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बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन में हलचल तेज, अवैसी का AIMIM हो सकता है शामिल, पर है कुछ शर्ते

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द फॉलोअप डेस्क

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक गर्माहट भी तेज होती जा रही है। इस बार चुनावी समर में एक नया ट्विस्ट AIMIM लेकर आई है। न्यूज 18 के अनुसार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने RJD के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने की पेशकश तो की है, लेकिन इसके साथ-साथ रख दी हैं कुछ ऐसी “शर्तें”, जिसने कांग्रेस और RJD की धड़कनें बढ़ा दी हैं।

क्या हैं AIMIM की मांगें?
AIMIM इस बार सिर्फ सीमांचल की राजनीति तक सीमित नहीं रहना चाहती। पार्टी ने महागठबंधन में शामिल होने के लिए कम से कम 15-20 सीटों की मांग रखी है, जिसमें सीमांचल की अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज जैसी सीटें प्रमुख हैं। साथ ही पार्टी अब मिथिलांचल, चंपारण, शाहाबाद, मगध और भागलपुर में भी दखल चाहती है, जहां पिछले पांच सालों में उसने संगठन को मजबूत किया है।

‘छोटा भाई’ नहीं, बराबरी चाहिए AIMIM को
AIMIM की एक और बड़ी शर्त यह है कि वह सिर्फ सहयोगी दल की भूमिका में नहीं रहना चाहती, बल्कि गठबंधन में ‘बराबरी का दर्जा’ चाहती है। बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान के मुताबिक, अगर साम्प्रदायिक ताकतों को हराना है, तो समान सोच वाली पार्टियों को साथ आना ही होगा — लेकिन बराबरी के आधार पर।

महागठबंधन की उलझन बढ़ी
AIMIM के इस प्रस्ताव ने RJD और कांग्रेस को दोराहे पर ला खड़ा किया है। एक तरफ उन्हें सीमांचल में AIMIM के प्रभाव का फायदा नजर आता है, दूसरी तरफ डर भी है — AIMIM को साथ लेने से गैर-मुस्लिम वोटर नाराज़ हो सकते हैं। ऊपर से विरोधी दल AIMIM को “BJP की B-टीम” कहकर पहले ही बदनाम करते रहे हैं।

2020 की यादें ताज़ा... और सबक भी!
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटें जीत लीं। जानकार मानते हैं कि इन वोटों में बड़ा हिस्सा RJD के कोर वोट बैंक से खिसका था। यही वजह है कि तेजस्वी यादव अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहेंगे।

‘हां’ या ‘ना’ — किस तरफ जाएगा महागठबंधन?
AIMIM का साथ मिलने से महागठबंधन को मुस्लिम वोटों के बंटवारे से राहत मिल सकती है और NDA को नुकसान। लेकिन अगर बातचीत फेल होती है, तो AIMIM अकेले 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जिससे RJD-कांग्रेस को सीधा नुकसान तय है।

फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन सियासी हलकों में यह AIMIM का ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ माना जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इस 'सियासी सौदे' में ओवैसी के शर्तों पर कितनी रज़ामंदी दिखाते हैं।

 

 

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