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क्या ड्राफ्ट नियमावली में ‘पेसा’ की अनदेखी हुई! 

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सुधीर पाल 
क्या ड्राफ्ट पेसा नियमावली समुदायों की रुढ़ि, परंपरा और रीति-रिवाज से असंगत है? क्या समुदाय के संसाधनों और विवाद निबटाने के रुढ़िजन्य ढंग का संरक्षण और परिरक्षण में यह नियमावली विफल है? क्या आवास या आवासों का समूह अथवा टोला या टोलों का समूह, जिसमें समुदाय समाविष्ट हो और जो परंपराओं और रूढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलापों का प्रबंध करता हो, ऐसी व्यवस्था नियमावली में नहीं है? 
‘पेसा’ नियमावली के 18 अध्याय और 38 सेक्शन पेसा-1996 की मूल भावना की अंतिम अभिव्यक्ति है, यह कहना उचित नहीं होगा। यह अंतिम सत्य नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसे एक झटके में खारिज कर दिया जाए। समय के साथ परिमार्जित करने, इसके प्रावधानों को और स्पष्ट करने तथा इसे सशक्त बनाने की गुंजाइश हमेशा बनी रहेगी। ड्राफ्ट नियमावली का आधार पेसा 1996 और  जेपीआरए 2001 है। और इन तीनों की संगतता पर ही अनुसूचित क्षेत्रों में पारंपरिक व्यवस्था की संवैधानिक मान्यता है।   

आज के इस आलेख में ड्राफ्ट नियामवली के जल, जंगल, जमीन और लघु खनिजों पर समुदायों के अधिकार से संबंधित प्रावधानों पर विमर्श किया जा रहा है। कुल 38 सेक्शन हैं ड्राफ्ट नियमावली में लेकिन झारखंड की राजनीति और अभिशासन के कोर मुद्दों पर विमर्श को केंद्रित किया जा रहा है। 
दो किश्तों के इस आलेख के पहले किश्त में पेसा 1996 के प्रावधानों के आलोक में झारखंड पंचायत राज अधिनियम की अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन की स्थिति की समीक्षा की गयी थी । पढ़ कर राय देंगे तो अच्छा लगेगा। प्रतिक्रिया अपेक्षित है। प्रस्तुत है      

1. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-11 में भू-अर्जन एवं पुनर्स्थापन पर चर्चा की गयी है। नियामवली के सेक्शन 28 में प्रावधान किया गया है कि भू-अर्जन एवं पुनर्स्थापना से पूर्व ग्राम सभा स्तर से मुक्त पूर्व संसूचित सलाह या सर्वसम्मति से सलाह प्राप्त करना अनिवार्य होगा। अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण से पूर्व ग्राम सभा से मुक्त पूर्व संसूचित सलाह या सार्वसम्मती से सलाह Jharkhand Rights to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Rules, 2015 के नियम 20 के अनुरूप होगा। 
नियम 20: अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की सहमति
Jharkhand Rights to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Rules, 2015 के नियम 20 में ग्राम सभा से अनुमति लेने का प्रावधान किया गया है।
1.    भारत के संविधान के पांचवें अनुसूची में उल्लेखित अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अर्जन की स्थिति में ग्राम सभा की सहमति उपायुक्त द्वारा प्रपत्र पांच के भाग (ख) में प्राप्त की जाएगी। वह प्रभावित क्षेत्र में विशेष ग्राम सभा की बैठक आहूत करने के लिए कम से कम दो सप्ताह पहले उसके संबंध में तिथि, समय अधिसूचित करेंगे।  ग्राम सभा के सदस्यों को भाग लेने के लिए उत्प्रेरित करने के लिए लोक जागरूकता अभियान भी चलाएंगे। 
भू-अर्जन के लिए यथा स्थिति संबंधित ग्राम सभा या पंचायत की सहमति पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम,1996 की मार्गदर्शिका एवं भू-अर्जन पुनर्वासन और पुनर्रव्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम की धारा-41 के तहत किया जाएगा। रेखीय (Linear) परियोजना अंतर्गत ग्राम सभा के सहमति हेतु जहां एक पंचायत का समावेश हो वैसे मामले में ग्राम पंचायत, एक से अधिक पंचायत का समाविष्ट होने की स्थिति में पंचायत समिति तथा एक से अधिक प्रखंड के समावेश होने की स्थिति में जिला परिषद की सहमति प्राप्त की जाएगी। 
2.    ग्राम सभा के पूर्व सहमति प्राप्त करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया वही होगी जो नियम 19 के अधीन विहित की गई हो 
3.    सहमति के वैध माने जाने के लिए गणपूर्ति ग्राम सभा के कुल सदस्यों के कम से कम तीन एक तिहाई होगी परंतु ग्राम सभा के कुल महिला सदस्यों के एक तिहाई भी उस ग्राम सभा की बैठक में उपस्थिति अनिवार्य होगा। यदि पहले ग्राम सभा में कोरम पूरा नहीं होता है तो अगली ग्राम सभा में कोरम की बाध्यता नहीं होगी 
4.    कोई भी ग्राम सभा अपनी सहमति उपयुक्त रीति से एक बार देने के बाद उसे वापस नहीं ले सकेंगे
भू-अर्जन के मामले में ग्राम सभा का कोरम वनाधिकार अधिनियम के तहत होने वाली ग्राम सभा के कोरम के हिसाब से यानि कम से कम 50 फीसदी होनी चाहिए थी और उसनें भी 50 फीसदी महिलाओं की उपस्थिति अनिवार्य बनाए जाने की जरूरत है। दूसरी बार की ग्राम सभा में कोरम की अनिवार्यता का नहीं होना खतरनाक हो सकता है। 
2. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-16 में संक्रमित भूमि का प्रत्यावर्तन की चर्चा की गयी है। 
33. अनुसूचित जनजाति की विधि विरुद्ध संक्रमित भूमि का प्रत्यावर्तन 
33.1 गांव में भूमि के संबंध में ग्राम सभा निम्न गतिविधियां कर सकती हैं :
क. ग्राम सभा सुनिश्चित करेगी कि कृषि योग्य भूमि किसी भी कारण से परती नहीं रहे और गांव से बाहर गए प्रवासी लोगों, आश्रितों एवं नाबालिगों इत्यादि की भूमि पर खेती तथा ऐसी भूमि के लिए उचित व्यवस्था निश्चित करेगी 
ख. ऐसी व्यवस्था बनाना, जिससे कि प्रवासी लोगों की भूमि पर भूमिहीनों या जरूरतमंद लोगों के द्वारा खेती की जा सके और ऐसी खेती के लिए शर्तें बनाना 
ग. गांव के गृह विहीनों को गृह स्थल उपलब्ध कराने हेतु गृह स्थल का चयन ग्राम सभा द्वारा किया जाएगा। गृह विहीनों की सूची ग्राम सभा की अनुशंसा के आलोक में बनाई जाएगी। 
घ. भूमि के गिरवी से संबंधित सभी मामलों को ग्रामवासियों द्वारा ग्राम सभा के संज्ञान में लाया जाएगा। सीएनटी/ एसपीटी एक्ट / विलकिनसन रूल / अन्य प्रथागत कानूनों के तहत नियम ही मान्य होगा। 
ङ. उपर्युक्त प्रावधान केवल अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की भूमि के संबंध में लागू होंगे 
33.2. हस्तांतरित भूमि की वापसी:
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम एवं विलकिनसन नियम अंतर्गत आदिवासियों की अवैध रूप से अंतरित भूमि के पुनः वापसी का प्रावधान है। इसका विस्तार पूरे छोटानागपुर, कोल्हान् एवं पलामू प्रमंडल के अनुसूचित एवं गैर-अनुसूची क्षेत्र पर लागू है। इसके अंतर्गत भूमि वापसी की शक्ति उपायुक्त पर केंद्रित है। 
संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में आदिवासियों की अवैध रूप से अंतरित भूमि के पुनः वापसी का प्रावधान है। इसका विस्तार पूरे संथाल परगना प्रमंडल के अनुसूचित एवं गैर-अनुसूची क्षेत्र पर लागू है। इसके अंतर्गत भूमि वापसी की शक्ति उपायुक्त पर केंद्रित है। अतः,
क.    प्रत्येक वित्तीय वर्ष के 15 दिन के अंदर राजस्व कर्मचारी द्वारा रजिस्टर-2 की प्रतिलिपि ग्राम सभा को उपलब्ध कराया जाएगा 
ख.    ग्राम सभा द्वारा भूमि की वापसी:
यदि कोई ग्राम सभा अपने अधिकार क्षेत्र में पाती है कि अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य से किसी अन्य व्यक्ति ने उसकी जमीन गैर कानूनी ढंग से या उसकी नासमझी का फायदा उठाकर अपने कब्जे में कर ली है, तो वह उस भूमि का कब्जा उस व्यक्ति को प्रत्यावर्तित करेगी जिसकी वह मूलतः जमीन थी और यदि उस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उसके वैधानिक वारिसों को प्रत्यावर्तित करेगी। 
परंतु यदि ग्राम सभा किसी भी कारण से ऐसी भूमि को प्रत्यावर्तित करने में असफल रहती है तो वह मामला उपायुक्त को ग्राम सभा द्वारा प्रस्ताव पारित करते हुए सूचित करेगी। 
ग.    हस्तांतरण का नियमन: किसी भी तरह की भूमि हस्तांतरण के पूर्व उपायुक्त ग्राम सभा से अनुशंसा प्राप्त करने के पश्चात ही भूमि का हस्तांतरण कर सकेंगे। ग्राम सभा अवैध भूमि हस्तांतरण का लेखा-जोखा रखेगी। 

3. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-15 में लघु वनोपज से संबंधित अधिकारों की चर्चा की गयी है। 
32.1. क. ग्राम सभा क्षेत्र की सीमा के भीतर वन भूमि पर लघु वनोपज का स्वामित्व,संग्रहण, और उसके उपयोग एवं निपटान का अधिकार अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 की धारा 3(1) एवं 3(1)(ग) में उपबंधित प्रावधानों के अनुसार होगा। 
तथापि नियमावली में किसी बात के रहते हुए भी झारखंड राज्य में केंदु पत्ता का संग्रहण,प्रबंधन एवं विपणन; बिहार केंदु पत्ता (व्यापार नियंत्रण) अधिनियम,1973 तथा उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुरूप झारखंड राज्य वन विकास निगम लिमिटेड, रांची द्वारा संग्रहकर्ता और ग्राम सभा के खाते में या ग्राम सभा के खाते में जमा किया जाएगा। 
ख. ग्राम सभा क्षेत्र की पारंपरिक सीमा के भीतर वन भूमि पर किसी लघु वनोपज के स्वामित्व का अधिकार किसी व्यक्ति या समुदाय को अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अनुसार सभी लघु वनोपज के स्वामित्व का अधिकार ग्राम सभा को होगा। 
ड्राफ्ट नियमावली में लघु वनोपज के प्रबंधन एवं विपणन (32.4), ग्राम सभा द्वारा लघु वनोपाज का मूल्य, रॉयल्टी तय किये जाने (32.5) तथा वन से संबंधित विभागीय कार्यक्रमों के लिए ग्राम सभा के साथ परामर्श (32.3) का भी प्रावधान है।  
4.झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-13 केसेक्शन 30.1 में लघु खनिजों के लिए ग्राम सभा द्वारा योजना तैयार करने का प्रावधान किया गया है:  
 
(क)    ग्राम सभा मिट्टी,पत्थर,बालू, मोरं आदि सहित अपने क्षेत्र में पाए जाने वाले लघु खनिजों के लिए योजना बनाने और इसके उपयोग के लिए सक्षम होंगी।  
(ख)    ग्राम सभा के निर्देश एवं नियंत्रण में स्थाई समिति या ग्राम सभा इस जिम्मेवारी का निर्वहन करेगी
(ग)    बालू घाट जिस ग्राम सीमा के अंतर्गत हो उसका सीमांकन जिला खनन पदाधिकारी/ सहायक खनन पदाधिकारी द्वारा कराकर उसे संबंधित (Jharkhnad State Sand Minig Policy, 2017) के अनुसार category-1 बालू घाट को ग्राम सभाओं को सुपुर्द कर दिया जाएगा। ग्राम सभा स्वयं बालू घाट का संचालक होगी अथवा अपने स्तर से स्थानीय जरूरतों के लिए इस्तेमाल कर सकेगी। ग्राम सभा को सुपुर्द बालू घाट की इस्तेमाल से जो शुल्क/ राजस्व प्राप्त होगा उसे ग्राम सभा अपने कोश में जमा कर इस राशि का व्यय ग्राम विकास अथवा स्थानीय विकास के लिए कर सकेगी।
(घ)    ग्राम सभा बालू घाट की नीलामी करे या खुद संचालित करे, यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी परिस्थिति में नदी के तल में जेसीबी या अन्य किसी मशीन से बालू का खनन नहीं हो. 
(ङ)    ग्राम सभा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, भारत सरकार के निर्देशों के आलोक में मानसून सत्र की अवधि (झारखण्ड के सन्दर्भ में 10 जून से 15 अक्टूबर) में बालू के खनन और उठाव पर पूर्णतया रोक लगाया जाना सुनिश्चित करेगी। 

30.2 ग्रामीणों के द्वारा उपयोग : ग्रामीण परंपरागत प्रथाओं के अनुसार अपनी निजी जरूरत के लिए लघु खनिजों का उपयोग कर सकते हैं लेकिन 
क) खनिजों का उपयोग करने के लिए ग्राम सभा के अनुशंसा अनिवार्य होगी। 
ख) व्यवसायिक आवश्यकताओं के लिए ग्राम सभा स्थानीय प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सामग्रियों जैसे पत्थर, बालू, गिट्टी, मिट्टी एवं अन्य पाए जाने वाले प्राकृतिक लघु खनिज के प्रयोग की मात्रा, खनन पट्टा हेतु स्वीकृति, प्रदूषण नियंत्रण पर्षद से प्राप्त सहमतियों के अनुरूप करेंगे एवं इस पर रॉयल्टी झारखंड लघु खनिज समनुदान नियमावली, 2004 यथा संशोधित प्रावधानों के अनुरूप अधिसूचित दर द्वारा राज्य सरकार के खनन एवं बजट विभाग, झारखंड द्वारा प्राप्त करेगी। 
ग) ग्राम सभा, खुदाई के सामान या दुष्प्रभाव के क्षतिपूर्ति के लिए खुदाई कर रहे व्यक्तियों पर जिम्मेवारी तय कर सकती है, जैसे गड्ढों को भरना, पेड़ लगाना, तालाब का निर्माण इत्यादि। 
30.3. लघु खनिज का खनन पट्टा प्राप्त करने का अधिकार:
क) झारखंड लघु खनिज समनुदान नियमावली 2004 के अध्याय-2 के उपबंध 5(4) के तहत अनुसूचित क्षेत्र से संबंधित ग्राम सभा की स्वतंत्र पूर्व संसूचित सहमति के बिना लघु खनिज का कोई खदान पट्टा अथवा खुली खान का अनुमति पत्र निर्गत नहीं किया जाएगा। 
ख) खनन पट्टा प्राप्त करने हेतु प्राथमिकता के आधार: 
I.  लघु खनन के पट्टे की स्वीकृति के लिए सर्वप्रथम अनुसूचित जनजाति के सहयोग समिति को प्राथमिकता दी जाएगी। उनके आवेदन की अनुपलब्धता पर ग्राम सभा के अन्य सदस्यों की सहयोग समिति को प्राथमिकता दी जाएगी। अध्याय 3, उपबंध13(1)(क) 
Ii. अनुसूचित जनजाति/ अनुसूचित जाति के सदस्यों की सहयोग समिति का आवेदन उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में अनुसूचित जनजाति/ अनुसूचित जाति के सदस्य को क्रमशः प्राथमिकता दी जाएगी। अध्याय 3, उपबंध13(1)(ख)  
Iii. अनुसूचित जनजाति /अनुसूचित जाति के सदस्यों की सहयोग समिति अथवा व्यक्ति के आवेदन उपलब्ध नहीं रहने की स्थिति में सामान्य वर्ग के सदस्यों की सहयोग समिति को प्राथमिकता दी जाएगी। अध्याय 3, उपबंध13(1)(ग) 
(सहयोग समिति से अभिप्रेरित है वह सहयोग समिति जो बिहार स्वावलंबी सहयोग समिति अधिनियम, 1996, सहकारी समिति अधिनियम 1935 के अंतर्गत विधिवत निबंधित हो)
30.4. पर्यावरण संरक्षण:
क) लघु खनिजों के उत्पादन की वाणिज्यिक संभावना वाले गावों में, लघु खनिजों के वाणिज्यिक रूप से उपयोग करने की अनुमति देने के पूर्व खनिज विभाग को ग्राम सभा की अनुशंसा प्राप्त करना अनिवार्य होगा। ग्राम सभा की अनुशंसा प्राप्त करने हेतु लघु खनिजों के दोहन की पूर्ण कार्य योजना समर्पित करना अनिवार्य होगा। 
ख) लघु खनिजों के दोहन की योजना में उत्खनन क्षेत्र अंतर्गत खनन के दुष्प्रभावों जैसे गड्ढों का होना, पानी एवं वनस्पति का क्षरण, खेतों पर राख, धूल-धुंए का प्रभाव इत्यादि के प्रबंधन की व्यवस्था में गड्ढों का भरा जाना, पौधे लगाना आदि शामिल होंगे। 
ग) यदि पर्यावरण संरक्षण इत्यादि के लिए सरकार के द्वारा कोई शर्त लगाई गई हो तो संबंधित अधिकारी इस संबंध में ग्राम सभा को पूरी सूचना प्रदान करेगा 
घ) सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और विभिन्न पर्यावरण कानूनों के अनुपालन के लिए ग्राम सभा आदेश पारित कर सकती है। 
ङ) ग्राम सभा को आवश्यक लगे तो वह राज्य प्रदूषण बोर्ड से सलाह ले सकती है एवं सलाह प्रदान भी कर सकती है।  
5. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 के तहत बनाए जा रहे झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) ड्राफ्ट नियमावली, 2022 के अध्याय-12 में लघु जल निकायों के प्रबंधन की चर्चा की गयी है।
29. लघु जल निकायों का प्रबंधन 
29.1 लघु जल स्रोतों का नियोजन एवं प्रबंधन 
क) जल स्रोतों का प्रबंधन एवं उपयोग इस प्रकार किया जाएगा कि इन्हें आगामी पीढ़ियों के लिए बरकरार रखा जाए और सभी ग्रामीणों का इस पर बराबर अधिकार हो 
ख) ग्राम पंचायत के अंतर्गत जल निकायों को ग्राम सभा के द्वारा प्रबंधित किया जाएगा और एक से ज्यादा ग्राम पंचायत के क्षेत्र अंतर्गत पड़ने वाले लघु जलाशयों का पंचायत समिति के द्वारा एवं एक से ज्यादा प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाले लघु जलाशयों का प्रबंध जिला परिषद के द्वारा किया जाएगा
ग) अनुसूचित क्षेत्र में मत्स्य पालन, पेयजल प्रबंधन, 10 हेक्टेयर तक के लघु जल निकाय ग्राम पंचायत, 10 हेक्टेयर से अधिक किंतु 100 हेक्टेयर तक का जल निकाय पंचायत समिति एवं 100 हेक्टेयर से अधिक किंतु 200 हेक्टेयर तक के लघु जल निकाय का प्रबंधन जिला पंचायत द्वारा किया जाएगा 
घ) ग्राम सभा या पंचायत समिति या जिला परिषद जैसे स्थिति हो, ग्राम सभा के परामर्श से परंपराओं एवं लागू नियमों को ध्यान में रखते हुए गांव में उपलब्ध प्राकृतिक जल स्रोत को विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नियमित करेंगे और उपयोग की प्राथमिकता निर्धारित करेगी। 
ङ) त्रि-स्तरीय पंचायत के लिए अनिवार्य होगा कि प्राकृतिक जल निकाय से संबंधित कोई भी निर्णय लेने के पूर्व ग्राम सभा से परामर्श करें। ग्राम सभा द्वारा पत्र प्राप्ति के 30 दिनों के अंदर प्रस्तुत  योजना पर निर्णय देना अनिवार्य होगा अन्यथा योजना स्वतः स्वीकृत माना जाएगा।  ग्राम सभा के सचिव प्रस्ताव प्राप्त करने की तिथि को पत्र प्राप्ति रजिस्टर में लिखेंगे एवं अध्यक्ष को इसकी  लिखित सूचना देंगे। अध्यक्ष 15 दिनों के अंदर ग्राम सभा की बैठक करना सुनिश्चित करेंगे। परंतु विशेष परिस्थिति में जब ग्राम सभा की सुनवाई जारी हो परंतु तय सीमा में ग्राम सभा निर्णय लेने में असमर्थ हो तो ऐसी स्थिति में ग्राम सभा अलग से 30 दोनों का समय ले सकेगी एवं उप-विकास आयुक्त को लिखित रूप में प्रारंभिक समय सीमा के अंतर्गत सूची से सूचित करेगी। 
ड्राफ्ट नियमावली में ग्राम सभा के अधिकार और इससे संबंधित विविध पहलुओं पर चर्चा की गयी। इसके अतिरिक्त दर्जनों ऐसे प्रावधान हैं जो पेसा 1996 की मूल भावना से मेल खाते हैं।