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सुप्रीम कोर्ट में फिर लौटी पुरानी पहचान, बदले जायेंगे प्रतीक और गलियारे; हटेंगी कांच की दीवारें

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द फॉलोअप डेस्क 
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपनी ऐतिहासिक पहचान की ओर लौटते हुए दो बड़े प्रशासनिक फैसले लिए हैं। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अगुवाई में न्यायालय ने पुराने प्रतीक चिह्न को पुनः लागू कर दिया है और कोर्ट परिसर में लगे कांच के विभाजक (ग्लास पार्टीशन) हटाने की घोषणा की है। ये दोनों निर्णय पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ द्वारा लाए गए आधुनिकीकरण के उपायों से एक स्पष्ट विचलन को दर्शाते हैं।


पहचान की वापसी: पारंपरिक प्रतीक फिर से स्थापित
सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में अपनी 75वीं वर्षगांठ पर नया प्रतीक चिह्न और ध्वज जारी किया था, जिसमें अशोक चक्र, न्यायालय की इमारत और संविधान का चित्रण शामिल था। यह प्रतीक चिह्न “यतो धर्मस्ततो जयः” जैसे संस्कृत वाक्य के साथ न्याय की भावना को दर्शाता था। हालांकि, अब यह प्रतीक हटा दिया गया है और न्यायालय ने पुराने प्रतीक को बहाल कर दिया है। पुराने प्रतीक का विस्तृत विवरण अभी सामने नहीं आया है, लेकिन यह कदम न्यायालय की मूल पहचान को पुनः स्थापित करने की दिशा में देखा जा रहा है।
खुला न्यायालय परिसर: कांच की दीवारें हटेंगी
पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट परिसर के गलियारों में वातानुकूलन को ध्यान में रखते हुए कांच की दीवारें लगाई गई थीं। लेकिन वकीलों की कई बार उठी आपत्तियों के बाद अब इन्हें हटाने का निर्णय लिया गया है। वकीलों का मानना है कि खुले गलियारे न सिर्फ परंपरा का प्रतीक हैं, बल्कि न्यायालय को अधिक सहज और पारदर्शी बनाते हैं।


बदलाव के मायने: आधुनिकता बनाम विरासत
ये फैसले यह संकेत देते हैं कि वर्तमान नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट की आधुनिक पहचान के बजाय उसकी पारंपरिक संरचना और विरासत को प्राथमिकता दे रहा है। यह बदलाव न्यायिक परिसर की भौतिक रचना के साथ-साथ उसकी सांस्कृतिक पहचान को भी प्रभावित करता है। कानूनी जगत के कई सदस्य इस बदलाव का स्वागत कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह न्यायालय की गरिमा, परंपरा और आम जन की पहुँच के लिहाज़ से एक सकारात्मक कदम है। यह निर्णय सिर्फ भौतिक बदलाव नहीं, बल्कि न्यायालय की कार्य संस्कृति की एक नई दिशा को भी दर्शाता है।

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