द फॉलोअप टीम, रांची:
भारतीय संस्कृति में पर्व खास महत्व रखते हैं। इनकी अपनी सामाजिकता है। जिंदगी को उल्लास और संजीवनी देते ये पर्व अपनी उपस्थिति से समाज को नया रंग देते हैं। इसमें महापर्व के रूप में छठ को पहचान मिली है। हरींद्र तिवारी लोकआस्था का महापर्व छठ अपने आप में हर मामले में अनूठा है। यही एकमात्र पर्व है जिसमें किसी भी तरह के कर्मकांड की जरूरत नहीं होती है।
सभी चीजें जनश्रुति आधारित हैं और परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। यह पर्व प्रकृतिस्वरूपा नारी शक्ति को भी दर्शाता है। देश में शायद एकलौता पर्व होगा, जहां की महिलाएं भगवान से अपने खानदान के लिए बेटी मांगती है। सिर्फ इसी पर्व में बेटी के लिए भी मन्नत मांगी जाती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण छठ में गाए जाने वाले गीतों में मिलता है। इन गीतों से यह पता चलता है कि घर में बेटी की कितनी आवश्यकता है। उसके बिना तो घर सूना-सूना सा लगता है। यह उन लोगों के लिए भी उदाहरण है जो बेटियों को जन्म लेने से पूर्व कोख में ही खत्म कर दे रहे हैं।
रुनकी-झुनकी बेटी मांगी ला
छठ गीत में व्रती महिलाएं गाती हैं..., रुनकी-झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दामाद हे छठी मइया...। इस परंपरागत गीत में छठी मइया से सुंदर-सुशील बेटी व विद्वान दामाद की कामना की जाती है। पांच पुतुर, अन्न-धन-लक्ष्मी, धियवा मंगबो जरूर...' इस गीत में महिलाएं कहती हैं कि- हे छठी मइया मुझे पांच पुत्र, अन्न, धन लक्ष्मी एवं सभी तरह के वैभव के साथ एक बेटी जरूर दें।
इस परंपरागत गीत में बेटी जरूर देने की मांग छठी मइया से की जाती है।...छोटी मुटी मालिन बिटिया के भुइयां लोटे हो केस, फुलवा ले अइह हो बिटिया अरघिया के बेर...। इस गीत में इसलिए छठी मइया से बेटी मांगी जा रही है कि छठ करने में वह हमारी मदद करे। इन छठ गीतों से हमारे जीवन में महिलाओं की कितनी आवश्यकता है, यह मालूम पड़ता है। फिर भी पूरे देश में महिलाओं को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा जिसकी वे हकदार हैं।
सूरज को दीया दिखाना का भी है पर्व
सूरज को दीया दिखाना एक मुहावरा है जो परंपरा में शायद छठ के मौके पर ही किया जाता है। हमारी प्रकृति के लिए सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है और कहा जाता है कि छठ व्रती अपने लोककर्म के लिए सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। पारंपरिक रूप से इस व्रत को महिलाएं ही करती हैं इसलिए छठव्रत करने वाली महिलाओं को भी छठी मैया के प्रतीक के रूप में देखा जाता है और व्रती महिलाएं अन्य लोगों के लिए पूजनीय होती हैं। छठव्रती के पैर छूना, व्रत के दौरान उनकी सेवा करना उस परंपरा का प्रतीक है जिसमें लोक ही पूजनीय है। कोई कथा-पुराण नहीं, पुरोहित नहीं बस व्रती की ही महिमा है।