द फॉलोअप टीम, रांचीः
कल से लोक और आस्था का महापर्व छठ शुरू होने जा रहा है। इस पर्व के कई मायने और महत्व है। एक तरह से देखा जाए तो यह कामनाओं और मन्नतों का भी पर्व है। आमतौर पर महिलांए जहां पुत्र प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है, तो इस पर्व को वह बेटियों के लिए भी करती हैं।
आत्मजा कहलाती हैं बेटियां
बेटियों के लिए छठ महाव्रत मे मन्नतों में उठे हाथ कई अनकही बातें अपने आप में समेटे हैं। छठ पर्व में अपने ईश्वर से पुत्री की कामना करना विचारनीय है। पितृसमाज का देह रखनेवाले इस समाज की आत्मा वस्तुतः अपने घर-आंगन में बेटियों की रूनझुन देखने का सदा से आकांक्षी रही है। तभी वह सूर्य देव के आगे सूप हाथ में लिए मन में बेटी की कामना करती है।
छठी मैया से आंचल फैला कर अपने घर-ओसारे को बेटियों के चहकन से गुंजित रहने की बात अपने ईश्वर से कहती है। बेटियों से केवल नाभि का ही नहीं, बल्कि आत्मा का भी सीधा संबंध होता है। तभी तो आत्मजा कहलाती हैं बेटियां।
बेटियों से है समाज
हमारी भारतीय संस्कृति को हमेशा से ही घोषा, गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा जैसी विदुषी बेटियों गर्व रहा है। बेटियों का जीवन सुखमय हो, कदमताल में सदा गति बनी रहे, हमारी सदैव यही कामना रही है। बेटियों से ही हमारे घर-परिवार और समाज का अस्तित्व है। आज बेटियां मजबूती से अपने पैर जमा रही हैं, उड़ान भर रही हैं। शिखर छू रहीं हैं और हर तरह के रुकावट को पार करके आगे बढ़ रही है। इसलिए तो बेटियों पर एक छठ गीत भी फरमाया गया है। रुनकी-झूनकी बेटी मांगील पढ़ल पंडितावा दमाद हे छठी मइया दर्शन देहू न आपार।