दिल्लीः
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विज्ञान भवन में मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन कार्यक्रम को संबोधित किया। पीएम ने कहा कि, हमारे देश में जहां एक ओर जूडिशियरी की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं लेजिस्ट्रचर नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा। उन्होंने कहा कि, भारत सरकार भी जूडिशल सिस्टम में टेक्नोलॉजी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है। उदाहरण के तौर पर, ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। आज छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल ट्रांजेक्शन आम बात होने लगी है। पूरे विश्व में पिछले साल जितने डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए, उसमें से 40 प्रतिशत डिजिटल ट्रांजेक्शन भारत में हुए हैं।
इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के मुताबिक हो लीगल एजुकेशन
आगे पीएम ने कहा कि आजकल कई देशों में लॉ यूनिवर्सिटी में ब्लॉक चेन, इलेक्ट्रॉनिक डिस्कवरी, साइबर सिक्योरिटी, रोबोटिक्स, एआई और बायोथिक्स जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं। हमारे देश में भी लीगल एजुकेशन इन इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के मुताबिक हो, ये हमारी जिम्मेदारी है। हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।
अपनी जिम्मदरियों को स्पष्ट किया है
आज का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों की भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है। जहां जब भी जरूरी हुआ,देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुआ है। उन्होंने कहा कि साझा सम्मेलन से नये विचार आते हैं। हमें देश की आजादी के शताब्दी वर्ष को ध्यान में रखते हुए सबके लिए सरल, सुलभ, शीघ्र न्याय के नये आयाम खोलने गढ़ने की ओर आगे बढ़ना चाहिए।