logo

बिहार विधानसभा चुनाव : यदि त्रिशंकु हुई विधानसभा तो छोटे दलों की बढ़ेगी अहमियत

2330news.jpg
गौतम चौधरी

राष्ट्रीय जनता दल ने इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में 144 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। इसमें से 74 उम्मीदवार आगे चल रहे हैं। वहीं, महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस ने 70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। अभी कुछ देर पहले 26 सीटों पर वह भी आगे चल रही थी। इसके साथ ही साथ महागठबंधन के साथ साम्यवादी दल 10 सीटों पर आगे चल रहे थे।
दूसरी ओर बिहार में बीजेपी 110 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इनमें से 65 सीटों पर वह आगे चल रही है। नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू ने बिहार में 115 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से उसे 40 सीटों पर वे आगे हैं। वहीं, वीआईपी पार्टी ने 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से उसे 4 सीटों पर आगे चल रही हैं। ऐसे ही जीतनराम मांझी की पार्टी सात सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 1 सीटों पर वे बढ़त बनाए हुए हैं।  

बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना जारी है और शुरूआती रुझानों में तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन और नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए के बीच कांटे की टक्कर है। संभावना यह जताई जा रही है कि बिहार में इस बार विधानसभा की स्थिति त्रिषंकु रहेगी। अभी तक आए रुझानों से किसी भी पार्टी की बहुमत नहीं दिख रही है। मसलन, बिहार में अन्य दल किंगमेकर बनने की भूमिका में दिख रहे हैं। बिहार में त्रिशंकु विधानसभा होती है तो छोटे दलों के हाथ में सत्ता की चाबी रहने की संभावना है।

बिहार की 238 सीटों पर आए रुझाने के मुताबिक 112 सीटों पर महागठबंधन आगे चल रही है जबकि एनडीए 107 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं, अन्य दल 19 सीटों पर आगे चल रहे हैं। इस तरह से एनडीए और महागठबंधन दोनों बहुमत से दूर हैं और अन्य दलों के सहारे ही सरकार बनाने की स्थिति बन रही है।

बिहार में एलजेपी खुद के बल पर चुनाव मैदान में है। वहीं पप्पू यादव, उपेन्द्र कुशवाहा आदि ने भी छोटे-छोटे गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। संभावना यह भी जताई जा रही है कि इन दलों के कुछ पत्याशी चुनाव जीत जाएं। यदि ऐसा होता है और बड़े गठबंधन को सरकार बनाने योज्ञ समर्थन नहीं मिलता है तो इन छोटे दलों के हाथ में सरकार की चाबी रहेगी। इसमें एलजेपी, साम्यवादी दल और उपेन्द्र कुशवाहा, पप्पू यादव की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। दूसरी बात यह है कि चुनाव के रूझानों से यह भी साफ हो रहा है कि बिहार में मरी हुई कांग्रेस फिर से जिंदा होती दिख रही है। कांग्रेस और साम्यवादी दल एनडीए के पक्ष में तो नहीं जाएंगे लेकिन पप्पू यादव और उपेन्द्र कुषवाहा की पार्टी एनडीए का घटक बन सकती है। इससे सरकार का छुकाव छोटे दलों पर केन्द्रित होगा।