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शक्ति वामा-4: सुलभा, मैत्रेयी और गार्गी को भी जानना ज़रूरी

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या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

स्त्री-शक्ति की उपासना के नौ-दिवसीय आयोजन नवररात्रि की शुभकामनाएं, इस आशा के साथ कि स्त्री-शक्ति की पूजा की यह गौरवशाली परंपरा स्त्रियों के प्रति सम्मान के अपने मूल उद्देश्य से भटककर महज कर्मकांड बनकर न रह जाए।

कृष्णा नारायण, दिल्ली:

दुर्गापूजा स्त्री के सम्मान, ताकत और सामर्थ्य के साथ-साथ उसके स्वाभिमान की सार्वजनिक पूजा है। एक ऐसी सभ्यता एक ऐसी संस्कृति जहाँ स्त्री को शक्तिस्वरूपा माना जाये तो उस सभ्यता और संस्कृति के स्तर का सहज ही आकलन हो जाता है। सरल, सात्विक, पारदर्शी समाज जहाँ स्त्री का स्थान सम्मान और गौरव का था। वैसे तो वैदिक वाङ्मय में शक्ति के कई नाम हैं- अदिति, सिनी, कुहुवाली, राका, उषा, वाग्देवी, पृथ्वी, सरस्वती, इड़ा, अरण्यानी,वाचकन्वी गार्गी आदि। आज इन सबसे परे जाकर तीन ऐसी स्त्री, तीन ऐसी भारतीय महिला दार्शनिक की चर्चा जिसने अपने  चिंतन मनन अध्ययन आक्रामकता और मेधा के द्वारा समय और समाज को देखने की दृष्टि ही बदल दी। ये हैं- सुलभा मैत्रेयी और गार्गी। सुलभा के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है या ये भी कह सकते हैं कि अभी तक हमें ज्यादा जानकारी नहीं मिल पायी है| जितनी जानकारी मिली है उसकेअनुसार पितृपक्ष में जिन ऋषियों के तर्पण हेतु जल दिया जाता है, ऋषिका सुलभा भी उसी पंक्ति में है। तमाम ऋषियों के साथ एक ऋषिका सुलभा का होना सहज ही स्त्री के सम्मान, ताकत और सामर्थ्य का परिचय देते हैं।

 

मैत्रेयी एक ऐसी स्त्री जिसे उसके पति याज्ञवल्क्य सारे जीवन की अर्जित सम्पदा दे रहे थे लेकिन मैत्रेयी ने धन-दौलत लेने से इनकार किया और कहा कि इस धन से समूची पृथ्वी भी मेरी हो जाए तो क्या मैं अमृतत्व को पा लुंगी??  वह उन सभी को ठुकराकर अमृतत्व को पाने हेतु आतुर थी। भारत की स्त्री मेधा जिसे  अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ में  गहरी दिलचस्पी थी, जो भौतिकवादी धन साधन की तुलना में सृष्टि के रहस्यों को जानने को बेचैन थी। मेधा शक्ति, चिंतन और जीवन के प्रति उसकी दृष्टि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। 

 


 
एक और महिला दार्शनिक गार्गी को समझने हेतु इस कथा में प्रवेश करें। मिथिला नरेश जनक प्रतिवर्ष अपने यहां शास्त्रार्थ करवाते थे।  जनक ने शास्त्रार्थ विजेता के लिए  एक हज़ार ऐसी  गायों को दान में देने की घोषणा की जिसके सींग स्वर्ण जड़ित थे। उन्होंने कहा कि शास्त्रार्थ के लिए आनेवाले ज्ञानी जनों में से जो भी श्रेष्ठ ज्ञानी विजेता बनेगा उसे ये गायें पुरस्कार स्वरुप प्रदान की जाएगी। ऋषि याज्ञवल्क्य ने अति आत्मविश्वास से भरकर अपने शिष्यों से कहा, इन गायों को ले चलो। उस सभा में  गार्गी भी बुलाई गयी थी। सबके पश्चात् ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने वे उठीं। दोनों के बीच जो शास्त्रार्थ हुआ उसमें गार्गी याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में बदलती गई और इस तरह गंधर्व लोक, आदित्य लोक, चन्द्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक, इन्द्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्मलोक तक जा पहुंची और अन्त में गार्गी ने फिर वही प्रश्न पूछ लिया कि यह ब्रह्मलोक किसमें जाकर मिल जाता है? 'ओत च प्रोत च।' 

 


 
गार्गी पर क्रोधित होकर याज्ञवक्ल्य ने कहा, गार्गी, इतने प्रश्न मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा मस्तक फट जाए। अच्छा वक्ता वही होता है जिसे पता होता है कि कब बोलना और कब चुप रहना है  इसीलिए उस समय तो वह चुप हो गयी परन्तु दूसरे दिन अपने उसी आक्रामक तेवर के साथ वह सभा में फिर से वापस आयी और याज्ञवक्ल्य को ललकारते हुए बोली हे ॠषि सुनिए जिस प्रकार राजा एक साथ दो अचूक बाणों को धनुष पर चढ़ाकर अपने दुश्मन पर लक्ष्य साधता है, वैसे ही मैं आपसे दो प्रश्न पूछती हूं। और तब गार्गी ने ' स्पेस' और 'टाइम' के माध्यम से बाण की तरह पैने इन दो प्रश्नों के जरिए जो पूछा वह हर किसी के जानने योग्य है। अद्भुत है यह संवाद। वेदज्ञ और ब्रह्मज्ञानी गार्गी जिसमें लेशमात्र भी अहंकार नहीं था, के बारे में हर किसी को जानना ही चाहिए।

जारी

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(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। डिजिटल मंच पर नियमित लेखन। मूलतः बेगूसराय की निवासी।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।