजूद उनकी सुरक्षा कम क्यों रखी गई, तो सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। इस साज़िश की कभी जाँच नहीं हुई।

 

जिस दिन भारत में औरतों पर देवी माता की जगह फूलन देवी आने लगेंगी, उस दिन के बाद से भारत में बलात्कार बंद हो जाएँगे। अधिकार के लिए आवाज़ उठाती, लड़ती भिड़ती औरत को आज भी लोग कहते हैं कि - ज़्यादा फूलन मत बनो। अमर होना इसे ही तो कहते हैं। आज भी भाई की तुलना में चॉकलेट का छोटा टुकड़ा मिलने पर सात साल की बच्ची अपने से बड़े भाई की हाथ पर झपट्टा मारती है तो पिता कहते हैं- “लड़की फूलन देवी बन गई है!” हक, अधिकार और सम्मान की लड़ाई का जन-जन का प्रतीक बन चुकी इस आदि विद्रोहिणी को भारत रत्न न देकर वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की सरकार ने बहुत नीचता दिखाई है। लेकिन इससे फूलन देवी का क़द छोटा नहीं होता। वे भाषा और विमर्श का स्थायी हिस्सा बन चुकी हैं।


 

फूलन का प्रतिकार सामंती और बलात्कारी संस्कृति के खिलाफ था : सुनील यादव

युवा लेखक सुनील यादव कहते हैं, जो लोग यह मानते हैं कि वीरांगना फूलन देवी के प्रतिकार को सम्मान देना ठाकुरों का अपमान है तो वे बलात्कारी सोच के लोग हैं । क्योंकि उन्हें नही पता कि ठाकुर अर्जुन सिंह ने फूलन का समर्पण करवाया था और ठाकुर वीपी सिंह उन्हें बेहद इज्जत देते थे। फूलन का प्रतिकार सामंती और बलात्कारी संस्कृति के खिलाफ था किसी जाति के खिलाफ नही उन्होंने बदला लेने का अपना रास्ता चुना उस वक्त वही रास्ता उनके लिए सही था। आप फूलन देवी के प्रतिकार को याद न करके उन्हें सम्मान न देकर के बलात्कारी सामंती मानसिकता वाली ताकतों के साथ खड़े होते हैं। अब ये ठाकुरों को तय करना चाहिए कि वो वी पी सिंह, अर्जुन सिंह जैसे विख्यात हो के जीना चाहते हैं या शेर सिंह की तरह कुख्यात या उसके बाप लालाराम की तरह अपराधी बलात्कारी  हो के कुख्यात होना चाहते हैं।

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।