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कुंभकर्णी नींद में सोया रहा प्रशासन, स्थानीय लोगों ने श्रमदान से बना ली पक्की सड़क

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द फॉलोअप टीम, लोहरदगा: 
लोहरदगा में जब कुंभकर्णी नींद में सोये प्रशासन ने फरियाद नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने खुद ही सड़क बना लिया। मिली जानकारी के मुताबिक लोहरदगा जिला मुख्यालय के प्रमुख कोयल शंख नदी स्थित मुक्तिधाम तक जाने के लिए सड़क नहीं थी। वहां किसी भी प्रकार की बुनियादी सुविधा का घोर अभाव था। लोगों ने कई बार प्रशासन से सरकारी मदद की गुहार लगाई लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। आखिरकार ग्रामीणों ने श्रमदान के माध्यम से सड़क बना ली। 



मुक्तिधाम तक जाने के लिए नहीं थी पक्की सड़क
ग्रामीणों ने बताया कि इन दिनों इलाके में कोरोना सहित दूसरी वजहों से 80 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अंत्येष्टि के लिए पार्थिव शरीर को शंख नदी स्थित मुक्तिधाम ले जाना होता है। मुश्किल ये थी कि मुक्तिधाम तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं थी। वहां ना तो विश्रामस्थल था और ना ही पानी की सुविधा। बारिश हो जाने पर कच्ची सड़क से मुक्तिधाम तक पहुंचना काफी मुश्किल काम था। स्थानीय लोगों ने कई बार वहां सड़क बनाने की मांग की लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। 

श्रमदान के जरिए लोगों ने बना दी है पक्की सड़क
सरकारी उदासीनता से हताश स्थानीय लोगों ने एक दिन तय किया कि क्यों ना आपसी सहयोग से यहां मूलभूत सुविधा की व्यवस्था की जाए। आखिरकार लोगों ने श्रमदान के माध्यम से पक्की सड़क बना ली। पेयजल का भी इंतजाम कर लिया गया। वहां एक विश्रामस्थल भी बना दिया गया है। लॉकडाउन के बीच लोगों ने जिस तरीके का आपसी सहयोग और सौहार्द दिखाया उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की जा रही है। इलाके के समाजसेवियों ने भी लोगों का सहयोग किया। 

मुक्तिधाम में श्रमदान से पेयजल की भी व्यवस्था की
इलाके के समाजसेवी कंवलजीत सिंह ने कहा कि मुक्तिधाम जाने के लिए पक्की सड़क नहीं थी। बारिश होने पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। मुक्तिधाम में लकड़ी की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। वहां पेयजल की सुविधा भी नहीं थी। फिलहाल श्रमदान के जरिए वहां सड़क बना दिया गया है। पेयजल की भी व्यवस्था की गई। उन्होंने कहा कि आमजनों का सहयोग ऐसे ही बना रहा था मुक्तिधाम में शेड का निर्माण करवाया जायेगा। वहां गार्डन भी बनाया जायेगा। मुक्तिधाम में एक लकड़ी घर का भी निर्माण कराए जाने की योजना है। समाजसेवी रितेश ने बताया कि सड़क नहीं होने की वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। 



आपसी सहयोग से जुटा लिया गया 12 लाख रुपया
समाजसेवी रितेश ने बताया कि इस वक्त रोजाना चार से पांच शवों का अंतिम संस्कार मुक्तिधाम में किया जाता है। लोगों की परेशानी को देखते हुए सनातन धर्मावलंबियों ने संकल्प लेकर मुक्तिधाम को संवारने का काम शुरू किया था। इस बीच जनप्रतिनिधियों और प्रशासन का रवैया नकारात्मक बना रहा। जानकारी के मुताबिक स्थानीय लोगों के सहयोग से तकरीबन 13 लाख रूपये का इंतजाम किया गया। इस राशि से पेयजल की और सड़क का निर्माण किया गया।