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संविदाकर्मियों को नियमित करने की ओर सरकार ने बढ़ाए कदम, कमेटी ने सभी विभागों से सूची मांगी

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द फॉलोअप टीम, रांची 
राज्य में संविदाकर्मियों के लिए राहत भरी खबर है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से विभिन्न स्तरों पर संविदाकर्मियों को नियमित करने का दिया गया आश्वासन अब मूर्त रूप ले सकता है। शुक्रवार को विकास आयुक्त की अध्यक्षता में बनी कमेटी की बैठक में विभिन्न विभागों में कार्यरत संविदाकर्मियों और उन्हें प्रतिमाह दी जानेवाली राशि पर चर्चा हुई। विकास आयुक्त केके खंडेलवाल के अलाव कमेटी में कार्मिक सचिव, वित्त सचिव, विधि सचिव एवं श्रम विभाग के सचिव सदस्य के तौर पर अपने विचार देंगे।

संविदाकर्मियों की रिपोर्ट तैयार होगी 
बैठक में सभी विभागों से संविदा पर कार्यरत कर्मियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि कार्मिक विभाग इस संबंध में सभी विभागों से पत्राचार करेगा। रिपोर्ट तैयार होने के बाद अगली बैठक होगी। अगली बैठक में इन्हें नियमित रूप से बहाल करने को लेकर संभावनाओं पर चर्चा की जाएगी। बैठक में उन विभागों की पड़ताल की गई जहां संविदा पर अधिक कर्मी नियोजित हैं। सूचना है कि राज्य में दो लाख से अधिक संविदाकर्मी विभिन्न स्तरों पर कार्यरत हैं।  अक्टूबर तक इस संबंध में स्पष्ट मंतव्य तैयार करने की कोशिश की जा रही है।

2018 में क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश? 
बता दें कि 2018 में भी रघुवर सरकार ने  झारखंड सरकार के विभिन्न विभागों में पिछले 10 साल से कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे कर्मचारियों को नियमित करने का विचार किया गया था। यह कहा गया था कि सरकार अब अस्थाई कर्मचारी नहीं रख पाएगी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है। कोर्ट ने कहा है कि झारखंड सरकार ने अस्थाई नियुक्तियों पर ध्यान दिया, जबकि स्थाई बहाली करनी चाहिए थी।  सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार अस्थाई कर्मचारियों पर डोमिसाइल की तलवार लटकाए रखना चाहती है, ताकि उन्हें उनका समुचित लाभ नहीं मिल सके। यह एक भयादोहन के समान है। 

नियमावली का हुआ था विरोध
झारखंड सरकार ने 13 फरवरी 2015 को सेवा नियमितीकरण नियमावली 2015 बनाई थी। इसमें व्यवस्था थी कि 10 अप्रैल 2006 तक जिन अस्थाई कर्मियों का सेवाकाल दस साल पूरा होगा, उन्हें ही स्थाई किया जाएगा। इसका विरोध शुरू हो गया। कहा गया कि जब झारखंड राज्य वर्ष 2000 में बना तो 1996 या उससे पूर्व रखे गए अस्थाई कर्मियों को स्थाई करने का उद्देश्य बिहार के लोगों को फायदा पहुंचाना है। इसके बाद नरेंद्र कुमार तिवारी समेत अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सरकार ने सेवा नियमितीकरण की जो व्यवस्था बनाई है, वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के आलोक में सही है। अब देखना है कि हेमंत सरकार कबतक और किस तरह से संविदाकर्मियों को स्थायी कर पाती है।