प्रेम कुमार, बेगुसराय:
(उप्र के एक दफ़तर से छोटी-मोटी सरकारी अधिकारियत टाइप चीज से तो मैं त्यागपत्र दे कर कब का मुक्त हो गया पर उन पाँच छह वर्षों में ही बहुत कुछ देखा सुना। करीब डेढ दशक पहले की इस कथा में बस नाम हेरफेर कर दिए गए गए हैं। कुछ पात्र सिधार चुके हैं। बाकी घटनाएँ ऐसी ही थीं, जिन्हें कथाक्रम के अनुरुप तरतीब दे दिया गया है।)
2000 के पहले दशक के मध्य के आसपास का समय था। घनघोर गर्मी के बीच लोकसभा चुनाव की गहमागहमी में लखनऊ पूरी तरह डूबा था। मुझे देवरिया से स्थानांतरित हो कर लखनऊ आए साल भर से उपर हो रहा था और इसबीच मैं तथाकथित विभागीय ट्रेनिंग भी ले चुका था। लखनऊ में मुझे अपने विभाग के जिला प्रमुख के साथ संलग्न कर दिया गया था। विकास भवन में जिला प्रमुख अपने चैंबर में बैठते और हमलोग अपने स्वभाव से मजबूर सारे कर्मचारियों के लिए निर्धारित हॉल में बैठकर सबके साथ हा हा ही ही करते रहते।
हमारे तत्कालीन विभागीय जिला प्रमुख मिश्रा जी खूब जुगाड़ू व्यक्ति थे, तभी लखनऊ में चार साल से जमे थे। मिश्रा जी ऑफिस के दास बाबू टाइपिस्ट और कमाल मियां जूनियर क्लर्क के दम पर जिला सँभालते। इन दोनों को जिले भर में साहब के दोनों हाथों के बराबर मान्यता मिली हुई थी। कहाँ किस उपक्रम से कितना पैसा आता है, कितना आ सकता है,कितना ज्यादा दबाने पर और कितना मिल सकता है ये सब पूरे जिले के विभाग से संबंधित सभी उपक्रमों के बारे में उन दोनों को ही पता रहता था।
साहब की जीप यादव जी चलाते थे। मतलब यादव जी, दास बाबू और कमालमियां के दम पर मिश्राजी की साहेबी चौथे गियर में दौड़ रही थी और पैसा मेमसाब की आलमारी तक धकाधक पँहुच रहा था।
विभागीय मंत्री जी की बेटी विदेश से पिता के मंत्रित्व का सुख उठाने लखनऊ के माल एवेन्यू स्थित पिता को अलॉट बँगले में रहने आईं। आते ही बँगले की साज-सज्जा को विदेशी रंग में ढा़लने का मूड बना लिया। सौ गमलों और सौ विदेशी क्रोटन के सजावटी पेड़ों की लिस्ट जिले के विभागाध्यक्ष के नाते मिश्राजी को मंत्री जी के बंगले पर बुला कर थमाई गई। ऑफिस लौट कर आदतन मिश्राजी ने दासबाबू को चैंबर में बुला कर लिस्ट थमा दी। लिस्ट लेकर दास बाबू और कमाल मियां बाजार निकले और एक घंटे बाद तोंद तक लटके मुँह के साथ वापस आए। आते ही हॉल में आपस में चिल्ला-चिल्ली के साथ विमर्श शुरू हो गया जो अंततः इस निष्कर्ष पर पँहुचा कि ये माँग अभी यानी इलेक्शन के माहौल में पूरी करना असंभव है क्योंकि मय गमलों पेड़ों की कीमत पैंतालीस हजार तक जा रही थी।
आचार संहिता लागू होने की वजह से किसी पार्टी के नए प्रोजेक्ट को पास करना भी संभव नहीं था। जिससे ज्यादा पैसा पैदा हो सके। दो-तीन दिन की मगजमारी के बाद मिश्रा साहब को वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया। आदतन वो चीखे, सालो मंत्री जी की बिटिया .. में घुस जाएगी रोज फोन कर के नरक किए हुए है कुछ तो करो।
दासबाबू चिढ़ते हुए मुंह बनाए हॉल में बुदबुदाते हुए आए इलेक्शन फाड़े हुए है झां.. करें। इसी प्रकार के ऊहापोह में दिन गुजर रहे थे। मंत्री जी की बिटिया के फोन के डर से मिश्रा जी चैंबर में कम बैठने लगे। ऑफिस के बाकी लोगों में भी फोन उठाने को लेकर ठेलठाल मच जाती थी।
इसी बीच चुनावों के केंद्रीय पर्यवेक्षक के रूप में दिल्ली से भेजी गईं एक दलित महिला आईएएस अधिकारी की सेवाटहल का भार बरास्ते डीएम ऑफिस मिश्रा जी पर ही डाला गया। मिश्राजी को उक्त आईएएस मोहतरमा द्वारा होटल पर तलब किया गया। यादव जी जीप से साहब और दासबाबू को लेकर होटल पहुंचे। वहाँ आईएएस महोदया ने 8-10 कपड़ों की ड्रायक्लीनिंग और loveable ब्रांड की तीन जोड़ी ब्रा और कच्छों की खरीद का काम मय चिट पर लिखे साईज सहित मिश्राजी को सुपुर्द किया। मिश्राजी ने गरियाते बुदबुदाते कपड़ों सहित चिट जीप में दासबाबू के सुपुर्द किया। हजरतगंज के मर्करी ड्रायक्लीनर्स में कपड़े धुलने के लिए दिए गए और फिर हजरतगंज, अमीनाबाद, भूतनाथ मार्केट तक दिन भर वांछित साईज और कंपनी के ब्रा और कच्छों की मैराथन खोज हुई पर तीन जोड़ी पूरे न हुए।
अगले दिन ऑफिस के हॉल में रस ले लेकर यादव जी ड्राइवर साब द्वारा उक्त घटना का घंटों वर्णन किया गया। बारह बजे मिश्राजी फिर ब्रा-कच्छों की खरीदी अभियान पर मय स्टाफ सहित जीप से निकले। इस बीच मंत्री जी की बिटिया द्वारा पौधों और गमलों के तगादे का चरस चरम पर पँहुच गया था बीच में कोठी पर बुला कर पांडे जी को मंत्री जी द्वारा लताड़ भी लगाई जा चुकी थी और सप्तम सुर में जूनियर्स के सामने निकम्मा घोषित किया गया था।
कुल मिला कर ऑफिस का माहौल पूर्ण झंड। ऐसे ही माहौल में मिश्रा जी ने यादव जी को जीप सहित अपनी मेमसाब के ब्यूटी पार्लर सेशन के लिए भेजा। भूतनाथ मार्केट स्थित ब्यूटी पार्लर के बाहर कड़ी धूप में मेमसाब का एक डेढ घंटे इंतजार करने के बाद यादव जी ने सोचा क्यों न इसबीच पास ही निशातगंज के गैरेज में पाँच दस लीटर डीजल बेच कर कुछ टके सिद्ध कर लिए जाएं। निशातगंज के गैरेजों में लखनऊ के तमाम सरकारी वाहनों के ड्राइवर सरकारी डीजल बेचकर कुछ एक्स्ट्रा कमाई जमाने से करते आए थे।
बहरहाल यादव जी अपने डीजल विक्रय अभियान से जब वापस लौटे तबतक मेमसाब इंतजार कर गुस्से में पैर पटकती हुई अग्निशिखा बनी घर जा चुकी थीं। अगले दिन दस बजे मिश्राजी समय पर चैंबर में उपस्थित थे। मंत्री जी की बिटिया के तगादे और आईएएस मोहतरमा के फोन भी खुद ही अटैंड कर पूर्णरुपेण झंडत्व को प्राप्त हो चुके थे।
ऑफिस के हॉल में सुईपटक सन्नाटे के बीच बड़े बाबू ने बताया यादव जी ड्राइवर की वजह से आज साहब का मूड फायर है मुस्कियाते हुए कहा रात में लगता है मेमसाब ने बेतरह टाइट किया है। लगभग ग्यारह बजे यादव जी ड्राइवर हॉल में कठोर मुखमुद्रा के साथ घुसे। मिनट भर में मिश्रा जी साहब के चैंबर से आवाज आई यादव को भेजो.
यादव जी चैंबर में घुसे और बाकी कार्यालय उत्सुकतावश गैलरी में।
उधर मिश्राजी की चीख गालियों में बदली इधर यादव जी का धीरज छूटा और वो चिल्लाए, 'साले अपनी बीवी का साईज नहीं पता होई और दुई दिन से दूसरी मेहरारु के साइज लिखा चिट्टा हाथ में लेई के दउड़ा दउड़ा के गां... फाड़ डारिन,भों... के उपर से इनकी बीवी डेढ घंटे ले आदमी को धूपे में सुखा के बार दाढ़ी बनवइहैं अलग। साले मारै डारब' और मिश्राजीका कॉलर पकड़ लिया। हो-हो करते सब दौड़े, यादव जी को शांत किया गया साहब को छुड़ाया गया।
यादव जी सस्पेंड बहाल हुए वो अलग किस्सा। लेकिन मेरी आँखों के सामने साहेबी बिल्कुल तार-तार हुई नंगी खड़ी थी और मन अपने भविष्य की कल्पना में काँप रहा था।
मजा देखिए एक ब्राह्मण भ्रष्ट अधिकारी एक भ्रष्ट बनिया और भ्रष्ट अल्पसंख्यक के दम पर अपना राज चलाता है। पहले मौके पर ही भ्रष्ट ब्राह्मण मंत्री और भ्रष्ट दलित आईएएस द्वारा भ्रष्टाचार के ट्रैक पर रखेद रखेद कर प्रताड़ित किया जाता है फिर हताशा और ऊब में एक भ्रष्ट यादव द्वारा चैंबर में ही ठुक जाता है।
कहाँ मिलेगा भ्रष्टाचार का ऐसा सेकुलर और जातिविहीन चरित्र। सही मायनों में भारत में भ्रष्टाचार में ही क्राँति हुई है, जो सर्वसमाज द्वारा ससम्मान सर्वस्वीकृत भी हो गई।
(प्रेम कुमार बिहार के बेगुसराय में रहते हैं। स्वतंत्र लेखन करते हैं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।