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कभी डिलीवरी बॉय का काम किया अब बने जज, पढ़िए यासीन की संघर्ष भरी कहानी

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द फॉलोअप डेस्कः
कहा जाता है कि कमियों के बीच ही कोई एक हीरा निकलता है वरना जिसे जिंदगी हाथों में परोस कर मिली हो, वो क्या ही जाने मेहनत का फल। बचपन में घर-घर जाकर अखबार डाली, बड़े हुए तो जोमैटो के डिलीवरी बॉय का काम किया और अब केरल ज्यूडिशियल एग्जाम 2024 में दूसरा रैंक हासिल करना, ये कहानी है केरल के मोहम्मद यासीन की।


केरल के पलक्कड़ जिले के पट्टांबी कस्बे में जन्मे मोहम्मद यासीन का बचपन तंगहाली में बीता। घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। राज्य सरकार की आवास योजना के तहत उनके परिवार को एक छत मिल गई। बड़ा बेटा होने के नाते, यासीन ने बचपन से ही परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली। यासीन ने 8वीं कक्षा में ही अखबार और दूध बांटने का काम शुरू किया, जिससे परिवार को मदद मिल जाती थी। इसके अलावा, निर्माण स्थलों पर मजदूरी और पेंटिंग का भी काम वो कभी-कभी कर लेते थे। स्कूली दिनों में वे औसत से भी कमतर छात्र रहे।


लेकिन चाहे कुछ भी हो, पढ़ाई नहीं छोड़ी। 12वीं के बाद यासीन ने इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा किया। डिप्लोमा के बाद उन्होंने गुजरात में एक छोटी नौकरी की, लेकिन वहां से लौटने के बाद उन्होंने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में ग्रेजुएशन किया। यहीं से उनके मन में कानून के प्रति जिज्ञासा बढ़ी। इसके बाद लॉ कॉलेज में एडमिशन लिया औऱ केरला के लॉ एंट्रेंस एग्जाम में 46वीं रैंक हासिल की। इसके बाद एर्नाकुलम के एक माने हुए सरकारी लॉ कॉलेज में उन्हें दाखिला मिल गया।


डिलीवरी बॉय से जज बनने का सफर
यासीन ने पढ़ाई के साथ-साथ दिन में कॉलेज की और रात में ऑर्डर डिलीवरी का काम शुरू कर दिया। कोविड-19 महामारी के दौरान जब ज़ोमैटो का काम बंद हो गया, तो उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। साल 2022 में यासीन ने एलएलबी का पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के बाद बतौर वकील- पट्टांबी मुंसिफ़-मजिस्ट्रेट कोर्ट में एक जूनियर वकील के रूप में काम करना शुरू किया। यहां वो एडवोकेट शाह-उल-हमीद के अंडर काम कर रहे थे। एडवोकेट शाहुल हमीद ने न केवल उन्हें प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी, बल्कि अदालत में केस लड़ने का मौका भी दिया। बकौल यासीन उन्होंने एक 2 करोड़ के प्रॉपर्टी डिस्प्यूट में उन्होंने जज के सामने बहस की थी और केस भी जीता।


लड़की होता, तो शायद नहीं कर पाता
साल 2023 में यासीन ने केरल न्यायिक सेवा परीक्षा देने का फ़ैसला किया और पहली कोशिश में वो 58वीं रैंक पर रहे, मगर Mains Exam में फेल हो गए। अगले प्रयास में उन्होंने दूसरा रैंक हासिल की। यासीन बताते है कि “शायद मुझे कुछ विशेषाधिकार मिले, जिनकी वजह से मैं न्यायिक सेवा में आ सका और अपनी हालत सुधार पाया। हमारे पुरुष-प्रधान समाज में पुरुष होना एक बड़ी सहूलियत है। अगर मैं इन्हीं हालात में पैदा हुई एक लड़की होता, तो शायद समाज मुझे इतनी आसानी से इन मुश्किलों को पार करने का मौका नहीं देता।”